"zone name","placement name","placement id","code (direct link)" apnevichar.com,Popunder_1,15485358,"" 996.com,DirectLink_1,15488589,https://gw7eez7b7fa3.com/jcbu8318e4?key=806f9e0a5edee73db1be15d7846e32a6 भारतीय समाज में धर्म का महत्व: July 2020

Sunday, July 19, 2020

चन्द्र ग्रह

फारसी भाषा में इसे कमर एवं अंग्रेजी में moon कहते हैं यह स्त्री गृह है इसका दिन सोमवार है रंग दूध के समान सफेद है। सूर्य और बुध इसके मित्र तथा शुक्र गुरू मंगल इसके सम ग्रह है।राहु से माध्यम एवं केतु ग्रहण योग बनता है चन्द्र की आयु १०० वर्ष तक रहती है।इसका काल २० वर्ष २४ दिन रहता है इसका प्रभाव प्रारंभ में होता है और तीव्र होने की गति सामान्य रहती है। वैसे इसकी आयु २४ वर्ष की होती है लेकिन शनि साथ होने पर आयु आठ वर्ष की होती है 
सूर्य चंद्र का सम्बन्ध हो जाए  तो चन्द्र का प्रभाव अशुभ तथा २४ वर्ष में अधिक प्रभाव शाली होता है।

जातक पर प्रभाव

चन्द्र ६,८,१०,११,१२ घर में अशुभ फल देता है तथा २,३,४,५,७,९ घर में शुभ फल देता है।
अकेला चंद्रमा किसी घर में बैठा तो ऐसा जातक विनम्र सद्व्यवहारी एवं दयालु होता है।चन्द्र १२ घर में बैठा हो तो उसके अशुभ फल मिलते हे।चन्द्र के अशुभ होने पर दुधारू पशु की मृत्वी होती हैं
जातक की जमीन में बोई हुई फसल सुख जाती है तथा घर के नल का पानी खारा हो जाता है व्यक्ति की सोचने शमझने की शक्ति नष्ट हो जाती है।उसका विवेक काम नहीं करता।

उपाय

बुजुर्गो की सेवा करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त करे।

महादेव की पूजा करे।सोमवार का व्रत करे।व्रत वाले दिन शाम को दाए हाथ से चांदी और चावल का दान ब्राह्मण को करे।

चांदी की अंगूठी धारण करे 

Saturday, July 18, 2020

सूर्य ग्रह का जातक पर प्रभाव

सूर्य ग्रह

इसे फारसी मै शमस और अग्रेजी में sun कहते हैं इसका दिन रविवार है रंग तांबे के जैसे होता है।चन्द्र गुरू मंगल इसके मित्र और शनि केतु शत्रु ग्रह है।
इस ग्रह की आयु १०० वर्ष और काल २२ वर्ष २२ दिन का है किसी भी ग्रह के साथ रहने पर इसकी आयु २२ वर्ष की रहती है।
लाल किताब के अनुसार सूर्य १०,७,६ घर में अशुभ फल देता है।११,१२,९,८,५ घरों में शुभ फल देता है।

जातक पर प्रभाव

अशुभ सूर्य जन्मकुंडली में होने पर उसका कई प्रकार का प्रभाव जातक पर पड़ता है।ऐसा जातक दुख एवम् दरिद्रता जैसा जीवन जीता है।सूर्य के अशुभ होने पर जातक का शरीर लकड़ी के समान अकड़ने लगता है। और जातक को धीरे धीरे चलने की समस्याएं होती है जातक को पशुहानि भी होती है।

उपाय

भगवान विष्णु की उपासना करे
रविवार का व्रत रखे।उस दिन तांबा एवं गेहूं का दान करे।
तामसी पदार्थो का सेवन ना करे।
ब्रह्मशचर का पालन करे। मन पवित्र करे।
कोई भी काम शुरू करने से पहले मिष्ठान खाकर पानी पिए।
मिष्ठान ना हो तो गूड खाकर पानी पिए और कार्य आरंभ करें।
रवि वार के दिन गुड एवं तांबा बहते पानी में प्रवाहित करे।

