"zone name","placement name","placement id","code (direct link)" apnevichar.com,Popunder_1,15485358,"" 996.com,DirectLink_1,15488589,https://gw7eez7b7fa3.com/jcbu8318e4?key=806f9e0a5edee73db1be15d7846e32a6 भारतीय समाज में धर्म का महत्व: May 2020

Saturday, May 30, 2020

                        तुलसी दल चयन

स्कंद पुराण का वचन है कि जो हाथ पूजा अर्थ तुलसी चुनते है है,वे धन्य है--

तुलसी ये विचिन्वन्ति धन्यास्ते करपल्लवा:।

तुलसी का एक एक पता ना तोड़ कर पतियो के साथ अग्र भाग को तोड़ना चाहिए तुलसी कि मंजरी सब फूलो से बढ़ कर मानी जाती है मंजरी तोड़ते समय उसमें पतियों का रहना भी आवश्यक माना गया हैं।निम्न लिखित मंत्र पड़कर पूज्य भाव से पोधे को हिलाए बिना तुलसी के अग्र भाग को तोड़े।इससे पूजा का फल लाख गुना बढ़ जाता है।

तुलसी दल तोड़ने के मंत्र

तुलस्यमृतजन्मासि सदा त्वं केशव प्रिया ।

चिनोमि केशवस्यार्थे वरदा भव शोभने।।

त्वंदंग संम्भवै: पत्रै: पूजयामि यथा हरिम्।

तथा कुरू पवित्रांगि ! कलौ मलविनाशिनि।।

तुलसी दल चयन में निषिद्ध समय ---

                                                            वैधृति और व्यतिपात -इन दो योगो में,मंगल, शुक्र और रवि। इन तीन वारो में,द्वादशी अमावस्या एवम् पूर्णिमा। इन तीन तिथियों मै, सक्रांति जनना शौच तथा मरना शौच मै तुलसी दल तोड़ना मना है सक्रांति,अमावस्या,द्वादशी, रात्रि और दोनों संध्यायो में भी तुलसी दल ना तोड़े,किन्तु तुलसी के बिना भगवान कि पूजा पुरन नहीं मानी जाती,अतः निषिद्ध समय में तुलसी वृक्ष से स्वयं गिरी हुई पति से पूजा करें (पहले दिन के पवित्र स्थान पर रखे हुए तुलसी दल से भी भगवान की पूजा की जाती है)। शालिग्राम की पूजा के लिए निषिद्ध तिथियों में भी तुलसी तोड़ी जा सकती है बिना स्नान के और जूता पहन कर भी तुलसी ना तोड़े ।



               बासी  जल और फूल का निषेध

जो फूल, पते और जल बासी हो गए हो, उन्हे देवताओं पर ना चदाए। किंतु तुलसी दल और गंगाजल बासी नहीं होते।तीर्थो का जल भी बासी नहीं होता। वस्त्र, यज्ञोपवीत और आभूषण में भी निर्मालय दोष नहीं आता।
माली के घर मै रखे हुए फूलों मै बासी दोष नहीं आता। दोना तुलसी की ही तरह एक पोधा होता है भगवान विष्णु को यह बहुत प्रिय है। स्कंद पुरण मै आया है कि दोना की माला भगवान की इतनी प्रिय है कि वे इसे सुख जाने पर भी स्वीकार कर लेते है मनी ,रत्न, सुवर्ण,वस्त्र आदि से बनाए गए फूल बासी नहीं होते।इन्हे परोक्षण कर  चढ़ाना चाहिए।
नारद जी ने मानस (मन के व्दारा भावित) फूल को सबसे श्रेष्ठ फूल माना है।उन्होंने देवराज इंद्र को बतलाया है कि हजारों करोड़ों ब्राह्य फूलों को चड़ा कर जो फल प्राप्त किया जा सकता है वह केवल एक मानस फूल चढ़ा ने से प्राप्त हो जाता हैं। इसलिए मानस पुष्प ही उतम पुष्प है बाह्य पुष्प तो निरमालय भी होते है।मानस पुष्प में बासी आदि कोई दोष नहीं होता।इसलिए पूजा करते समय मन से गड़कर फूल चडा ने का अद्भुत आनंद अवश्य प्राप्त करना चाहिए।

