"zone name","placement name","placement id","code (direct link)" apnevichar.com,Popunder_1,15485358,"" 996.com,DirectLink_1,15488589,https://gw7eez7b7fa3.com/jcbu8318e4?key=806f9e0a5edee73db1be15d7846e32a6 भारतीय समाज में धर्म का महत्व: 2020

Sunday, July 19, 2020

चन्द्र ग्रह

फारसी भाषा में इसे कमर एवं अंग्रेजी में moon कहते हैं यह स्त्री गृह है इसका दिन सोमवार है रंग दूध के समान सफेद है। सूर्य और बुध इसके मित्र तथा शुक्र गुरू मंगल इसके सम ग्रह है।राहु से माध्यम एवं केतु ग्रहण योग बनता है चन्द्र की आयु १०० वर्ष तक रहती है।इसका काल २० वर्ष २४ दिन रहता है इसका प्रभाव प्रारंभ में होता है और तीव्र होने की गति सामान्य रहती है। वैसे इसकी आयु २४ वर्ष की होती है लेकिन शनि साथ होने पर आयु आठ वर्ष की होती है 
सूर्य चंद्र का सम्बन्ध हो जाए  तो चन्द्र का प्रभाव अशुभ तथा २४ वर्ष में अधिक प्रभाव शाली होता है।

जातक पर प्रभाव

चन्द्र ६,८,१०,११,१२ घर में अशुभ फल देता है तथा २,३,४,५,७,९ घर में शुभ फल देता है।
अकेला चंद्रमा किसी घर में बैठा तो ऐसा जातक विनम्र सद्व्यवहारी एवं दयालु होता है।चन्द्र १२ घर में बैठा हो तो उसके अशुभ फल मिलते हे।चन्द्र के अशुभ होने पर दुधारू पशु की मृत्वी होती हैं
जातक की जमीन में बोई हुई फसल सुख जाती है तथा घर के नल का पानी खारा हो जाता है व्यक्ति की सोचने शमझने की शक्ति नष्ट हो जाती है।उसका विवेक काम नहीं करता।

उपाय

बुजुर्गो की सेवा करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त करे।

महादेव की पूजा करे।सोमवार का व्रत करे।व्रत वाले दिन शाम को दाए हाथ से चांदी और चावल का दान ब्राह्मण को करे।

चांदी की अंगूठी धारण करे 

Saturday, July 18, 2020

सूर्य ग्रह का जातक पर प्रभाव

सूर्य ग्रह

इसे फारसी मै शमस और अग्रेजी में sun कहते हैं इसका दिन रविवार है रंग तांबे के जैसे होता है।चन्द्र गुरू मंगल इसके मित्र और शनि केतु शत्रु ग्रह है।
इस ग्रह की आयु १०० वर्ष और काल २२ वर्ष २२ दिन का है किसी भी ग्रह के साथ रहने पर इसकी आयु २२ वर्ष की रहती है।
लाल किताब के अनुसार सूर्य १०,७,६ घर में अशुभ फल देता है।११,१२,९,८,५ घरों में शुभ फल देता है।

जातक पर प्रभाव

अशुभ सूर्य जन्मकुंडली में होने पर उसका कई प्रकार का प्रभाव जातक पर पड़ता है।ऐसा जातक दुख एवम् दरिद्रता जैसा जीवन जीता है।सूर्य के अशुभ होने पर जातक का शरीर लकड़ी के समान अकड़ने लगता है। और जातक को धीरे धीरे चलने की समस्याएं होती है जातक को पशुहानि भी होती है।

उपाय

भगवान विष्णु की उपासना करे
रविवार का व्रत रखे।उस दिन तांबा एवं गेहूं का दान करे।
तामसी पदार्थो का सेवन ना करे।
ब्रह्मशचर का पालन करे। मन पवित्र करे।
कोई भी काम शुरू करने से पहले मिष्ठान खाकर पानी पिए।
मिष्ठान ना हो तो गूड खाकर पानी पिए और कार्य आरंभ करें।
रवि वार के दिन गुड एवं तांबा बहते पानी में प्रवाहित करे।