Tuesday, July 14, 2020

द्वादश ज्योतिर्लिंग

सौराष्ट्र सोमानाथं च, श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। 

उज्जयिन्याम महाकालं ओमकारं ममलेश्वरम।।

केदारं हिमवत्पृष्ठै,डाकिन्यां भीमशंकरं।

वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमीतटे।।

वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।

सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये।।

द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत्।

सर्व पाप विनिर्मुक्त: सर्वसिद्धि फलं भवेत्‌।

इस प्रपंच में अति प्राचीन मत शैव मत है। परम शिव के पंचमुख के द्वारा पंचभूत और पंचन मात्र के जन्न और इस सृष्टि का आरंभ है। शिव तत्व अति सूक्ष्म होने के कारण से केवल आत्मा को ही अनुभव हो सकता है। ऐसा शैवागमों से जानकारी होती है। लेकिन परम तत्व स्वरूप शिवयोगी है आतम ज्योति के रूप में सम दर्शन करेंगे बाकी सब को लिंग रूप धारण के बाद ही शिव भौतिक रूप से दर्शन हो जाता है। इसीलिए लिंग श्री शिव का प्रतीक हो गया है यह लिंग आगम शास्त्र के अनुसार 84 यदि कलयुग में 64 रूप में वर्णन किया गया है इनमें 12 ज्योतिर्लिंग पंचमहाभूत लिंगम मोक्ष मार्ग को दे रहे हैं ऐसा कहा जाता है यह भारत देश के चार दिशा में फैले होने के कारण भक्त जनों के शिवा पार है।
ज्योति शास्त्र वेद वर्षों के संकल्प से कई शिवलिंग में 12 ज्योतिर्लिंगों को एक प्रति एकता स्थान होने की संभावना हो सकती है भारत देश में औनत्य एवं पवित्रता की भावना इस महीतत्व पर अध्यात्म के चिंतन भूलों को वासियों को होने का कारण भी पुणे ज्योतिर्लिंग क्षेत्र ही कारण भूत है।
इस भूलों वासी आकाश में रहने वाले सितारे और ग्रह से हर पल बाहर आने वाले सौदामिनी जैसे ज्योति शक्ति थे 12 ज्योतिर्लिंगों का अनुसंधान होता है इसीलिए साधारण मंदिरों के जैसे यंत्र प्रतिष्ठा एवं प्राण प्रतिष्ठा नहीं होने के बाद भी इस सृष्टि का अंत तक ज्योतिर्लिंग दौरान निरंतर ज्योति शक्ति उद्भव होगी ही। इसीलिए इन ज्योतिर्लिंगों को धूने से अथवा दर्शन करने से अनंत पुण्य के साथ अध्यात्मिक भावना सभी भक्तजनों को मिलेगी। यह 12 ज्योतिर्लिंग पूरा देश में ज्योति ही हो गई है इनमें हर 1 ज्योतिर्लिंग प्रति एकता अलग है। इनमें रामेश्वर सोमनाथ में रहने वाले ज्योतिर्लिंग के सिवा बाकी 10 ज्योतिर्लिंग को भक्तजन अभिषेक एवं पूजा से शुद्ध कर सकते हैं।

पुराण गाथा

यह ज्योतिर्लिंग कहां जाता है कि चंद्र से प्रतिष्ठित हुआ है। दक्ष प्रजापति के संतति अश्वनी से लेकर रेवती तक  27 पुत्रीकाओं मैं सब के सब खूबसूरत है दक्ष ने पुत्रियों का सरासर समझ के सौंदर्य मूर्ति होने से चंद्र को शादी करवाई थी पत्नियों में सबसे खूबसूरत होने से चंद्रमा रोहिणी से सबसे अधिक प्यार करता था बाकी सब को असूया जनक रखा था। रोहिणी के सिवा 26 पुत्रियों ने दक्ष प्रजापति को इस बारे में ईर्ष्या प्रकट की थी दक्ष नेट चंद्र को बुलाकर समझाया कि वह ऐसा ना करें सबको प्यार की दृष्टि से देखें सबको बराबर प्यार करें लेकिन चंद्र ने ससुर की बात का ख्याल नहीं किया। और पहले से ज्यादा रोहिणी को प्यार से देखने लगा। इस बार दक्ष ने गुस्से से चंद्रमा को क्षय रोग से पीड़ित होने का शाप दिया। तब से उस शॉप के कारण से चंद्रमा कला विहीन होने लगा था। सुधाकर के सुधाकरण क्षीण हो जाने से अमृत ही केवल पीने वाले देवता लोगों में हाहाकार करने लगे हैं। औषधि की शक्ति सूखने लगी है सारे जगत निस्तेज हो गए हैं। तब इंद्र और बाकी देव बताओ वशिष्ठ आदि मुनियों ने मिलकर चंद्र को साथ लेकर ब्रह्मा के पास जाकर इस महादेव से रक्षा करने की प्रार्थना की थी तब ब्रह्मा ने चंद्र से पवित्र प्रभास तीर्थ के पास परम शक्ति की आराधना करने से उनको सबको शुभ शुभ हो सकता है कहा था। ऐसे ही तो वाक्य कह के चंद्र को मृत्युंजय मंत्रों पदेश किया था। उसके बाद चंद्र ने दे बताओ से मिलकर प्रभास क्षेत्र को ढूंढा वहां महेश्वर की आराधना करके 6 महीने तक घोर तपस्या की थी अत्यंत दीक्षा से 100000000 बार मृत्युंजय मंत्र पठन किया था चंद्र के भक्ति से संतुष्ट होकर शंकर भी चंद्र के सामने प्रत्यक्ष होकर आ गये और कहा वरदान मांगो।
तब चंद्रमा ने उसे परम शिव साष्टांग प्रणाम करके शिव के अनुग्रह प्राप्ति और उनकी कटाक्ष दृष्टि से शाप निवृत्ति करने की प्रार्थना की। करुणामई शिव ने चंद्र की प्रार्थना से प्रसन्न होकर दक्ष  से दिया हुआ शाप प्रत्यायन उपाय चंद्र को अनुग्रह इस प्रकार किया था केवल कृष्ण पक्ष में ही चंद्र के कला विहीन होने का और शुक्ल पक्ष मैं चंद्रकला हर रोज वर्धमान होकर पूर्णमासी के दिन परिपूर्ण कला प्राप्त करके विराजमान होने का अनुग्रह किया था
इस प्रकार का वर प्राप्त करने के बाद चंद्र ने फिर उसका पूर्व जैसे ही अमृत वर्ष सारा जहां को फैलाने लगा। तब ब्रह्मा जी देवता के प्रार्थना से परम शिव ने पार्वती समेत वहां उस प्रभास क्षेत्र में सोमनाथ के रूप में प्रकट होने का आशीर्वाद दिया।