सामान्यतया निषिद्ध फूल

यहां उन निषेध फूलो को दिया जा रहा है जो सामान्यतया सब पूजा मै सब फूलो पर लागू होते है। भगवान् पर चढ़ाया हुआ फूल निर्मलाय्य होता है सूंघा हुए या अंग मै लगाया हुआ फूल भी इसी कोटि मै आता है। इन्हे ना चढ़ाएं। भोरे के सूघने के फूल दूषित नहीं होते ।जो फूल अपवित्र बर्तन मै रख दिया गया हो अपवित्र स्थान मै उत्पन हो आग से झुलस गया हो,कीड़ों से विढ़ हो सुंदर ना हो।जिसकी पंखुड़ियां बिखर गई हो,
जो पृथ्वी पर गिर पड़ा हो,जो पूर्णतः खिला ना हो,जिसमें खटी गनध या सनाढ़ आती हो, निर्गनध हो या उग्र ग्नध वाला हो,ऐसे पुशपो को नहीं चढ़ाना चाहिए जो फूल बाये हाथ,पहनने वाले अधोवस्त्र आक और रेंड के पते मै रखकर लाए गए हो वे फूल त्याज्य है कलियोको चढ़ाना मना है किन्तु यह निषेध कमल पर लागू नहीं है।फूल को जल मै डूबाकर धोना मना है।केवल जल से इसका प्रोक्षन कर देना चाहिए।

पुष्पादि चढ़ाने की विधि

फूल फल और पते जैसे उगते है,वैसे ही इन्हे चढ़ाना चाहिए।
उत्पन होते समय इनका मुख ऊपर की ओर होता है। अतः  चढाते समय इनका मुख ऊपर की ओर ही रखना चाहिए ।इनका मुख नीचे की ओर ना करे। दुर्वा एवं तुलसी दल को अपनी ओर और विलवपत्र नीचे की ओर मुखकर चढ़ाना चाहिए।इनसे भिंन पतो को उपर मुख्कर या नीचे मुख कर दोनों ही प्रकार से चढ़ाया जा सकता है दाहिने हाथ के करतल को उतान कर मध्यमा अनामिका और अंगूठे की सहायता से फूल चढ़ाना चाहिए।

उतारने की विधि

चढ़े हुए फूल को अंगूठे और तर्जनी की सहायता से उतारे।

Friday, May 29, 2020

             विल्व पत्र तोड़ने का निषिद्ध काल

विल्व पत्र चढ़ाने का हमारे शास्त्रों में बढ़ा महत्त्व है और शिव भगवान को यह बहुत प्रिय है_

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम् ।

त्रि जन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ।।

जो भी ये विल्व पत्र चढ़ाता है उसके तीन जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं ।
             किन्तु विल्व पत्र तोड़ने के लिए भी नियम बताए गए हैं कुछ निशिध्द तिथियां है चतुर्थी, अष्टमी,नवमी, चतुर्दशी,और अमावस्या तिथियो  को, संक्रान्ति, और सोमवार को विल्वपत्र न तोड़ें। किन्तु विल्व पत्र शंकर जी को बहुत प्रिय है अतः निषिद्ध समय में पहले दिन का रखा हुआ विल्व पत्र चढ़ाना चाहिए। शास्त्र ने तो यहां तक कहा है कि यदि नूतन विल्वपत्र ना मिल सके तो चढाऐ हुए बिल्वपत्र को ही धोकर बार बार चढ़ाता रहे।
विल्व पत्र का मूल भाग तोड़कर ही विल्व पत्र को चढ़ाना चाहिए और विल्व पत्र पर राम राम लिखकर विल्व पत्र को चढ़ाना चाहिए

Thursday, May 28, 2020

               ्श्री संकष्ट नाशन् गणेश स्तोत्रम्            

इस स्तोत्र का पाठ करने से सारे संकट का नाश होता है और जो व्यक्ति  नित्य प्रति ६ महिने  पाठ करता है  उसे सिध्दि मिल जाती है इसमें कोई संदेह नहीं है नारद पुराण में स्पष्ट लिखा है
            इसलिए इसका नित्य प्रति पाठ करना चाहिए।        