Tuesday, July 14, 2020

द्वादश ज्योतिर्लिंग

सौराष्ट्र सोमानाथं च, श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। 

उज्जयिन्याम महाकालं ओमकारं ममलेश्वरम।।

केदारं हिमवत्पृष्ठै,डाकिन्यां भीमशंकरं।

वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमीतटे।।

वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।

सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये।।

द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत्।

सर्व पाप विनिर्मुक्त: सर्वसिद्धि फलं भवेत्‌।

इस प्रपंच में अति प्राचीन मत शैव मत है। परम शिव के पंचमुख के द्वारा पंचभूत और पंचन मात्र के जन्न और इस सृष्टि का आरंभ है। शिव तत्व अति सूक्ष्म होने के कारण से केवल आत्मा को ही अनुभव हो सकता है। ऐसा शैवागमों से जानकारी होती है। लेकिन परम तत्व स्वरूप शिवयोगी है आतम ज्योति के रूप में सम दर्शन करेंगे बाकी सब को लिंग रूप धारण के बाद ही शिव भौतिक रूप से दर्शन हो जाता है। इसीलिए लिंग श्री शिव का प्रतीक हो गया है यह लिंग आगम शास्त्र के अनुसार 84 यदि कलयुग में 64 रूप में वर्णन किया गया है इनमें 12 ज्योतिर्लिंग पंचमहाभूत लिंगम मोक्ष मार्ग को दे रहे हैं ऐसा कहा जाता है यह भारत देश के चार दिशा में फैले होने के कारण भक्त जनों के शिवा पार है।
ज्योति शास्त्र वेद वर्षों के संकल्प से कई शिवलिंग में 12 ज्योतिर्लिंगों को एक प्रति एकता स्थान होने की संभावना हो सकती है भारत देश में औनत्य एवं पवित्रता की भावना इस महीतत्व पर अध्यात्म के चिंतन भूलों को वासियों को होने का कारण भी पुणे ज्योतिर्लिंग क्षेत्र ही कारण भूत है।
इस भूलों वासी आकाश में रहने वाले सितारे और ग्रह से हर पल बाहर आने वाले सौदामिनी जैसे ज्योति शक्ति थे 12 ज्योतिर्लिंगों का अनुसंधान होता है इसीलिए साधारण मंदिरों के जैसे यंत्र प्रतिष्ठा एवं प्राण प्रतिष्ठा नहीं होने के बाद भी इस सृष्टि का अंत तक ज्योतिर्लिंग दौरान निरंतर ज्योति शक्ति उद्भव होगी ही। इसीलिए इन ज्योतिर्लिंगों को धूने से अथवा दर्शन करने से अनंत पुण्य के साथ अध्यात्मिक भावना सभी भक्तजनों को मिलेगी। यह 12 ज्योतिर्लिंग पूरा देश में ज्योति ही हो गई है इनमें हर 1 ज्योतिर्लिंग प्रति एकता अलग है। इनमें रामेश्वर सोमनाथ में रहने वाले ज्योतिर्लिंग के सिवा बाकी 10 ज्योतिर्लिंग को भक्तजन अभिषेक एवं पूजा से शुद्ध कर सकते हैं।