Sunday, July 12, 2020

पृथ्वी का दुख वर्णन

पृथ्वी का दुख वर्णन

सूत जी बोले द्वापर युग  में अंत समय में पृथ्वी का भार बहुत बढ गया। नाना प्रकार के अत्याचारों से पीड़ित पृथ्वी तब दुखी होकर ब्रह्मा की शरण में गई।ब्रह्मा से उसने अपने सम्पूर्ण दूखो  का रो रोकर निवेदन किया।तब ब्रह्मा उसे अपने साथ साथ लेकर भगवान विष्णु के पास गए।भगवान विष्णु शयन काल में थे।उनको शयन करते हुए सतयुग और त्रेता युग बीत गए थे।


भगवान विष्णु के पास जाते समय ब्रह्मा के पास देवादी एवम् समस्त मुनिगन भी संग हो गए।सबने वहां जाकर समाहुक प्रार्थना की।तब भगवान विष्णु की योगनिद्रा की निंद्रा टूटी।उन्होंने सबके आने का कारण पूछा।तब ब्रह्मा ने उनको पृथ्वी का सारा दुख बतलाया। इस पर विष्णु भगवान सबके साथ स्मेरू पर्वत पर आए।तब वहां पर दिव्य सभा हुई। इस सभा में पृथ्वी ने अपने सारे दुखों का वर्णन किया।





परमपिता ब्रह्मा ने तब भगवान विष्णु से पृथ्वी को हरण करने की प्रार्थना की।उनसे निवेदन किया कि पृथ्वी पर आकर अवतार ग्रहण करे।
ब्रह्मा इस प्रार्थना पर विष्णु बोले आज से काफी समय पहले मैंने पृथ्वी को भयमुक्त करने का निश्चय कर लिया है मैंने समुद्र को राजा शांतनु के रूप में पृथ्वी पर भेज दिया है। मैं पहले ही जानता था कि पृथ्वी का भार बढ़ेगा। इस कारण पूर्व में ही मैंने श्री शांतनु के वंश की उत्पत्ति कर दी है गंगापुत्र भीष्म भी वसु ही है वह मेरी आज्ञा से गई है महाराज शांतनु की द्वितीय पत्नी से विचित्रवीर्य नामक पुत्र उत्पन्न हुआ है इस समय उनके दोनों पुत्र धृतराष्ट्र और पांडु भूमि पर है। पांडु की दो पत्नियां है कुंती और माद्री। धृतराष्ट्र की पत्नी है गंधारी। अतएव देवता गण शांति वंश में जन्म ले।






