तुलसी दल चयन
स्कंद पुराण का वचन है कि जो हाथ पूजा अर्थ तुलसी चुनते है है,वे धन्य है--
तुलसी ये विचिन्वन्ति धन्यास्ते करपल्लवा:।
तुलसी का एक एक पता ना तोड़ कर पतियो के साथ अग्र भाग को तोड़ना चाहिए तुलसी कि मंजरी सब फूलो से बढ़ कर मानी जाती है मंजरी तोड़ते समय उसमें पतियों का रहना भी आवश्यक माना गया हैं।निम्न लिखित मंत्र पड़कर पूज्य भाव से पोधे को हिलाए बिना तुलसी के अग्र भाग को तोड़े।इससे पूजा का फल लाख गुना बढ़ जाता है।
तुलसी दल तोड़ने के मंत्र
तुलस्यमृतजन्मासि सदा त्वं केशव प्रिया ।
चिनोमि केशवस्यार्थे वरदा भव शोभने।।
त्वंदंग संम्भवै: पत्रै: पूजयामि यथा हरिम्।
तथा कुरू पवित्रांगि ! कलौ मलविनाशिनि।।
तुलसी दल चयन में निषिद्ध समय ---
वैधृति और व्यतिपात -इन दो योगो में,मंगल, शुक्र और रवि। इन तीन वारो में,द्वादशी अमावस्या एवम् पूर्णिमा। इन तीन तिथियों मै, सक्रांति जनना शौच तथा मरना शौच मै तुलसी दल तोड़ना मना है सक्रांति,अमावस्या,द्वादशी, रात्रि और दोनों संध्यायो में भी तुलसी दल ना तोड़े,किन्तु तुलसी के बिना भगवान कि पूजा पुरन नहीं मानी जाती,अतः निषिद्ध समय में तुलसी वृक्ष से स्वयं गिरी हुई पति से पूजा करें (पहले दिन के पवित्र स्थान पर रखे हुए तुलसी दल से भी भगवान की पूजा की जाती है)। शालिग्राम की पूजा के लिए निषिद्ध तिथियों में भी तुलसी तोड़ी जा सकती है बिना स्नान के और जूता पहन कर भी तुलसी ना तोड़े ।