"zone name","placement name","placement id","code (direct link)" apnevichar.com,Popunder_1,15485358,"" 996.com,DirectLink_1,15488589,https://gw7eez7b7fa3.com/jcbu8318e4?key=806f9e0a5edee73db1be15d7846e32a6 भारतीय समाज में धर्म का महत्व

Sunday, July 12, 2020

पृथ्वी का दुख वर्णन

पृथ्वी का दुख वर्णन

सूत जी बोले द्वापर युग  में अंत समय में पृथ्वी का भार बहुत बढ गया। नाना प्रकार के अत्याचारों से पीड़ित पृथ्वी तब दुखी होकर ब्रह्मा की शरण में गई।ब्रह्मा से उसने अपने सम्पूर्ण दूखो  का रो रोकर निवेदन किया।तब ब्रह्मा उसे अपने साथ साथ लेकर भगवान विष्णु के पास गए।भगवान विष्णु शयन काल में थे।उनको शयन करते हुए सतयुग और त्रेता युग बीत गए थे।


भगवान विष्णु के पास जाते समय ब्रह्मा के पास देवादी एवम् समस्त मुनिगन भी संग हो गए।सबने वहां जाकर समाहुक प्रार्थना की।तब भगवान विष्णु की योगनिद्रा की निंद्रा टूटी।उन्होंने सबके आने का कारण पूछा।तब ब्रह्मा ने उनको पृथ्वी का सारा दुख बतलाया। इस पर विष्णु भगवान सबके साथ स्मेरू पर्वत पर आए।तब वहां पर दिव्य सभा हुई। इस सभा में पृथ्वी ने अपने सारे दुखों का वर्णन किया।





परमपिता ब्रह्मा ने तब भगवान विष्णु से पृथ्वी को हरण करने की प्रार्थना की।उनसे निवेदन किया कि पृथ्वी पर आकर अवतार ग्रहण करे।
ब्रह्मा इस प्रार्थना पर विष्णु बोले आज से काफी समय पहले मैंने पृथ्वी को भयमुक्त करने का निश्चय कर लिया है मैंने समुद्र को राजा शांतनु के रूप में पृथ्वी पर भेज दिया है। मैं पहले ही जानता था कि पृथ्वी का भार बढ़ेगा। इस कारण पूर्व में ही मैंने श्री शांतनु के वंश की उत्पत्ति कर दी है गंगापुत्र भीष्म भी वसु ही है वह मेरी आज्ञा से गई है महाराज शांतनु की द्वितीय पत्नी से विचित्रवीर्य नामक पुत्र उत्पन्न हुआ है इस समय उनके दोनों पुत्र धृतराष्ट्र और पांडु भूमि पर है। पांडु की दो पत्नियां है कुंती और माद्री। धृतराष्ट्र की पत्नी है गंधारी। अतएव देवता गण शांति वंश में जन्म ले।






 तत्पश्चात में भी जन्म लूंगा भगवान विष्णु के इस कथन पर समस्त देवता गणों वसु गणों आदित्यो
अश्विनी कुमारों ने पृथ्वी पर अवतार ग्रहण किए सब ने भरत वंश में जन्म लिया। सूत जी बोले मुनि वरो। इस प्रकार धर्म ने युधिष्ठिर इंद्र ने अर्जुन वायु ने भीम दोनों अश्वनी कुमार उन्हें नकुल सहदेव सूर्य ने कर्ण बृहस्पति ने द्रोणाचार्य वसुओ ने भीष्म यमराज ने विदुर कली ने दुर्योधन चंद्रमा ने अभिमन्यु भूरिश्रवा ने शुक्राचार्य वरुण में श्रोता युद्ध शंकर ने अश्वथामा कनिक्कने  मित्र कुबेर ने धृतराष्ट्र और यक्षो मैं गंधर्व सर पो देवक अश्व सेन दुशासन आदि के रूप में पृथ्वी पर अवतार ग्रहण किए। इस प्रकार समस्त देवगण लेकर पृथ्वी पर आ गए। नारद जी को जब यह पता चला तो वह विष्णु जी के पास आए और कुपित होकर बोले जब तक नर नारायण जन्म ना लेंगे तब तक पृथ्वी का भार कैसे हल्का होगा?
नर तो अवतार लेकर पृथ्वी पर चले गए। नारायण रूपी भगवान विष्णु यही विराजमान है आखिर आप क्या कर रहे हैं?


नारद की इस बात पर भगवान विष्णु बोले हे नारद इस समय में मैं विचार कर रहा हूं कि कहां और किस वंश में जन्म लूं अभी तक मैं इसका निर्णय नहीं कर सका हूं। मुन्नी्वरो । भगवान विष्णु की इस कथन पर नारद जी ने उनको कश्यप का वर्णन करते हुए कहा कि वह महात्मा वरुण से गाय मांग कर ले गए बाद में वापस नहीं की। इस पर वरुण मेरे पास आया। तब मैंने कश्यप को गवाला हो जाने का शाप दे दिया इस समय कश्यप वासुदेव के रूप में मेरा श्राप भोग रहे हैं उनकी दोनों पत्नियां देवकी और रोहिणी के रूप में उनके साथ है वह पापी कंस के अधीन रहकर दुख पा रहे हैं वरुण के साथ विश्वासघात करने और मेरे श्राप का फल पा रहे हैं मेरा तो यह सुझाव है कि आप उनके यहां ही अवतार ले। नारद कहां के हो प्रस्ताव भगवान विष्णु ने स्वीकार कर लिया। वह क्षीर सागर में स्थित उत्तर दिशा में अपने निवास में चले गए। फिर मेरु पर्वत की गुफा में प्रवेश कर अपनी दिव्य देह त्याग कर वसुदेव के यहां जन्म ग्रहण करने के लिए चले गए।