पुराण गाथा

यह ज्योतिर्लिंग कहां जाता है कि चंद्र से प्रतिष्ठित हुआ है। दक्ष प्रजापति के संतति अश्वनी से लेकर रेवती तक  27 पुत्रीकाओं मैं सब के सब खूबसूरत है दक्ष ने पुत्रियों का सरासर समझ के सौंदर्य मूर्ति होने से चंद्र को शादी करवाई थी पत्नियों में सबसे खूबसूरत होने से चंद्रमा रोहिणी से सबसे अधिक प्यार करता था बाकी सब को असूया जनक रखा था। रोहिणी के सिवा 26 पुत्रियों ने दक्ष प्रजापति को इस बारे में ईर्ष्या प्रकट की थी दक्ष नेट चंद्र को बुलाकर समझाया कि वह ऐसा ना करें सबको प्यार की दृष्टि से देखें सबको बराबर प्यार करें लेकिन चंद्र ने ससुर की बात का ख्याल नहीं किया। और पहले से ज्यादा रोहिणी को प्यार से देखने लगा। इस बार दक्ष ने गुस्से से चंद्रमा को क्षय रोग से पीड़ित होने का शाप दिया। तब से उस शॉप के कारण से चंद्रमा कला विहीन होने लगा था। सुधाकर के सुधाकरण क्षीण हो जाने से अमृत ही केवल पीने वाले देवता लोगों में हाहाकार करने लगे हैं। औषधि की शक्ति सूखने लगी है सारे जगत निस्तेज हो गए हैं। तब इंद्र और बाकी देव बताओ वशिष्ठ आदि मुनियों ने मिलकर चंद्र को साथ लेकर ब्रह्मा के पास जाकर इस महादेव से रक्षा करने की प्रार्थना की थी तब ब्रह्मा ने चंद्र से पवित्र प्रभास तीर्थ के पास परम शक्ति की आराधना करने से उनको सबको शुभ शुभ हो सकता है कहा था। ऐसे ही तो वाक्य कह के चंद्र को मृत्युंजय मंत्रों पदेश किया था। उसके बाद चंद्र ने दे बताओ से मिलकर प्रभास क्षेत्र को ढूंढा वहां महेश्वर की आराधना करके 6 महीने तक घोर तपस्या की थी अत्यंत दीक्षा से 100000000 बार मृत्युंजय मंत्र पठन किया था चंद्र के भक्ति से संतुष्ट होकर शंकर भी चंद्र के सामने प्रत्यक्ष होकर आ गये और कहा वरदान मांगो।
तब चंद्रमा ने उसे परम शिव साष्टांग प्रणाम करके शिव के अनुग्रह प्राप्ति और उनकी कटाक्ष दृष्टि से शाप निवृत्ति करने की प्रार्थना की। करुणामई शिव ने चंद्र की प्रार्थना से प्रसन्न होकर दक्ष  से दिया हुआ शाप प्रत्यायन उपाय चंद्र को अनुग्रह इस प्रकार किया था केवल कृष्ण पक्ष में ही चंद्र के कला विहीन होने का और शुक्ल पक्ष मैं चंद्रकला हर रोज वर्धमान होकर पूर्णमासी के दिन परिपूर्ण कला प्राप्त करके विराजमान होने का अनुग्रह किया था
इस प्रकार का वर प्राप्त करने के बाद चंद्र ने फिर उसका पूर्व जैसे ही अमृत वर्ष सारा जहां को फैलाने लगा। तब ब्रह्मा जी देवता के प्रार्थना से परम शिव ने पार्वती समेत वहां उस प्रभास क्षेत्र में सोमनाथ के रूप में प्रकट होने का आशीर्वाद दिया।

Sunday, July 12, 2020

पृथ्वी का दुख वर्णन

पृथ्वी का दुख वर्णन

सूत जी बोले द्वापर युग  में अंत समय में पृथ्वी का भार बहुत बढ गया। नाना प्रकार के अत्याचारों से पीड़ित पृथ्वी तब दुखी होकर ब्रह्मा की शरण में गई।ब्रह्मा से उसने अपने सम्पूर्ण दूखो  का रो रोकर निवेदन किया।तब ब्रह्मा उसे अपने साथ साथ लेकर भगवान विष्णु के पास गए।भगवान विष्णु शयन काल में थे।उनको शयन करते हुए सतयुग और त्रेता युग बीत गए थे।


भगवान विष्णु के पास जाते समय ब्रह्मा के पास देवादी एवम् समस्त मुनिगन भी संग हो गए।सबने वहां जाकर समाहुक प्रार्थना की।तब भगवान विष्णु की योगनिद्रा की निंद्रा टूटी।उन्होंने सबके आने का कारण पूछा।तब ब्रह्मा ने उनको पृथ्वी का सारा दुख बतलाया। इस पर विष्णु भगवान सबके साथ स्मेरू पर्वत पर आए।तब वहां पर दिव्य सभा हुई। इस सभा में पृथ्वी ने अपने सारे दुखों का वर्णन किया।





परमपिता ब्रह्मा ने तब भगवान विष्णु से पृथ्वी को हरण करने की प्रार्थना की।उनसे निवेदन किया कि पृथ्वी पर आकर अवतार ग्रहण करे।
ब्रह्मा इस प्रार्थना पर विष्णु बोले आज से काफी समय पहले मैंने पृथ्वी को भयमुक्त करने का निश्चय कर लिया है मैंने समुद्र को राजा शांतनु के रूप में पृथ्वी पर भेज दिया है। मैं पहले ही जानता था कि पृथ्वी का भार बढ़ेगा। इस कारण पूर्व में ही मैंने श्री शांतनु के वंश की उत्पत्ति कर दी है गंगापुत्र भीष्म भी वसु ही है वह मेरी आज्ञा से गई है महाराज शांतनु की द्वितीय पत्नी से विचित्रवीर्य नामक पुत्र उत्पन्न हुआ है इस समय उनके दोनों पुत्र धृतराष्ट्र और पांडु भूमि पर है। पांडु की दो पत्नियां है कुंती और माद्री। धृतराष्ट्र की पत्नी है गंधारी। अतएव देवता गण शांति वंश में जन्म ले।