 तत्पश्चात में भी जन्म लूंगा भगवान विष्णु के इस कथन पर समस्त देवता गणों वसु गणों आदित्यो
अश्विनी कुमारों ने पृथ्वी पर अवतार ग्रहण किए सब ने भरत वंश में जन्म लिया। सूत जी बोले मुनि वरो। इस प्रकार धर्म ने युधिष्ठिर इंद्र ने अर्जुन वायु ने भीम दोनों अश्वनी कुमार उन्हें नकुल सहदेव सूर्य ने कर्ण बृहस्पति ने द्रोणाचार्य वसुओ ने भीष्म यमराज ने विदुर कली ने दुर्योधन चंद्रमा ने अभिमन्यु भूरिश्रवा ने शुक्राचार्य वरुण में श्रोता युद्ध शंकर ने अश्वथामा कनिक्कने  मित्र कुबेर ने धृतराष्ट्र और यक्षो मैं गंधर्व सर पो देवक अश्व सेन दुशासन आदि के रूप में पृथ्वी पर अवतार ग्रहण किए। इस प्रकार समस्त देवगण लेकर पृथ्वी पर आ गए। नारद जी को जब यह पता चला तो वह विष्णु जी के पास आए और कुपित होकर बोले जब तक नर नारायण जन्म ना लेंगे तब तक पृथ्वी का भार कैसे हल्का होगा?
नर तो अवतार लेकर पृथ्वी पर चले गए। नारायण रूपी भगवान विष्णु यही विराजमान है आखिर आप क्या कर रहे हैं?


नारद की इस बात पर भगवान विष्णु बोले हे नारद इस समय में मैं विचार कर रहा हूं कि कहां और किस वंश में जन्म लूं अभी तक मैं इसका निर्णय नहीं कर सका हूं। मुन्नी्वरो । भगवान विष्णु की इस कथन पर नारद जी ने उनको कश्यप का वर्णन करते हुए कहा कि वह महात्मा वरुण से गाय मांग कर ले गए बाद में वापस नहीं की। इस पर वरुण मेरे पास आया। तब मैंने कश्यप को गवाला हो जाने का शाप दे दिया इस समय कश्यप वासुदेव के रूप में मेरा श्राप भोग रहे हैं उनकी दोनों पत्नियां देवकी और रोहिणी के रूप में उनके साथ है वह पापी कंस के अधीन रहकर दुख पा रहे हैं वरुण के साथ विश्वासघात करने और मेरे श्राप का फल पा रहे हैं मेरा तो यह सुझाव है कि आप उनके यहां ही अवतार ले। नारद कहां के हो प्रस्ताव भगवान विष्णु ने स्वीकार कर लिया। वह क्षीर सागर में स्थित उत्तर दिशा में अपने निवास में चले गए। फिर मेरु पर्वत की गुफा में प्रवेश कर अपनी दिव्य देह त्याग कर वसुदेव के यहां जन्म ग्रहण करने के लिए चले गए।

Friday, July 10, 2020

हरिवंश पुराण महात्म्य

महर्षि वेदव्यास कृत

श्री हरिवंश पुराण महात्म्य

मानव जीवन के लिए उपयोगी इस ग्रंथ का पाठ करने से पूर्व महर्षि वेदव्यास भगवान श्री कृष्ण पांडव पुत्र अर्जुन एवं ज्ञान की देवी सरस्वती का ध्यान करें।
सनातन धर्म की रचीयता महर्षि वेदव्यास जिन्होंने इस पुराण की कथा का वर्णन किया उनके चरण कमलों में सादर वंदन।
अज्ञान की तिमिर में यह प्रकाश ज्योति स्वरूप सबका कल्याण करें। मैं उन गुरुदेव को नमस्कार करता हूं यह अखंड मंडलाकार चराचर विश्वजीत परमपिता परमात्मा से व्याप्त है मैं उनको नमस्कार करता हूं उनका साक्षात दर्शन करने वाले गुरुदेव को नमस्कार करता हूं ज्ञानियों ने हरिवंश पुराण को ब्रह्मा विष्णु शिव का रूप कहां है यह सनातन शब्द ब्रह्म मय 
है। इसका परायण करने वाला मोक्ष प्राप्त करता है जैसे सूर्योदय के होने पर अंधकार का नाश हो जाता है इसी प्रकार हरिवंश के पठन-पाठन श्रवण से मन वाणी और देह द्वारा किए गए संपूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं जो फल अठारह पुराणों की श्रवण से प्राप्त होता है उतना ही फल फल विष्णु भक्त है हरिवंश पुराण के सुनने से मिलता है। इसमें संदेह नहीं है। इसे पढ़ने और सुनने वाले स्त्री पुरुष बालक विष्णुधाम प्राप्त करते हैं। पुत्रदा कांक्षी स्त्री पुरुष इसे अवश्य सुने। विधिपूर्वक हरि वंश पुराण का पठन-पाठन संतान गोपाल स्तोत्र का 1 वर्षीय पाठ अवश्य पुत्र रतन प्रदान करता है जो पुरुष या स्त्री चंद्रमा सूर्य गुरु गुरु गुरुधाम अग्नि की ओर मल मूत्र त्याग करता है वह नपुंसक बांज होता है अकारण फल फूल तोड़ने वाला संतान अक्षय को प्राप्त होता है पर स्त्री गमन पत्नी बनाएं कुंवारी कन्या का शीला हरण करने वाला वृद्धावस्था में घोर दुख पाता है व्यभिचारिणी स्त्री बुढ़ापे में गल गल कर मरती है
निंदनीय और गणित कर्मी महा शोक को प्राप्त होता है
अंत एवं श्री हरिवंश पुराण का परायण कर वह अपना दुख हल्का कर सकता है। हरिवंश पुराण के श्रवण पाटन से बहुत दूर हो सकता है।
हरिवंश पुराण के आवाहन परायण की विधि इस प्रकार है कुशल पंडित को आमंत्रित कर शुभ मुहूर्त निकलवाए। भाद्रपद आश्विन कार्तिक आषाढ़ और श्रवण इन बाहों में इनका सर्वोत्तम परायण माना गया है। सब को आमंत्रित कर नौ दिन तक इसका पाठ करें या करवाएं सभी इष्ट मित्रों को आमंत्रित करें सुंदर कथा चित्र बनाएं सुंदर मंडप का निर्माण करें लक्ष्मी और पुत्रों सहित गोपाल कृष्ण की स्थापना करें यथाशक्ति प्रसाद आदि का वितरण करें भगवान को नैवेद्य अर्पित करें कथा के दिनों में पूर्ण ब्रम्हचर्य का पालन करें पृथ्वी पर शयन करें सुने फिर विश्राम उपरांत संध्या चार बजे से दीप जलाने तक कहे सुने तत्पश्चात विश्राम दे 9 दिनों में इसका संपूर्ण पाठ आवश्यक है कथा पूर्ण मनोयोग से कहें इस कथा के मध्य अन्य वार्तालाप करना या किसी प्रकार का व्यवधान डालना अशुभ माना गया है भक्ति पूर्वक श्री हरिवंश का पठन पाटन श्रवण अत्यंत लाभदायक है।