                 प्रणम्य  शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।                           भक्तावासं स्मरेनित्यमायुष्कामार्थसिध्दये।।                           प्रथमं वक्र तुण्डं च एकदन्तं‌ द्वितीयकम् ।                             तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ।।                           लम्बोदरं पंचमं च   षष्ठं विकटमेव     च ।                             सप्तमं विघ्नराजेन्दरं धूम्रवर्णं तथाष्टमम्।।                           नवमं भालचन्द्रं  च  दशमं तु विनायकम्।                             एकादशं गणपतिं व्दादशं  तु  गजाननम्।।                          व्दादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:।                          न च विघ्नभयं तस्य सर्व सिध्दिकरंपरम्।।                           विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।                          पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्।।                      जपेद् गणपति स्त्रोतं षड्भिर्मासै: फलं‌ लभेत्।                       संवत्सरेण सिध्दिं च लभते नात्र संशय:।।   ्                       अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत्।                      तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।             श्री  नारदपुराणे संकष्ट नाशनं नाम गणेशस्तोंत्रं  संपूर्णम् ।।




Tuesday, May 26, 2020

                गुरू                                  

प्रश्न,_गुरू का अर्थ क्या है
उत्तर-गुरू गु का मतलब अंधकार।
रू‌ का मतलब प्रकाश ।
गुरु-अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले को
गुरु कहते हैं जो गुरु प्रेम रखें जो गुरु अपने हित में 
हो उसे गुरू कहते है गुरू को देखते ही अपना पूरा 
शरीर सोचे बिना ही उनके चरणों में झुक जाता है 
वहीं सचा गुरू होता है उसे ही गुरू कहते है 
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Monday, May 25, 2020

25/05/2020

                         आरती संग्रह

ओम्  जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ।    स्वामी । 
भक्तजनों के संकट ,दुखियो जनो के संकट क्षण में दूर करे     
                         ओम जय जगदीश हरे।                         
१.जो ध्यावे फल पावे, दुख बिंन से मन का । स्वामी ---।
सुख संपति घर आवे, श्याम सुंदर घर आवे । कष्ट मिटे तनका 
                          ओम जय जदीश हरे।                           
२. माता पिता तुम मेरे, शरण पडूं मै किसकी।स्वामी___।
तुम बिन और न दूजा, आस करू मैं किसकी।                                                 ओम जय जगदीश हरे
३. तुम पूरण पमात्मा,तुम अन्तर्यामी  ।स्वामी___।              
पार ब्रम्हा परमेश्वर ,तुम सबके स्वामी।                            
                        ओम जय जदीश हरे।
४.तुम करुणा के सागर,तुम पालन कर्ता। स्वामी____।          
मै मूर्ख खल कामी ,कृपा करो भरता।                                
                         ओम जय जगदीश हरे।                         
५. तुम हो एक अगोचर,सबके प्राणपति। स्वामी___।            
किस विध विलू मै दयालु ,तुमको मै कुमति।                       
                        ओम जय जगदीश हरे।                          
६. दिन बंधु दुख हरता,तुम रक्षक मेरे । स्वामी __।                
अपने हाथ उठाओ दया कर चरण लगाओ द्वार पड़ा मै तेरे ।   
                        ओम जय जगदीश हरे।                          
७ विषय विकार मिटाओ,पाप हरो देवा ।    स्वामी__।           
श्रदा भक्ति बढ़ाओ , संत्तन की सेवा।                                 
                         ओम जय जगदीश हरे।                         
८. तन मन धन सब कुछ है तेरा । स्वामी __।                      
तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा ।                                  
                           ओम जय जगदीश हरे।                       ९.श्याम सुंदर जी की आरती जो  कोई नर गावे।स्वामी__।     
कहत शिवा नन्द स्वामी सुख संपति पावे ।                                                        ओम जय जगदीश हरे ।                   
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Sunday, May 24, 2020


 आंखों के सभी रोगो का अचूक उपाय ----------

 कुछ ही दिनों में सभी नेत्र रोगों से  छुटकारा पाए      

                     (चाक्षुषी विद्या)

इस चाक्षुषी विद्या के श्रद्धा _विशवास पूर्वक पाठ करने से नेत्र के समस्त  रोग दुर हो जाते हैं। आंख की ज्योति स्थिर रहती है। इस पाठ का नित्य पाठ करने वाले के कुल में अंधा नहीं होता। पाठ के अंत में गनधायुकत जल से सूर्य को अर्घ्य देकर नमस्कार करना चाहिए मानो ये आंखों के लिए वरदान है_