Friday, July 10, 2020

हरिवंश पुराण महात्म्य

महर्षि वेदव्यास कृत

श्री हरिवंश पुराण महात्म्य

मानव जीवन के लिए उपयोगी इस ग्रंथ का पाठ करने से पूर्व महर्षि वेदव्यास भगवान श्री कृष्ण पांडव पुत्र अर्जुन एवं ज्ञान की देवी सरस्वती का ध्यान करें।
सनातन धर्म की रचीयता महर्षि वेदव्यास जिन्होंने इस पुराण की कथा का वर्णन किया उनके चरण कमलों में सादर वंदन।
अज्ञान की तिमिर में यह प्रकाश ज्योति स्वरूप सबका कल्याण करें। मैं उन गुरुदेव को नमस्कार करता हूं यह अखंड मंडलाकार चराचर विश्वजीत परमपिता परमात्मा से व्याप्त है मैं उनको नमस्कार करता हूं उनका साक्षात दर्शन करने वाले गुरुदेव को नमस्कार करता हूं ज्ञानियों ने हरिवंश पुराण को ब्रह्मा विष्णु शिव का रूप कहां है यह सनातन शब्द ब्रह्म मय 
है। इसका परायण करने वाला मोक्ष प्राप्त करता है जैसे सूर्योदय के होने पर अंधकार का नाश हो जाता है इसी प्रकार हरिवंश के पठन-पाठन श्रवण से मन वाणी और देह द्वारा किए गए संपूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं जो फल अठारह पुराणों की श्रवण से प्राप्त होता है उतना ही फल फल विष्णु भक्त है हरिवंश पुराण के सुनने से मिलता है। इसमें संदेह नहीं है। इसे पढ़ने और सुनने वाले स्त्री पुरुष बालक विष्णुधाम प्राप्त करते हैं। पुत्रदा कांक्षी स्त्री पुरुष इसे अवश्य सुने। विधिपूर्वक हरि वंश पुराण का पठन-पाठन संतान गोपाल स्तोत्र का 1 वर्षीय पाठ अवश्य पुत्र रतन प्रदान करता है जो पुरुष या स्त्री चंद्रमा सूर्य गुरु गुरु गुरुधाम अग्नि की ओर मल मूत्र त्याग करता है वह नपुंसक बांज होता है अकारण फल फूल तोड़ने वाला संतान अक्षय को प्राप्त होता है पर स्त्री गमन पत्नी बनाएं कुंवारी कन्या का शीला हरण करने वाला वृद्धावस्था में घोर दुख पाता है व्यभिचारिणी स्त्री बुढ़ापे में गल गल कर मरती है
निंदनीय और गणित कर्मी महा शोक को प्राप्त होता है
अंत एवं श्री हरिवंश पुराण का परायण कर वह अपना दुख हल्का कर सकता है। हरिवंश पुराण के श्रवण पाटन से बहुत दूर हो सकता है।
हरिवंश पुराण के आवाहन परायण की विधि इस प्रकार है कुशल पंडित को आमंत्रित कर शुभ मुहूर्त निकलवाए। भाद्रपद आश्विन कार्तिक आषाढ़ और श्रवण इन बाहों में इनका सर्वोत्तम परायण माना गया है। सब को आमंत्रित कर नौ दिन तक इसका पाठ करें या करवाएं सभी इष्ट मित्रों को आमंत्रित करें सुंदर कथा चित्र बनाएं सुंदर मंडप का निर्माण करें लक्ष्मी और पुत्रों सहित गोपाल कृष्ण की स्थापना करें यथाशक्ति प्रसाद आदि का वितरण करें भगवान को नैवेद्य अर्पित करें कथा के दिनों में पूर्ण ब्रम्हचर्य का पालन करें पृथ्वी पर शयन करें सुने फिर विश्राम उपरांत संध्या चार बजे से दीप जलाने तक कहे सुने तत्पश्चात विश्राम दे 9 दिनों में इसका संपूर्ण पाठ आवश्यक है कथा पूर्ण मनोयोग से कहें इस कथा के मध्य अन्य वार्तालाप करना या किसी प्रकार का व्यवधान डालना अशुभ माना गया है भक्ति पूर्वक श्री हरिवंश का पठन पाटन श्रवण अत्यंत लाभदायक है।


सूर्य ग्रह दिन रविवार

सूर्य को प्रसन करने का उपाय



सूर्य को कुछ और अनुकूल करने के लिए चावल और गुड बहते पानी में प्रवाहित करें। रविवार को दूध भात मैं गुड़ मिलाकर खुद सेवन करें। गेहूं के आटे के चूर्मे के लड्डू बनाकर बच्चों को बांटे और स्वयं भी खाएं। तांबे का सिक्का बहते पानी में बहाएं। तांबे का सिक्का गले में धारण करने से सूर्य अनुकूल फल देता है। लाल कपड़े में गेहूं गुड या सोना बांध कर दान करने पर सूर्य उच्च फल प्रद बनता है|


गणेश जी की आरती

श्री गणेश जी की आरती

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
लड्डू का भोग लगे संत करें सेवा।।१।।
एक दंत दयावंत चार भुजा धारी।
मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी।।२।।
अंधन को आंख देत कोड़ीन को काया।
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया।।३।।
लड्डू वाला का भोग लगे संत करें सेवा।
हार चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा।।४।।
दिनन की लाज रखो शंभू सतवारी।
कामना को पूरा करो जग बलिहारी।।५।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।

Tuesday, July 7, 2020

सड़क हादसे में तीन की मौत,जिनमें दो भाई

सड़क हादसे में शीलाबग के समीप तीन लोगों की मौत हुई है जिनमे दो सगे भाई थे एक अन्य व्यक्ति था। ये भझशडा नहोल के थे इनमें एक राकेश नमक व्यक्ति जिसकी उम्र केवल 32 ओर उनके ही भाई राजेश उम्र 38 थी और एक व्यक्ति हरीबल नाम का था ये सोलन से नहोल अपने गांव जा  रहे थे और रास्ते में ही शीलाबाग के समीप ही ये दुर्घटानग्रस्ट हो गए । मौके पर ही दोनों भाईयो और तीसरे व्यक्ति की मौत हो गई ।ये सब आपनी पिकअप 1999 में  घर जा रहे थे अचानक बीच रास्ते में दुरघना ग्रस्त हो गए ।भगवान इनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और उनके परिवार को  इस दुखद घड़ी से उभरने की शक्ति प्रदान करें।

Saturday, July 4, 2020

अयोध्या धाम परिचय ।

श्री अयोध्या जी का प्राचीन इतिहास 

एवं अयोध्या गाइड

अयोध्या धाम परिचय

एक समय की बात है कि कैलाश पर्वत पर श्री महादेव जी और पार्वती जी बैठे हुए थे। भगवान शंकर जी को प्रसन्न चित् जानकर माता पार्वती जी ने उनसे पवन पुरी अयोध्या जी का महात्म्य एवं इतिहास जानने की इच्छा व्यक्त की।
महादेव जी ने कहा हे प्रिय। अयोध्यापुरी सभी नदियों में श्रेष्ठ सरयू नदी के दाहिने किनारे पर बसी हुई है। इसके महात्म्य का वर्णन करने की क्षमता शेष और शारदा में भी नहीं है।
नमाजी बुद्धि से विष्णु जी चक्र से और मैं त्रिशूल से सदा उसकी रक्षा करता हूं अयोध्या शब्द में ब्रह्मा और शिव का निवास है
अकारो ब्रह्म रूपस्य, धकारो रुद्र रूपते।
यकारो विष्णु रूपस्य अयोध्या नाम राजते।।

