देवशयनी पदमा एकादशी महात्म्य
(आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी)
कृष्ण भगवान बोले यह धर्मात्मा हे श्रेष्ठ युधिष्ठिर। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम देवशयनी है। ब्रह्मा जी ने नारद से कहा था कि आज के दिन भगवान विष्णु को शयन कराया जाता है। और वह कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को जागते हैं चतुर्मास का व्रत इस एकादशी से प्रारंभ होता है। जो मनुष्य के ब्रम्हचर्य का पालन कर चतुर्मास का व्रत करते हैं वह विष्णु भगवान को प्रिय होते हैं शिवलोक में उसकी पूजा होती है सर्वदेवता उसे नमस्कार करते हैं। ब्राह्मणों को भोजन करा दक्षिणा से प्रसन्न करें गों का दान अवश्य करें और तिल के साथ मिलाकर जो स्वर्ण दान करते हैं वह भोग व मोक्ष दोनों प्राप्त करते हैं गरीबों के लिए गोपी चंदन का दान देने से भगवान प्रसन्न होते हैं हल्दी के दानों से गौरी शंकर जी को प्रसन्नता होती है। और चांदी के पात्र में धर कर हल्दी का दान देना वामन भगवान की प्रसन्नता के लिए है। ब्राह्मणों को दही भात का भोग लगाना चाहिए। चतुर्मास व्रत में जो एक बार भोजन करते हैं समाप्ति में गरीबों को अन्य खिलाते हैं वह सीधे स्वर्ग को जाते हैं। इस व्रत में जौ तथा चावल इत्यादि जो अभ्यागतो को खिलाते हैं वह स्वर्ग को जाते हैं।
अब पदमा एकादशी के महातम में एक पौराणिक कथा कहता हूं। सूर्यवंश में मांधाता नाम का प्रसिद्ध सत्यवादी राजा अयोध्यापुरी में राज करता था एक समय उसके राज्य में अकाल पड़ गया प्रजा दुखी होकर भूख से मरने लगी। हवन आदि शुभ कर्म बंद हो गए राजा को कष्ट हुआ इसी चिंता में वन को चल पड़ा। अंगिरा ऋषि के आश्रम में जाकर कहने लगा हे सप्तर्षियों मैं श्रेष्ठ अंगिरा जी। मैं आपकी शरण हूं मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है प्रजा कहती है कि राजा के पापों से प्रजा को दुख मिलता है और मैंने अपने जीवन में किसी प्रकार का कोई पाप नहीं किया। आप दिव्य दृष्टि से देख कर कहो कि अकाल पड़ने का क्या कारण है? अंगिरा मुनि बोले सतयुग में ब्राह्मणों को वेद पढ़ना और तपस्या करना धर्म है परंतु आपके राज्यों में आजकल एक शूद्र तपस्या कर रहा है शूद्र को मारने से दोष दूर हो जाएगा प्रजा सुख पाएगी! मांधाता बोले मैं उस निरपराध हत्या करने वाले शूद्र को ना मारूंगा, आप इस कष्ट से छूटने का कोई और सुगम उपाय बताइए! ऋषिराज बोले सुगम उपाय कहता हूं भोग तथा मुख्य देने वाली देवशयनी एकादशी है इसका विधिपूर्वक व्रत करो इसके प्रभाव से चतुर्मास तक वर्षा होती रहेगी इस एकादशी का व्रत सिद्धियों को देने वाला तथा उपद्रवो को शांत करने वाला है। मुनि की दीक्षा से मांधाता ने प्रजा सहित पदमा का व्रत किया और कष्ट से छूट गए इसका महत्व पढ़ने या सुनने से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है आज के दिन तुलसी का बीज पृथ्वी या गमले में बोया जाए तो महान पुण्य होता है तुलसी की छूइ हुई पवन से भी यमदूत भय पाते हैं। जिनका कंठ तुलसी की माला से सुशोभित हो, उसका जीवन धन्य समझना चाहिए ।
यह कथा भविष्योत्तर पुराण में वर्णित है