विनियोग --- ओम्  अस्याश्चाक्षुषीविद्या अहिर्बुधन्य ‌‌ऋषिर्गायत्री छन्द: सूर्यो देवता चक्षूरोग निवृतये विनियोग: ।
 ओम् चक्षु: चक्षु: चक्षु: तेज: स्थिरो भव । मां. पाहि पाहि । त्वरितं चक्षू रोगान् शमय शमय ।मम जातरुपं तेजो दर्शय दर्शय।यथा   अहम् अंधो ना स्याम तथा कल्पय कल्पय । कल्याणं कुरु कुरु ।यानि  मम पूर्वजन्मोपार्जितानि चक्षु:  प्रति रोध कदुष्करितानि  सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय । ओम् नमः चक्षुस्तेजोदातरे दिव्याय भास्कराय । ओम् नमः करूणा- कराया मृताय । ओम् नमः सूर्याय । ओम् नमो भगवते सूर्यायांक्षितेजसे नमः ।खेचराय नमः। महते नमः। रजसे नमः।तमसे नमः।असतो मां सदगमय । तमसो मां ज्योतिर्गमय । मृत्योरमा अमृतं गमय। उष्णो भगवांछुचि रुप:।हंसो भगवान् शुचिरप्रतिरुप: ।
      य इमां चाक्षुषमति विद्यां ब्राह्मणों नित्यमधीते न तस्याक्षिरोगो भवति। न तस्य कुले अन्धो भवति। अष्टौ ब्राहम्णान् सम्यग् ग्राहयित्वा विद्या सिध्दिर्भवति। ओम् नमो भगवते आदित्याय अहोवाहिनी अहोवाहिनी स्वाहा।
  ( जो कोई भी इसका नित्य प्रति पाठ करता है उसके नेत्र ज्योति बढ़ती है और न कुल में कभी अन्धा होता है  पाठ के बाद अर्घ्य जरुर देवे )

Friday, May 22, 2020

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                               नित्य दान
नित्य प्रति दान करना चाहिए।वेद ने कहा है कि दान बहुत ही जरुरी है और बड़ी श्रदा के साथ करना चाहिए । अपनी जैसी सम्पत्ति हो ,उसके अनुसार दान करना चाहिए।देते समय अभिमान ना हो।क्यु कि आजकल देख दिखावा ज्यादा है अगर किसी ने थोड़ा कुछ कर दिया तो हमें तो उससे जयादा ही करना है ताकि लोग देखे और बोले इसने तो इतना किया और फ़िर तीसरा आदमी उससे भी ज्यादा करने की कोशिश करेगा।नहीं ऐसा बिल्कुल नी करना चाहिए दान का मतलब है श्रदा से जो दिया जाए। चाहे वो १ पैसा ही क्यों नहीं। अगर श्रदा से एक पैसा भी दोगे तो वो भी एक लाख के बराबर है दान लजा से विनम्र होकर देना चाहिए और दान सुपात्र को ही करना चाहिए शास्त्र का आदेश है कि स्थिति विपन हो तो को कुछ भोजन के लिए मिले,उससे ग्रास ही दान कर दे।महाभारत में कहा गया है कि यदी एक दिन भी दान के बिना बीत जाए ,तो उस दिन उस दिन इस तरह शोक प्रकट करना चाहिए जिस तरह लुटेरों से लुट जाने पर मनुष्य करता है दाता पूरब की ओर मुख कर के दे और लेने वाला उतर कि ओर मुख कर के।इससे दोनों का हित होता है माता, पिता और गुरू को अपने पुनय का दान किया जाता है 
Hindu dhrm ko manne Wala vykti or sbhi bhkt logo ko apne ghr Mai hmesha 5 gakar ki puja krni chahiye or hmesha ye 5 chize ghr Mai honi chahiye or jiske ghr Mai ye 5 chize ni hoti hai shashtro Mai likha hai be ghr shamshan tuly hota hai
1 Geeta 
2 gaytri
3 ganga jal
4 gow mata 
5 govind 
Shri mad bhgwad Geeta ghr Mai hmesha honi chahiye or gaytri ki murti..ganga jal 
Gow mata ki hmesha sewa krni chahiye or govind ki puja krni chahiye🙏🙏🙏