अयोध्या का भौगोलिक संबंध

अयोध्या ग्लोब के 26=47 उत्तरी अक्षांश और 62 15 पूर्वी देशांतर पर अवस्थित है

वेद और पुराणों में अयोध्या





यह अयोध्या भगवान वैकुंठनाथ की थी इसे महाराज मनु पृथ्वी के ऊपर अपनी सृष्टि का प्रधान कार्यालय बनाने के लिए भगवान बैकुंठ नाथ से मांग लाए थे। वैकुंठ से लाकर मनु ने अयोध्या को पृथ्वी पर अवस्थित किया और फिर सृष्टि की रचना की। उस विमल भूमि की बहुत काल तक सेवा करने के बाद महाराज मनु ने उस अयोध्या को इक्ष्वाकु को दे दिया।
वह अयोध्या जहां पर की साक्षात भगवान ने स्वयं अवतार लिया सभी तीर्थों में श्रेष्ठ एवं परम मुक्ति धाम है।
विष्णो:पाद्मवन्तिकां गुणवतीं मध्यश्च कांचीपुरी।
नाभि द्वारावती पठन्ति हृदय मायापुरी योगी ना।।
ग्रीवा मूल मुद्दा हरन्ति मथुरा नासा च वाराणसीम।
एतद् ब्रह्मादं वदन्ति मनुयो अयोध्यापुरी मातकम।।
समस्त गुणों से युक्त अवंतिकारी उज्जैन भगवान विष्णु का चरण है और कांची पूरी कटी भाग है द्वारिका पुरी नाभि है मायापुरी हरिद्वार हृदय है गर्दन का मूल भाग मथुरा है और काशीपुरी नासिका है इस प्रकार से मुनि लोग विष्णु भगवान के अंगो का वर्णन करते हुए अयोध्यापुरी को भगवान का मस्तक बतलाते हैं
वैरेण्यं सर्वं लोकनां हिरण्यां चिन्मया जया।
अयोध्या नन्दिनी सत्या राजिता अपराजिता।।
कल्याणकारी राजधानी या त्रिपादम्य निरा जया।
गोलोक हृदयन्ध्या च संस्था सा साकेत पुरी।।
समस्त लोको के द्वारा जो वंदित हैं ऐसी अयोध्यापुरी भगवान आनंदकंद के समान चिन्मया अनादि है वह 8 नामों से पुकारी जाती है अर्थात इसके 8 नाम है हिरणनय्या चिन्मया जया अयोध्या नंदिनी सत्या राजिता और अपराजिता।
भगवान की यह कल्याणमयी राजधानी साकेत पुरी आनंदकंद भगवान श्री कृष्ण के गोलोक का हृदय है।
एतद्वेशसृतस्य सकाशादग्रजन्मना ।
स्वं स्वं चरितम शिक्षरेन पृथिव्यां सर्वं मानवा:।।
इस देश में पैदा होने वाले प्राणी अग्र  जन्मा कहलाते हैं जिसके चरित्रों से समस्त पृथ्वी के मनुष्य शिक्षा ग्रहण करते हैं। मानव सृष्टि सर्वप्रथम यहीं पर हुई थी।
याअयोध्या पू: सा सर्व वैकुण्ठा न मेव।
मूल धारा मूल प्रकृति परा तत्सद् ब्रह्म मय।।
वीरजोतरा दिव्या रतन कोषाढया तस्यां ।
नित्यमेव सीतारामयी: विहारस्मलथस्ति:।।
वह अयोध्यापुरी सी वैकुंठो ब्रह्मलोक इंद्रलोक विष्णु लोक गोलोक आदि सभी देवताओं का लोग वैकुंठ है का मूल आधार है तथा जो मूल प्रकृति है जिससे कि दुनिया पैदा हुई है उससे भी श्रेष्ठ है शब्द रूप जो है वह ब्रह्मय है सत रज तम इन तीनों गुणों में से रजोगुण से रहित है
 यह अयोध्यापुरी दिव्या रतन रूपी खजाने से भरी हुई है और सर्वदा नित्य मेव श्री सीताराम जी का बिहार स्थल है
स्वयमागता स्वयमागता स्वयमागतेति।
साकेत साकेत संज्ञा सविता ‌।।
अर्थात स्वयं आपसे आप आवीर भूत होने के कारण अयोध्या को साकेत कहते हैं। पौधों की प्रमुख पुस्तक दिव्या वदान मैं साकेत विषयक धारण की पुष्टि इसी साकेत की ओर संकेत की गई है।
सचस्कुरूश्चतां वमप्रेमार परिखादिभि:।
अयोध्या नगर नाम्नां गुणें नाप्यरिभि:  सुरा:।।
अर्थात देवताओं ने इस रसिया पूरी को कोटि और खाई से भलीभांति अलंकृत किया जिससे इसे कोई शत्रु जीत ना सके और इसलिए इसका नाम अयोध्या रखा अयोध्या शब्द का अर्थ है शत्रु जितना सके।
अष्ट चक्रा नव द्वारा देवा नाम पूअयोध्या।
तस्वां हिरण्यमया: कोष स्वर्गोज्योतिषावृता:।।
अयोध्यापुरी देवताओं की नगरी है यह आठ चक्र और नौ द्वारों से शोभित है उस में  स्वर्ण के समान हिरण्यमय कोष है जो दिव्य ज्योति से पूरी तरह गिरा है।


Ancient history of shri ayodhya ji

 & Ayodhya Guide

 Ayodhya Dham Introduction

 Once upon a time, Shri Mahadev Ji and Parvati Ji were sitting on Mount Kailash.  Knowing Lord Shankar ji's delight, Mother Parvati Ji expressed her desire to know the greatness and history of Pawan Puri Ayodhya.

 Mahadev Ji said, dear.  Ayodhyapuri is situated on the right bank of the river Sarayu, the best among all rivers.  The ability to describe its greatness is not there in Shesha and Sharda.