सूर्य ग्रह दिन रविवार

सूर्य को प्रसन करने का उपाय



सूर्य को कुछ और अनुकूल करने के लिए चावल और गुड बहते पानी में प्रवाहित करें। रविवार को दूध भात मैं गुड़ मिलाकर खुद सेवन करें। गेहूं के आटे के चूर्मे के लड्डू बनाकर बच्चों को बांटे और स्वयं भी खाएं। तांबे का सिक्का बहते पानी में बहाएं। तांबे का सिक्का गले में धारण करने से सूर्य अनुकूल फल देता है। लाल कपड़े में गेहूं गुड या सोना बांध कर दान करने पर सूर्य उच्च फल प्रद बनता है|


गणेश जी की आरती

श्री गणेश जी की आरती

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
लड्डू का भोग लगे संत करें सेवा।।१।।
एक दंत दयावंत चार भुजा धारी।
मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी।।२।।
अंधन को आंख देत कोड़ीन को काया।
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया।।३।।
लड्डू वाला का भोग लगे संत करें सेवा।
हार चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा।।४।।
दिनन की लाज रखो शंभू सतवारी।
कामना को पूरा करो जग बलिहारी।।५।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।

Tuesday, July 7, 2020

सड़क हादसे में तीन की मौत,जिनमें दो भाई

सड़क हादसे में शीलाबग के समीप तीन लोगों की मौत हुई है जिनमे दो सगे भाई थे एक अन्य व्यक्ति था। ये भझशडा नहोल के थे इनमें एक राकेश नमक व्यक्ति जिसकी उम्र केवल 32 ओर उनके ही भाई राजेश उम्र 38 थी और एक व्यक्ति हरीबल नाम का था ये सोलन से नहोल अपने गांव जा  रहे थे और रास्ते में ही शीलाबाग के समीप ही ये दुर्घटानग्रस्ट हो गए । मौके पर ही दोनों भाईयो और तीसरे व्यक्ति की मौत हो गई ।ये सब आपनी पिकअप 1999 में  घर जा रहे थे अचानक बीच रास्ते में दुरघना ग्रस्त हो गए ।भगवान इनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और उनके परिवार को  इस दुखद घड़ी से उभरने की शक्ति प्रदान करें।