Thursday, May 21, 2020

                               
                             
 
                               Doha

Shri guru charan saroj  raj.
nij man mukuru sudhari.
 barnau raghubar beemal jasu.
 jo dayku fal chari.
budhiheen  tanu janike sumiro pawan kumar.
balbudhibidya dehu mohe harhu klesh vikar.       
jai hanuman gyan gun sager
jai kpees tihu lok ujagar
ram doot atulit baldhama
anjni putar pawan sut nama
             
mahaveer vikram bajrangi
kumti niwar sumti k sangi
kanchan baran bitaj subesa
kanan  kundal kunchit kesa

 hath bajr or dhwaje  viraje
kandhe muj jneu saje
shankar suvan kesri nandan
tej partap maha jag bandan

vidya wan guni ati chatur
ram kaj kribe ko aatur
parbhu chriter sunibe ko rasiye
ram lakhan sita man bsiya

sukhshm roop dhri sih dijhawa
vikt Roop dhri lank jrawa
Bheem Roop Shri asur anghare
Ram chander k kaj sware

Lay sjeewan lkhan jiyaye
Shree rdhubeer harshi urlaye
Rghupati kinhi bahut bdayi
Tum mam priy bhrtahi Sam Bhai

Sahas badan tumro has gave
As khi Shri pti kanth lgave
Sankadik brmadik munisha
Narad sarad sahit ahisa
Jam kuber dikpal jahate
Kbi kobid khi ske tahan te
Tum upkar sugrivhi tinha
Ram milay Raj pad Dina
 Tumro manter bibhishan Mana
Lankeshwer bhy sb jag Jana
Joog shahater jojan or bhanu
Lilyo tahi madhr fal janu



Parbhu mudrika meli mukhi mahi
Jaldhi laghi gye achraj nahi
Durgam kaj jagat k jete
Sugam anugreh tumre Tere

Ram duaare tum rkhware
Hot na aagya binu pesare
Sub sukh lahe tumari sarma
Tum rchak kahu ko Drna


21/05/2020

jindgi mai kuch na kr sko ak kam krna 3 fectory jrur lagana..ab aap log bologe ki hmare paas etna pesa kahan?
to dosto esme pese ki jrurat bilkul b ni hai
kon kon ki fectory. 
1.ice fectory
2.sugar fectory
3.love fectory
1.ice fectory...matlab kya....dimag ko hmeaha thanda rkho gusa mat kro.ak bar ki bat hai mai khi apne yajman ji k ghr pr puja path kr rha tha to wahan kuch bat chli thi to usi bat pr yajman ji bole pandit ji. mene kaha kya..bole mere ko gusa krta hua aadmi bilkul rakshash jesa dikhta hai mene kaha kyu?bole ak bar mera beta kuch shrarat kr rha tha to mene phle bahut samjhaya pr wo ni mana mafi time bad mere ko gusa aaya to mene usi baju se pakad kr dur fek diya or thodi der mai kya kekha ki bete ki bazu hi tut gyi bazu utar gyi.bole ji mere pesa bahut hai pr mene videsho mai b elaj krwaya pr baju thik ni hui tb mai misi ko gusa krte hue ni dekh skta to kbi gusa ni krna chahiye
2.sugar fectory...juban ki hmesha mitha rkho kisi k prati dvesh bhav na rkho...koa kisi ka kuch hrta ni jo log uspr pathar fecte hai or koyal kisi ko kuch deti ni hai jo log mdari ko sunne k 10 ..20 de dete hai esliye hmesha meetha bolo
3 love fectory.. hmsesha sbse prem kro ye wo prem ni hai jo kl ka viprit prem hai ye wo prem hai jo ak maa ka apne bcho k prati hota hai guru ka shishay k prati hota hai..

Prithvi ka dukh varnan

  पृथ्वी का दुख वर्णन सूत जी बोले द्वापर युग  में अंत समय में पृथ्वी का भार बहुत बढ गया। नाना प्रकार के अत्याचारों से पीड़ित पृथ्वी तब दुखी ...