 Vishnu ji chakra with namaji wisdom and I always protect him with trident, in the word Ayodhya is the abode of Brahma and Shiva.

 Acaro Brahmo Rupasya, Dhakro Rudra Rupate.

 Yakaro Vishnu Rupasya Ayodhya Name Rajate.

 Geographical relation of Ayodhya

 Ayodhya is located at 26 = 47 North latitude and 62 15 East longitude of Globe.

 Ayodhya in Vedas and Puranas


 4




 This Ayodhya belonged to Lord Vaikunthanath, Maharaja Manu brought a demand from Lord Baikuntha Nath to make the head office of his creation above the earth.  Bringing from Vaikuntha, Manu located Ayodhya on earth and then created the universe.  After serving that Vimal Bhumi for a long time, Maharaja Manu gave that Ayodhya to Ikshvaku.

 The Ayodhya where the Lord God incarnated himself is the best and the ultimate liberation pilgrimage in all pilgrimages.

 Vishno: Padmavantikam quality of Madhya Pradesh Kanchipuri.

 Navel Dwaravati recitation Hriday Mayapuri Yogi Na.

 Cervical origin issue haranti mathura nasa ch varanasim.

 Etd Brahmadam Vaddanti Manuyo Ayodhyapuri Matakam.

 Ujjain with all the qualities, Ujjain is the stage of Lord Vishnu and Kanchi is the entire cut, Dwarka is Puri Navel, Mayapuri Haridwar is the heart. The root part of the neck is Mathura and Kashipuri is the nasal, thus Muni people describe Ayodhyapuri, describing the organs of Lord Vishnu.  God's head tells

 Vairanya Sarvan Lokanan Hiranyam Chinmaya Jaya.

 Ayodhya Nandini Satya Rajita Aparajita.

 Kalyan Rajdhani or Tripadamya Nira Jaya.

 Golok Hridayandhya Ch institution sa Saket Puri.

 The Ayodhyapuri who is worshiped by all the locos is like Chinmaya Anadi, like Lord Anandkand, she is called by 8 names i.e. 8 names are Hirannayya Chinmaya Jaya Ayodhya Nandini Satya Rajita and Aparajita.

 This Kalyanamayi capital of God Saket Puri Anandakand is the heart of Lord Shri Krishna's Goloka.

 Ettdveshratsya sakashadgrijanna.

 Swayam Swaranitram Shikshren Prithivyaan Sarvan Manwa:

 The creatures born in this country are called Agar Janma, whose characters are taught by the human beings of the entire earth.  The human creation was first here.

 Yayyodhya Poo: Sa Sarva Vaikuntha na Meo.

 Mool Dhara Mool Prakriti Para Tatsad Brahma Maya.

 Virjotara Divya Ratan Koshadhaya Tasyaan.

 Nityameva Sitaramayi: Viharasmalathasti:.

 He is the root of Ayodhyapuri C Vaikuntho Brahmalok Indralok Vishnu Lok Goloka is the Vaikuntha of all the Gods and the original nature from which the world is born is even better than the word form which is the Brahman of the three qualities.  Is free from Rajoguna

 This Ayodhyapuri is full of treasures in the form of Divya Ratan and is always the site of Bihar of Sitaram Ji.

 Self-feeling, self-feeling, self-feeling.

 Saket Saket noun Savita 4.

 That means Ayodhya is called Saket due to you being an avid ghost.  In the main book of plants Divya Vadaan, the belief of Saket has been confirmed to this Saket.

 Sachskurushtantam vampramar parikhadibhi:.

 Ayodhya Nagar Namnama Properties Naapyaribhi: Sura:.

 That is, the Gods ornamented this Rasiya Puri with a coat and trench so that no enemy could win it and hence the name Ayodhya, the word Ayodhya means as much as the enemy can.

 Deva name Puyodhya by Ashta Chakra Nava.

 Taswan Hiranyamaya: Kosha Swarojyotishavrita:.

 Ayodhyapuri is the city of gods. It is adorned with eight chakras and nine gates. It has a Hiranyamaya Kosh like gold which has completely fallen from the divine light.


 4

Friday, July 3, 2020

मोक्षदा एकादशी महात्म्य

मोक्षदा एकादशी महात्म्य

(मार्गशीर्ष  मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी)

युधिष्ठिर बोले हे भगवान कृष्ण। अब आप मुझे 26 एकादशी ओं के नाम, व्रत की विधि बतलाइए तथा उस दिन किस देवता का पूजन करना चाहिए यह भी कहिए भगवान जी बोले मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम मोक्षदा है यथा नाम तथा गुण अर्थात मोक्ष देने वाला व्रत है। 12 मासो मैं मैं मार्गशीर्ष मास को उत्तम मानता हूं। यह गीता में अर्जुन से भी कह चुका हूं इससे कृष्ण पक्ष की एकादशी से प्रेम उत्पन्न होता है और शुक्ल पक्ष का व्रत मोक्ष का प्रदाता है इस व्रत में दामोदर भगवान का पूजन करना चाहिए आज व्रत धारियों को मेरी उखल बंधन लीला का श्रवण करना चाहिए। अब तुम्हें मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा सुनाता हूं-

प्राचीन गोकुल नगर में  वैखानस नाम का राजा बड़ा ही धर्मात्मा और प्रभु भक्त था। उसने रात्रि को स्वप्न में अपने पूज्य पिता को नर्क भोंगते देखा। प्रातः काल ज्योतिषी वेद पाठी ब्राह्मण बोले यहां समीप में पर्वत ऋषि का आश्रम है उनकी शरणागत में आपकी पिता शीघ्र ही स्वर्ग को चले जाएंगे राजा पर्वत मुनि की शरण मैं गया दंडवत करके कहने लगा मुझे रात्रि को स्वप्न में पिता का दर्शन हुआ वह बेचारे यमदूतो के हाथ से दंड पा रहे हैं। आप अपने योग बल से बतलाइए उनकी मुक्ति किस साधन से शीघ्र होगी मुनि ने विचार कर कहा कि और सब धर्म-कर्म देरी से फल देने वाले हैं शीघ्र वरदाता को केवल शंकर जी प्रसिद्ध है परंतु उन को प्रसन्न करने में देर अवश्य लग जाएगी परंतु तब  तक तो तुम्हारे पिता की दुर्गति हो जाएगी। इस कारण सबसे शुभम और शीघ्र फल दाता मोक्षदा एकादशी का व्रत है उसे संयुक्त परिवार सहित विधि पूर्वक कर के पिता को संकल्प कर दो। निश्चय ही उनकी मुक्ति होगी। राजा ने कुटुंब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत करके फल पिता को अर्पण कर दिया। उसके प्रभाव से वह स्वर्ग को चले गए। जाते हुए पुत्र से बोले अब मैं परमधाम को जा रहा हूं श्रद्धा भक्ति से जो मोक्षदा एकादशी का माहात्म्य सुनता है उसे वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है यह कथा ब्रह्मांड पुराण में वर्णित है।