Saturday, July 4, 2020

अयोध्या धाम परिचय ।

श्री अयोध्या जी का प्राचीन इतिहास 

एवं अयोध्या गाइड

अयोध्या धाम परिचय

एक समय की बात है कि कैलाश पर्वत पर श्री महादेव जी और पार्वती जी बैठे हुए थे। भगवान शंकर जी को प्रसन्न चित् जानकर माता पार्वती जी ने उनसे पवन पुरी अयोध्या जी का महात्म्य एवं इतिहास जानने की इच्छा व्यक्त की।
महादेव जी ने कहा हे प्रिय। अयोध्यापुरी सभी नदियों में श्रेष्ठ सरयू नदी के दाहिने किनारे पर बसी हुई है। इसके महात्म्य का वर्णन करने की क्षमता शेष और शारदा में भी नहीं है।
नमाजी बुद्धि से विष्णु जी चक्र से और मैं त्रिशूल से सदा उसकी रक्षा करता हूं अयोध्या शब्द में ब्रह्मा और शिव का निवास है
अकारो ब्रह्म रूपस्य, धकारो रुद्र रूपते।
यकारो विष्णु रूपस्य अयोध्या नाम राजते।।

अयोध्या का भौगोलिक संबंध

अयोध्या ग्लोब के 26=47 उत्तरी अक्षांश और 62 15 पूर्वी देशांतर पर अवस्थित है

वेद और पुराणों में अयोध्या





यह अयोध्या भगवान वैकुंठनाथ की थी इसे महाराज मनु पृथ्वी के ऊपर अपनी सृष्टि का प्रधान कार्यालय बनाने के लिए भगवान बैकुंठ नाथ से मांग लाए थे। वैकुंठ से लाकर मनु ने अयोध्या को पृथ्वी पर अवस्थित किया और फिर सृष्टि की रचना की। उस विमल भूमि की बहुत काल तक सेवा करने के बाद महाराज मनु ने उस अयोध्या को इक्ष्वाकु को दे दिया।
वह अयोध्या जहां पर की साक्षात भगवान ने स्वयं अवतार लिया सभी तीर्थों में श्रेष्ठ एवं परम मुक्ति धाम है।
विष्णो:पाद्मवन्तिकां गुणवतीं मध्यश्च कांचीपुरी।
नाभि द्वारावती पठन्ति हृदय मायापुरी योगी ना।।
ग्रीवा मूल मुद्दा हरन्ति मथुरा नासा च वाराणसीम।
एतद् ब्रह्मादं वदन्ति मनुयो अयोध्यापुरी मातकम।।
समस्त गुणों से युक्त अवंतिकारी उज्जैन भगवान विष्णु का चरण है और कांची पूरी कटी भाग है द्वारिका पुरी नाभि है मायापुरी हरिद्वार हृदय है गर्दन का मूल भाग मथुरा है और काशीपुरी नासिका है इस प्रकार से मुनि लोग विष्णु भगवान के अंगो का वर्णन करते हुए अयोध्यापुरी को भगवान का मस्तक बतलाते हैं
वैरेण्यं सर्वं लोकनां हिरण्यां चिन्मया जया।
अयोध्या नन्दिनी सत्या राजिता अपराजिता।।
कल्याणकारी राजधानी या त्रिपादम्य निरा जया।
गोलोक हृदयन्ध्या च संस्था सा साकेत पुरी।।
समस्त लोको के द्वारा जो वंदित हैं ऐसी अयोध्यापुरी भगवान आनंदकंद के समान चिन्मया अनादि है वह 8 नामों से पुकारी जाती है अर्थात इसके 8 नाम है हिरणनय्या चिन्मया जया अयोध्या नंदिनी सत्या राजिता और अपराजिता।
भगवान की यह कल्याणमयी राजधानी साकेत पुरी आनंदकंद भगवान श्री कृष्ण के गोलोक का हृदय है।
एतद्वेशसृतस्य सकाशादग्रजन्मना ।
स्वं स्वं चरितम शिक्षरेन पृथिव्यां सर्वं मानवा:।।
इस देश में पैदा होने वाले प्राणी अग्र  जन्मा कहलाते हैं जिसके चरित्रों से समस्त पृथ्वी के मनुष्य शिक्षा ग्रहण करते हैं। मानव सृष्टि सर्वप्रथम यहीं पर हुई थी।
याअयोध्या पू: सा सर्व वैकुण्ठा न मेव।
मूल धारा मूल प्रकृति परा तत्सद् ब्रह्म मय।।
वीरजोतरा दिव्या रतन कोषाढया तस्यां ।
नित्यमेव सीतारामयी: विहारस्मलथस्ति:।।
वह अयोध्यापुरी सी वैकुंठो ब्रह्मलोक इंद्रलोक विष्णु लोक गोलोक आदि सभी देवताओं का लोग वैकुंठ है का मूल आधार है तथा जो मूल प्रकृति है जिससे कि दुनिया पैदा हुई है उससे भी श्रेष्ठ है शब्द रूप जो है वह ब्रह्मय है सत रज तम इन तीनों गुणों में से रजोगुण से रहित है
 यह अयोध्यापुरी दिव्या रतन रूपी खजाने से भरी हुई है और सर्वदा नित्य मेव श्री सीताराम जी का बिहार स्थल है
स्वयमागता स्वयमागता स्वयमागतेति।
साकेत साकेत संज्ञा सविता ‌।।
अर्थात स्वयं आपसे आप आवीर भूत होने के कारण अयोध्या को साकेत कहते हैं। पौधों की प्रमुख पुस्तक दिव्या वदान मैं साकेत विषयक धारण की पुष्टि इसी साकेत की ओर संकेत की गई है।
सचस्कुरूश्चतां वमप्रेमार परिखादिभि:।
अयोध्या नगर नाम्नां गुणें नाप्यरिभि:  सुरा:।।
अर्थात देवताओं ने इस रसिया पूरी को कोटि और खाई से भलीभांति अलंकृत किया जिससे इसे कोई शत्रु जीत ना सके और इसलिए इसका नाम अयोध्या रखा अयोध्या शब्द का अर्थ है शत्रु जितना सके।
अष्ट चक्रा नव द्वारा देवा नाम पूअयोध्या।
तस्वां हिरण्यमया: कोष स्वर्गोज्योतिषावृता:।।
अयोध्यापुरी देवताओं की नगरी है यह आठ चक्र और नौ द्वारों से शोभित है उस में  स्वर्ण के समान हिरण्यमय कोष है जो दिव्य ज्योति से पूरी तरह गिरा है।