फलाहार-इस दिन  बिल्वपत्र का सागार लेना चाहिए।व्रत मैं दूध फल व सिंघाड़े के आटे के पदार्थ भी ले सकते हैं।


Tuesday, June 30, 2020

आज हरिशयनी एकादशी है जरूर पढ़िए

देवशयनी पदमा एकादशी महात्म्य

(आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी)

कृष्ण भगवान बोले यह धर्मात्मा हे श्रेष्ठ युधिष्ठिर। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम देवशयनी है। ब्रह्मा जी ने नारद से कहा था कि आज के दिन भगवान विष्णु को शयन कराया जाता है। और वह कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को जागते हैं चतुर्मास का व्रत इस एकादशी से प्रारंभ होता है। जो मनुष्य के ब्रम्हचर्य का पालन कर चतुर्मास का व्रत करते हैं वह विष्णु भगवान को प्रिय होते हैं शिवलोक में उसकी पूजा होती है सर्वदेवता उसे नमस्कार करते हैं। ब्राह्मणों को भोजन करा दक्षिणा से प्रसन्न करें गों का दान अवश्य करें और तिल के साथ मिलाकर जो स्वर्ण दान करते हैं वह भोग व मोक्ष दोनों प्राप्त करते हैं गरीबों के लिए गोपी चंदन का दान देने से भगवान प्रसन्न होते हैं हल्दी के दानों से गौरी शंकर जी को प्रसन्नता होती है। और चांदी के पात्र में धर कर हल्दी का दान देना वामन भगवान की प्रसन्नता के लिए है। ब्राह्मणों को दही भात का भोग लगाना चाहिए। चतुर्मास व्रत में जो एक बार भोजन करते हैं समाप्ति में गरीबों को अन्य खिलाते हैं वह सीधे स्वर्ग को जाते हैं। इस व्रत में जौ तथा चावल इत्यादि जो अभ्यागतो को खिलाते हैं वह स्वर्ग को जाते हैं।


अब पदमा एकादशी के महातम में एक पौराणिक कथा कहता हूं। सूर्यवंश में मांधाता नाम का प्रसिद्ध सत्यवादी राजा अयोध्यापुरी में राज करता था एक समय उसके राज्य में अकाल पड़ गया प्रजा दुखी होकर भूख से मरने लगी। हवन आदि शुभ कर्म बंद हो गए राजा को कष्ट हुआ इसी चिंता में वन को चल पड़ा। अंगिरा ऋषि के आश्रम में जाकर कहने लगा हे सप्तर्षियों मैं श्रेष्ठ अंगिरा जी। मैं आपकी शरण हूं मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है प्रजा कहती है कि राजा के पापों से प्रजा को दुख मिलता है और मैंने अपने जीवन में किसी प्रकार का कोई पाप नहीं किया। आप दिव्य दृष्टि से देख कर कहो कि अकाल पड़ने का क्या कारण है? अंगिरा मुनि बोले सतयुग में ब्राह्मणों को वेद पढ़ना और तपस्या करना धर्म है परंतु आपके राज्यों में आजकल एक शूद्र तपस्या कर रहा है शूद्र को मारने से दोष दूर हो जाएगा प्रजा सुख पाएगी! मांधाता बोले मैं उस निरपराध हत्या करने वाले शूद्र को ना मारूंगा, आप इस कष्ट से छूटने का कोई और सुगम उपाय बताइए! ऋषिराज बोले सुगम उपाय कहता हूं भोग तथा मुख्य देने वाली देवशयनी एकादशी है इसका विधिपूर्वक व्रत करो इसके प्रभाव से चतुर्मास तक वर्षा होती रहेगी इस एकादशी का व्रत सिद्धियों को देने वाला तथा उपद्रवो को शांत करने वाला है। मुनि की दीक्षा से मांधाता ने प्रजा सहित पदमा का व्रत किया और कष्ट से छूट गए इसका महत्व  पढ़ने या सुनने से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है आज के दिन तुलसी का बीज पृथ्वी या गमले में बोया जाए तो महान पुण्य होता है तुलसी की  छूइ हुई पवन से भी यमदूत भय  पाते हैं। जिनका कंठ तुलसी की माला से सुशोभित हो, उसका जीवन धन्य समझना चाहिए ‌।
यह कथा भविष्योत्तर पुराण में वर्णित है

फलाहार_इस दिन किशमिश (लाख) का सागार लेना चाहिए। व्रत में किशमिश फल दूध मिठाई आदि भी लिए जा सकते हैं।

कलंक चतुर्थी के बारे में जानिए।

धार्मिक विचारों के अनुसार चतुर्थी तिथि को चंद्र दर्शन करना मना है इसका वैज्ञानिक कारण क्या है?



चतुर्थी तिथि को भगवान श्री कृष्ण पर स्यंतक मणी की चोरी करने का आरोप लगाया गया था इसका दूसरा कारण चंद्रमा को एक बार अपनी सुंदरता का अभिमान हो गया था उसके शंकर सुमन गज बदन प्रथम पूज्य गणेश जी का उपहास किया था।। क्रोधित होकर गणेश जी ने चंद्रमा को शाप दे  डाला कि जाओ तुम काले कलूटे हो जाओ उनके श्राप से चंद्रमा थरथर कांपने लगा उस दिन भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि थी चंद्रमा गणेश जी के पैर पकड़ कर उनसे क्षमा याचना करने लगा। उनकी क्षमा याचना से द्रवित होकर गणेश जी बोले अब से तू सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होगा तथा महीने में केवल 1 दिन ही पूर्णता को प्राप्त होगा मेरा शराफ केवल भाद्रपद की चतुर्थी को विशेष प्रभावी रहेगामेरा श्राप केवल मात्र भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को ही प्रभावी रहेगा जो व्यक्ति इस दिन तेरे तेरे मुख का दर्शन करेगा उसे कलंकित होना पड़ेगा। यानी झूठा कलंक लगेगा। बाकी चतुर्थीयो मैं इस का कोई भी प्रभाव नहीं होगा। इस दिन जो मेरी पूजा करेगा उसका मिथ्या कलंक मिट जाएगा। इस दिन विशेष विशेष रुप से गणेश भगवान जी की पूजा करनी चाहिए जो व्यक्ति इस दिन गणेश भगवान जी की पूजा करता है उसे कभी कलंकित नहीं होना पड़ता।

वैज्ञानिक तथ्य__




सूर्य चंद्र की गणना के अनुसार चतुर्थी तिथि को चंद्रमा ऐसे त्रिकोण पर आ जाता है कि जहां से सूर्य की विषैली किरणें चंद्रमा पर पड़ती है सूर्य की यह विषैली किरणें चंद्रमा से होती हुई पृथ्वी पर पड़ती है इसी कारण चतुर्थी को चंद्रमा के दर्शन करने को मना है।

According to religious views, it is forbidden to see the moon on Chaturthi Tithi, what is the scientific reason for it?



 4


 On the Chaturthi date, Lord Krishna was accused of stealing Sayantak Mani. Another reason for this was that the moon once became proud of its beauty and ridiculed Shankar Suman Gaj Badan I, the first worshiper Ganesha.  Enraged, Ganesha cursed the moon that you go black, the curse began to tremble. The moon began to tremble on the fourth day of the month of Bhadrapada, the moon held Ganesha's feet and apologized to him.  Impressed by his apology, Ganesha said that from now on you will be illuminated by the light of the sun and only one day in the month will be attained to perfection.  Only the person who sees your face on this day will have to be tarnished.  That is, there will be a false stigma.  It will not have any effect in the remaining fourth.  On this day the false stigma of whoever worships me will be erased.  On this day, one should specially worship Lord Ganesha, especially the person who worships Lord Ganesha on this day never has to be tarnished.

 scientific fact__


 4



 According to the calculation of Sun Moon, on the Chaturthi date, the moon falls on such a triangle that from where the sun's poisonous rays fall on the moon, this poisonous rays of the sun fall on the earth through the moon, that is why the Chaturthi is forbidden to see the moon.  is.

Monday, June 29, 2020

एकादशी जन्म (उत्पन्ना)

( मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी)

श्री सूत जी अट्ठासी हजार ऋषियों से कहने लगे कि विधि सहित इस एकादशी व्रत का महात्म्य तथा जन्म कि कथा भगवान कृष्ण ने युधिषठिर को सुनाई थी।सतयुग में एक महाभयंकर सुर नाम का राक्षस प्रकट हुआ,उसने अपनी शक्ति से देवताओं को प्रास्त किया और उन्हें अमरावती पूरी से नीचे गिरा दिया।वे बेचारे मृत्यु लोक की गुफाओं में निवास करने लगे ।
तथा कैलाशपति की शरण में जाकर उस दैत्य के अत्याचारों का तथा अपने महान दुख का वर्णन किया शंकर जी कहने लगे आप भगवान विष्णु की शरण में जाइए।आज्ञा पाकर सब देवता क्षीर सागर में गए जहां शेष नाग की शेया पर भगवान श्यन कर रहे थे वेद मंत्रो द्वारा स्तुति कर के भगवान को प्रसन्न  किया।तब प्रार्थना कर के इंद्र कहने लगे एक जंग नाम का दैत्य
भ्रमवश से चंद्रवती नगरी में उत्पन हुआ,उसके पुत्र का नाम मूर है ।उस मूर  दैत्य ने हमें स्वर्ग से निकाल दिया है।आप ही सूर्य बनकर जल का आकर्षण करता है।आप ही मेघ बनकर जल बरसता है भूलोक के बड़े बड़े कर्मचारी देवता सब शरणार्थी बन चुके है।अतः उस बलशाली दैत्यको मारकर हमारा दुख दूर कीजिए।
भगवान बोले हे देवताओं ।में तुम्हारे शत्रु का शीघ्र संहार करुगा।आप निश्चिंत होकर चंद्रवती नगरी पर चढ़ाई करो,में तुम्हारी सहायता करने को पीछे से आउगा।आज्ञा मानकर देवता लोग वहां आए।जहां युद्ध भूमि में मूर दैत्य गरज रहा था। युद्ध प्रारंभ हुआ परंतु मोर के सामने देवता घड़ी वरना ठहर सके। भगवान विष्णु भी पहुंचे सुदर्शन चक्र को आज्ञा दी

शत्रुओं का संहार करो चक्र ने चारों ओर शत्रु का विनाश किया। एक मोड़ देते का सिर ना काट सका। और ना ही गदा उसकी गर्दन तोड़ सके। तब भगवान ने सारंग धनुष हाथ में लिया बानू द्वारा युद्ध प्रारंभ हुआ परंतु शत्रु को ना मार सके। अंत में कुश्ती करने लगे हजारों वर्ष व्यतीत हो गए परंतु प्रभु का दाव बंद एक ना सफल हुआ। मूर दैत्य पर्वत के समान कठोर था प्रभु का शरीर कमल के समान कोमल था वह थक गई मन में विश्राम की इच्छा उत्पन्न हुई शत्रु को पीठ दिखा कर भाग चलें उनकी विश्राम भूमि बद्रिकाश्रम थी। वहां एक गुफा 12 योजन की थी हेमवती उसका नाम था उसमें जाकर सो गई मूर दैत्य अभी पीछे-पीछे चला आया। सोते हुए शत्रु को मारने के लिए तैयार हो गया उस समय एक सुंदर कन्या प्रभु के शरीर से उत्पन्न हुई जिसके हाथ में दिव्यास्त्र थे उसने मूर के अस्त्र शस्त्रों को टुकड़े-टुकड़े कर दिया रथ भी तोड़ दिया। फिर भी उस शूरवीर ने पीठ ना दिखाई। कुश्ती करने को कन्या के समीप आया। कन्या ने धक्का मारकर गिरा दिया और कहां यो यो मल युद्ध का फल है जब उठा तो उसका सिर काट कर कहा कि यह हठयोग का फल है। सब मुर की सेना पाताल को भाग गई। भगवान निद्रा से जागे तो कन्या बोली, यह दैत्य आप को मारने की इच्छा से यहां आया था। मैंने आपके शरीर से उत्पन्न होकर इस का वध किया। भगवान बोले, तुमने सभी देवताओं की रक्षा की है, मैं तुम पर प्रसन्न हूं, वरदान देने को तैयार हूं जो कुछ मन में इच्छा हो वह मांग लो कन्या बोली जो मनुष्य व्रत करें उनके घर में दूध पुत्र धन का निवास रहे और वह अंत में आप के लोक को प्राप्त करें। भगवान बोले तू एकादशी तिथि को उत्पन्न हुई है इस कारण तेरा नाम एकादशी प्रसिद्ध होगा। जो श्रद्धा भक्ति से तेरा व्रत करेंगे उनको सब तीर्थों के स्नान का फल मिलेगा अर्थात उनका मन शुद्ध हो जाएगा अंत में परमधाम को प्राप्त होंगे घोर पापों से उधार करने वाला तेरा व्रत होगा ऐसा कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए। मुर नामक राक्षस का वध करने के उपरांत भगवान विष्णु जी का 1 नाम मुरारी भी पढ़ा। पतित पावनी विश्व तारिणी का जन्म मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष में हुआ इस कारण इनका नाम उत्पन्ना प्रसिद्ध है। इस कथा का वर्णन भविष्य उत्तर पुराण में मिलता है