Ancient history of shri ayodhya ji

 & Ayodhya Guide

 Ayodhya Dham Introduction

 Once upon a time, Shri Mahadev Ji and Parvati Ji were sitting on Mount Kailash.  Knowing Lord Shankar ji's delight, Mother Parvati Ji expressed her desire to know the greatness and history of Pawan Puri Ayodhya.

 Mahadev Ji said, dear.  Ayodhyapuri is situated on the right bank of the river Sarayu, the best among all rivers.  The ability to describe its greatness is not there in Shesha and Sharda.

 Vishnu ji chakra with namaji wisdom and I always protect him with trident, in the word Ayodhya is the abode of Brahma and Shiva.

 Acaro Brahmo Rupasya, Dhakro Rudra Rupate.

 Yakaro Vishnu Rupasya Ayodhya Name Rajate.

 Geographical relation of Ayodhya

 Ayodhya is located at 26 = 47 North latitude and 62 15 East longitude of Globe.

 Ayodhya in Vedas and Puranas


 4




 This Ayodhya belonged to Lord Vaikunthanath, Maharaja Manu brought a demand from Lord Baikuntha Nath to make the head office of his creation above the earth.  Bringing from Vaikuntha, Manu located Ayodhya on earth and then created the universe.  After serving that Vimal Bhumi for a long time, Maharaja Manu gave that Ayodhya to Ikshvaku.

 The Ayodhya where the Lord God incarnated himself is the best and the ultimate liberation pilgrimage in all pilgrimages.

 Vishno: Padmavantikam quality of Madhya Pradesh Kanchipuri.

 Navel Dwaravati recitation Hriday Mayapuri Yogi Na.

 Cervical origin issue haranti mathura nasa ch varanasim.

 Etd Brahmadam Vaddanti Manuyo Ayodhyapuri Matakam.

 Ujjain with all the qualities, Ujjain is the stage of Lord Vishnu and Kanchi is the entire cut, Dwarka is Puri Navel, Mayapuri Haridwar is the heart. The root part of the neck is Mathura and Kashipuri is the nasal, thus Muni people describe Ayodhyapuri, describing the organs of Lord Vishnu.  God's head tells

 Vairanya Sarvan Lokanan Hiranyam Chinmaya Jaya.

 Ayodhya Nandini Satya Rajita Aparajita.

 Kalyan Rajdhani or Tripadamya Nira Jaya.

 Golok Hridayandhya Ch institution sa Saket Puri.

 The Ayodhyapuri who is worshiped by all the locos is like Chinmaya Anadi, like Lord Anandkand, she is called by 8 names i.e. 8 names are Hirannayya Chinmaya Jaya Ayodhya Nandini Satya Rajita and Aparajita.

 This Kalyanamayi capital of God Saket Puri Anandakand is the heart of Lord Shri Krishna's Goloka.

 Ettdveshratsya sakashadgrijanna.

 Swayam Swaranitram Shikshren Prithivyaan Sarvan Manwa:

 The creatures born in this country are called Agar Janma, whose characters are taught by the human beings of the entire earth.  The human creation was first here.

 Yayyodhya Poo: Sa Sarva Vaikuntha na Meo.

 Mool Dhara Mool Prakriti Para Tatsad Brahma Maya.

 Virjotara Divya Ratan Koshadhaya Tasyaan.

 Nityameva Sitaramayi: Viharasmalathasti:.