फलाहार_इसमें गुड़ और बादाम का सागार होता है। गुड्डू के आटे की सामग्री दूध मेवा और फल भी ले सकते हैं

Ekadashi Birth (Utpna)


 (Ekadashi of Krishnapaksha of Margashirsha month)

 Shri Sut ji started telling eighty-eight sages that Lord Krishna had narrated the legend of this Ekadashi fast with birth to Yudhishthira.  Amravati was completely knocked down. They started living in the caves of poor death folk.

 And going to Kailashpati's shelter, he described the atrocities of that monster and described his great sorrow, Shankar ji said, "You go to the shelter of Lord Vishnu. After receiving the orders, all the gods went to the Kshira Sea where the rest were shouting on the Sheya of the Naga Vedas."  Praised God by chanting mantras. Then after praying Indra started saying a monster named Jung

 Confusion was born in the city of Chandravati, the name of his son is Moore. That Moore monster has cast us out of heaven. You are the sun and attracts water.  Have become a refugee. So kill our powerful monster and take away our grief.

 God said, O Gods, I will kill your enemy soon. You will climb into the city of Chandravati with confidence, and I will come from behind to help you. The people came there, obeying the command, where the moor monster was roaring in the battle ground.  The war started but the god could stay in front of the peacock.  Lord Vishnu also reached Sudarshan Chakra


 Destroy the enemies Chakra destroyed the enemy all around.  He could not cut his head while giving a twist.  Neither mace could break his neck.  Then God took the Saranga bow in his hand and started the battle with Banu but could not kill the enemy.  In the end, thousands of years started to wrestle, but Prabhu's claim was not successful.  Moore was as hard as a monster mountain. The body of the Lord was as soft as a lotus. It was a tired mind. A desire for relaxation arose, showing the enemy back and running away. His resting ground was Badrikashrama.  There was a cave of 12 plan, Hemvati was her name, she went and slept in it.  Ready to kill the sleeping enemy, at that time a beautiful girl was born from the body of the lord who had divas in his hand, he broke the chariot in pieces, destroying the weapons of Moore.  Still that knight did not show his back.  Came close to the girl to wrestle.  The girl pushed and dropped and when yo yo mal is the fruit of war, when she got up, she cut off her head and said that it is the fruit of hatha yoga.  Sub Mur's army fled to Hades.  When the god awakened from sleep, the girl said, this monster came here with the desire to kill you.  I originated from your body and killed it.  God said, you have protected all the Gods, I am happy on you, I am ready to give a boon whatever you desire in your heart, ask for a girl who says that the man who fasts should have milk son money in his house and he will finally  Get your folk.  Lord said, you have been born on Ekadashi date, hence your name Ekadashi will be famous.  Those who observe your fast with devotion will get the fruits of bathing in all the pilgrimages, that is, their mind will be purified, in the end, they will receive the supreme abode, who will be your fasting borrower from gross sins.  After killing the demon named Mura, he also read 1 name of Lord Vishnu, Murari.  The name of the descendant Pavni Vishwa Tarini was born in the Krishna Paksha of Margashirsha month, hence his name Utpanna.  This story is described in the future Uttar Purana

 Falahar_ It contains jaggery and almond flour.  Guddu flour content can also be taken from milk nuts and fruits

Sunday, June 28, 2020

एकादशी महात्म्य में अर्थात 26 एकादशियों के महात्मय का वर्णन

जो पुण्य चंद्र या सूर्य ग्रहण में स्नान या दान से होता है जो पुण्य अन्नदान जल दान स्वर्ण दान भूमि दान गौ दान कन्यादान तथा अश्वमेधा यज्ञ करने से होता है,उससे अधिक पुण्य एकादशी व्रत रखने से होता है एकादशी व्रत रखने से शरीर स्वस्थ रहता है अंतरियो की मैल दूर हो जाती है हृदय  शुद्ध हो जाता है। श्रद्धा भक्ति उत्पन्न हो जाती है। प्रभु को प्रसन्न करने का मुख्य साधन एकादशी का व्रत कहा है।एकादशी व्रत करने वाले के पितृ कुयोनि को त्याग कर स्वर्ग में चले जाते हैं एकादशी व्रत करने वाले के 10 पितृ पक्ष की और 10 मातृ पक्ष  के और 10 पत्नी पक्ष की वैकुंठ को जाते हैं। दूध पुत्र धन और कीर्ति को बढ़ाने वाला ऐसा एकादशी का व्रत है एकादशी का जन्म भगवान के शरीर से हुआ है प्रभु के समान पतित पावनी है अतः आपको कोटी शह प्रणाम है।