 He is the root of Ayodhyapuri C Vaikuntho Brahmalok Indralok Vishnu Lok Goloka is the Vaikuntha of all the Gods and the original nature from which the world is born is even better than the word form which is the Brahman of the three qualities.  Is free from Rajoguna

 This Ayodhyapuri is full of treasures in the form of Divya Ratan and is always the site of Bihar of Sitaram Ji.

 Self-feeling, self-feeling, self-feeling.

 Saket Saket noun Savita 4.

 That means Ayodhya is called Saket due to you being an avid ghost.  In the main book of plants Divya Vadaan, the belief of Saket has been confirmed to this Saket.

 Sachskurushtantam vampramar parikhadibhi:.

 Ayodhya Nagar Namnama Properties Naapyaribhi: Sura:.

 That is, the Gods ornamented this Rasiya Puri with a coat and trench so that no enemy could win it and hence the name Ayodhya, the word Ayodhya means as much as the enemy can.

 Deva name Puyodhya by Ashta Chakra Nava.

 Taswan Hiranyamaya: Kosha Swarojyotishavrita:.

 Ayodhyapuri is the city of gods. It is adorned with eight chakras and nine gates. It has a Hiranyamaya Kosh like gold which has completely fallen from the divine light.


 4

Friday, July 3, 2020

मोक्षदा एकादशी महात्म्य

मोक्षदा एकादशी महात्म्य

(मार्गशीर्ष  मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी)

युधिष्ठिर बोले हे भगवान कृष्ण। अब आप मुझे 26 एकादशी ओं के नाम, व्रत की विधि बतलाइए तथा उस दिन किस देवता का पूजन करना चाहिए यह भी कहिए भगवान जी बोले मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम मोक्षदा है यथा नाम तथा गुण अर्थात मोक्ष देने वाला व्रत है। 12 मासो मैं मैं मार्गशीर्ष मास को उत्तम मानता हूं। यह गीता में अर्जुन से भी कह चुका हूं इससे कृष्ण पक्ष की एकादशी से प्रेम उत्पन्न होता है और शुक्ल पक्ष का व्रत मोक्ष का प्रदाता है इस व्रत में दामोदर भगवान का पूजन करना चाहिए आज व्रत धारियों को मेरी उखल बंधन लीला का श्रवण करना चाहिए। अब तुम्हें मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा सुनाता हूं-

प्राचीन गोकुल नगर में  वैखानस नाम का राजा बड़ा ही धर्मात्मा और प्रभु भक्त था। उसने रात्रि को स्वप्न में अपने पूज्य पिता को नर्क भोंगते देखा। प्रातः काल ज्योतिषी वेद पाठी ब्राह्मण बोले यहां समीप में पर्वत ऋषि का आश्रम है उनकी शरणागत में आपकी पिता शीघ्र ही स्वर्ग को चले जाएंगे राजा पर्वत मुनि की शरण मैं गया दंडवत करके कहने लगा मुझे रात्रि को स्वप्न में पिता का दर्शन हुआ वह बेचारे यमदूतो के हाथ से दंड पा रहे हैं। आप अपने योग बल से बतलाइए उनकी मुक्ति किस साधन से शीघ्र होगी मुनि ने विचार कर कहा कि और सब धर्म-कर्म देरी से फल देने वाले हैं शीघ्र वरदाता को केवल शंकर जी प्रसिद्ध है परंतु उन को प्रसन्न करने में देर अवश्य लग जाएगी परंतु तब  तक तो तुम्हारे पिता की दुर्गति हो जाएगी। इस कारण सबसे शुभम और शीघ्र फल दाता मोक्षदा एकादशी का व्रत है उसे संयुक्त परिवार सहित विधि पूर्वक कर के पिता को संकल्प कर दो। निश्चय ही उनकी मुक्ति होगी। राजा ने कुटुंब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत करके फल पिता को अर्पण कर दिया। उसके प्रभाव से वह स्वर्ग को चले गए। जाते हुए पुत्र से बोले अब मैं परमधाम को जा रहा हूं श्रद्धा भक्ति से जो मोक्षदा एकादशी का माहात्म्य सुनता है उसे वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है यह कथा ब्रह्मांड पुराण में वर्णित है।

फलाहार-इस दिन  बिल्वपत्र का सागार लेना चाहिए।व्रत मैं दूध फल व सिंघाड़े के आटे के पदार्थ भी ले सकते हैं।


Prithvi ka dukh varnan

  पृथ्वी का दुख वर्णन सूत जी बोले द्वापर युग  में अंत समय में पृथ्वी का भार बहुत बढ गया। नाना प्रकार के अत्याचारों से पीड़ित पृथ्वी तब दुखी ...