एकादशी व्रत की विधि

व्रत धारी को दशमी के दिन मांस और प्याज तथा मसूर की दाल इत्यादि निषेध वस्तुओं का त्याग करना चाहिए।रात्रि को ब्रम्हचर्य का पालन करना चाहिए स्त्री से दूर रहे। प्रातः एकादशी को लकड़ी का दांतुन  ना करें। नींबू जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और उंगली से कंठ शुद्ध कर ले। वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है अतः स्वयं गिरा हुआ पता लेकर सेवन करें। फिर सनान कर मंदिर में जाना चाहिए। गीता का पाठ करना या सुनना चाहिए। प्रभु के सामने यह प्रण करना चाहिए कि आज मैं चोर पाखंडी और दुराचारी मनुष्य से बात नहीं करूंगा अपितु भगवान का भजन कर उन्हें प्रसन्न करूंगा। दीपमाला से भुवन में प्रकाश करूंगा ओम नमो भगवते वासुदेवाय । रात्रि को जागरण करके कीर्तन करूंगा। इस द्वादश अक्षर के मंत्र का जाप करूंगा। रामकृष्ण नारायण इत्यादि विष्णु सहस्रनाम को कंठ का भूषण बनाऊंगा।ऐसी प्रतिज्ञा करके प्रभु मंदिर में प्रार्थना करें कि मेरी लाज आपके हाथ में है अतः मेरे प्राण को पूरा कराना।
यदि अचानक भूलवश किसी निंदक से बात कर बैठे तो आप का पाप दूर करने के लिए सूर्य नारायण के दर्शन तथा धूप दीप से भगवान की पूजा कर क्षमा मांग लेनी चाहिए एकादशी के दिन झाड़ू ना देनी चाहिए क्योंकि चिंटी आदि जीव मर जाते हैं
तथा बाल ना कटाने चाहिए अधिक ना बोलना चाहिए गृहस्ती को अन्न का दान देना चाहिए, अनदान लेना वर्जित है झूठ कपट आदि कुकर्म नहीं करने चाहिए और दशमी के साथ मिली हुई एकादशी वृध्द मानी जाती है।
शिव उपासक तो उसको मान लेते हैं वैष्णव के योग्य द्वादशी से मिली हुई एकादशी का व्रत करना चाहिए और त्रयोदशी आने से पहले व्रत पूर्ण कर लेना चाहिए। फलाहारी को गोभी गाजर शलगम पालक कुल्फा मसूर किंग इत्यादि नहीं खाना चाहिए मूली आम अंगूर केला बदाम पिस्ता इत्यादि  अमृत फलों का सेवन करना चाहिए प्रत्येक वस्तु को प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर खाना चाहिए द्वादशी के दिन  ब्राह्मणों को मिष्ठान दक्षिणा से प्रसन्न कर परिक्रमा ले लेनी चाहिए किसी संबंधी की मृत्यु हो जाए उस दिन एकादशी व्रत रखकर उसका फल उसे संकल्प कर देना चाहिए और गंगा जी में अस्ति प्रवाह करने पर भी एकादशी व्रत रखकर फल प्राणी के निमित्त दे देना चाहिए प्राणी मात्र को जगतपिता का अवतार समझकर किसी से छल कपट ना करना मधुर भाषण ना करना कोई अपमान करे तो उसे आशीर्वाद देना क्रोध ना करना क्योंकि क्रोध चांडाल का रूप माना गया है आप देवता रूप हो संतोष कर लेना संतोष का फल सर्वदा सुख कारी होता है सत्य भाषण करना मन में दया रखना इस विधि से व्रत करने वाला दिव्य फल को प्राप्त करता है।

Description of Mahatmya of Ekadashi i.e. 26 Ekadashis


 Punya is done by bathing or donating in lunar or solar eclipse, which is done by performing charity donations, donating water, donating gold, donating land, donating cow, donating Kanyadaan and Ashwamedha Yagya, more than that is done by keeping Ekadashi fast, keeping the body healthy  The dirt of the interiors goes away, the heart becomes pure.  Devotion devotion arises.  The main means of pleasing the Lord is called Ekadashi fast. Ekadashi fasters leave their ancestral Kuyoni and go to heaven. Ekadashi fasters go to 10 ancestral side and 10 maternal side and 10 wife side to Vaikuntha.  Huh.  Milk son is such a fast of Ekadashi, which increases wealth and fame, Ekadashi is born from the body of God, is a holy sanctuary like the Lord, so you have to bow down.

 Method of fasting for Ekadash


 Fasting stripe should sacrifice meat and onions and lentils and other prohibited things on Dashami. Brahmacharya should be observed at night. Stay away from women.  Do not make wooden teeth on Ekadashi in the morning.  Chew with lemon berries or mango leaves and cleanse the throat with your finger.  It is also forbidden to pluck the leaf from the tree, so take it after taking the fallen address.  Then you should visit the temple carefully.  One should recite or listen to the Gita.  It should be resolved in front of the Lord that today I will not talk to a thief hypocritical and vicious person, but I will please God by worshiping him.  I will light in Bhuvan from Deepmala Om Namo Bhagwate Vasudevaya.  I will do Kirtan after awakening at night.  I will recite the mantra of this double letter.  Ramakrishna Narayan etc. I will make Vishnu Sahasranama Bhushan of the throat. Make a pledge and pray in the Prabhu temple that my shame is in your hand, so make my life complete.

 If you accidentally sit talking with a cynic, then to remove your sin, you should pray to God with the sight of Surya Narayana and the incense lamp and ask for forgiveness on the day of Ekadashi, not to sweep it because the ants die.

 And no hair should be cut, no more should be said, the householder should donate food, it is forbidden to take food, false pretenses, etc. should not be misdeeds and Ekadashi mixed with Dashmi is considered old age.

 Shiva worshipers believe that one should fast on the Ekadashi found on the Dwadashi worthy of Vaishnavism and complete the fast before coming to Trayodashi.  Falahari should not eat cabbage, carrot, turnip spinach, kulfa, lentil king, etc., should eat nectar fruits like radish, mango grape, banana, badam, pistachio, etc. Everything should be eaten by offering it to the Lord and offering it to the Lord and leaving Tulsidal, on the day of Dwadashi, the Brahmins will be pleased with the sweet dakshina and take the circumambulation.  On the day of death of a relative, he should resolve his fruit by keeping Ekadashi fast on that day, and even after flow of Ganga ji, by keeping Ekadashi fast, he should give the fruit for the sake of the creature, considering the mere creature as the incarnation of Jagadpita and deceit someone  Don't make a sweet speech, don't do any insult, bless him if you don't insult him, because anger is considered to be the form of a chandala, you can be a godly form, you can always be happy as a fruit of contentment.  The doer receives the divine fruit.

Prithvi ka dukh varnan

  पृथ्वी का दुख वर्णन सूत जी बोले द्वापर युग  में अंत समय में पृथ्वी का भार बहुत बढ गया। नाना प्रकार के अत्याचारों से पीड़ित पृथ्वी तब दुखी ...