 तत्पश्चात में भी जन्म लूंगा भगवान विष्णु के इस कथन पर समस्त देवता गणों वसु गणों आदित्यो
अश्विनी कुमारों ने पृथ्वी पर अवतार ग्रहण किए सब ने भरत वंश में जन्म लिया। सूत जी बोले मुनि वरो। इस प्रकार धर्म ने युधिष्ठिर इंद्र ने अर्जुन वायु ने भीम दोनों अश्वनी कुमार उन्हें नकुल सहदेव सूर्य ने कर्ण बृहस्पति ने द्रोणाचार्य वसुओ ने भीष्म यमराज ने विदुर कली ने दुर्योधन चंद्रमा ने अभिमन्यु भूरिश्रवा ने शुक्राचार्य वरुण में श्रोता युद्ध शंकर ने अश्वथामा कनिक्कने  मित्र कुबेर ने धृतराष्ट्र और यक्षो मैं गंधर्व सर पो देवक अश्व सेन दुशासन आदि के रूप में पृथ्वी पर अवतार ग्रहण किए। इस प्रकार समस्त देवगण लेकर पृथ्वी पर आ गए। नारद जी को जब यह पता चला तो वह विष्णु जी के पास आए और कुपित होकर बोले जब तक नर नारायण जन्म ना लेंगे तब तक पृथ्वी का भार कैसे हल्का होगा?
नर तो अवतार लेकर पृथ्वी पर चले गए। नारायण रूपी भगवान विष्णु यही विराजमान है आखिर आप क्या कर रहे हैं?


नारद की इस बात पर भगवान विष्णु बोले हे नारद इस समय में मैं विचार कर रहा हूं कि कहां और किस वंश में जन्म लूं अभी तक मैं इसका निर्णय नहीं कर सका हूं। मुन्नी्वरो । भगवान विष्णु की इस कथन पर नारद जी ने उनको कश्यप का वर्णन करते हुए कहा कि वह महात्मा वरुण से गाय मांग कर ले गए बाद में वापस नहीं की। इस पर वरुण मेरे पास आया। तब मैंने कश्यप को गवाला हो जाने का शाप दे दिया इस समय कश्यप वासुदेव के रूप में मेरा श्राप भोग रहे हैं उनकी दोनों पत्नियां देवकी और रोहिणी के रूप में उनके साथ है वह पापी कंस के अधीन रहकर दुख पा रहे हैं वरुण के साथ विश्वासघात करने और मेरे श्राप का फल पा रहे हैं मेरा तो यह सुझाव है कि आप उनके यहां ही अवतार ले। नारद कहां के हो प्रस्ताव भगवान विष्णु ने स्वीकार कर लिया। वह क्षीर सागर में स्थित उत्तर दिशा में अपने निवास में चले गए। फिर मेरु पर्वत की गुफा में प्रवेश कर अपनी दिव्य देह त्याग कर वसुदेव के यहां जन्म ग्रहण करने के लिए चले गए।

Friday, July 10, 2020

हरिवंश पुराण महात्म्य

महर्षि वेदव्यास कृत

श्री हरिवंश पुराण महात्म्य

मानव जीवन के लिए उपयोगी इस ग्रंथ का पाठ करने से पूर्व महर्षि वेदव्यास भगवान श्री कृष्ण पांडव पुत्र अर्जुन एवं ज्ञान की देवी सरस्वती का ध्यान करें।
सनातन धर्म की रचीयता महर्षि वेदव्यास जिन्होंने इस पुराण की कथा का वर्णन किया उनके चरण कमलों में सादर वंदन।
अज्ञान की तिमिर में यह प्रकाश ज्योति स्वरूप सबका कल्याण करें। मैं उन गुरुदेव को नमस्कार करता हूं यह अखंड मंडलाकार चराचर विश्वजीत परमपिता परमात्मा से व्याप्त है मैं उनको नमस्कार करता हूं उनका साक्षात दर्शन करने वाले गुरुदेव को नमस्कार करता हूं ज्ञानियों ने हरिवंश पुराण को ब्रह्मा विष्णु शिव का रूप कहां है यह सनातन शब्द ब्रह्म मय 
है। इसका परायण करने वाला मोक्ष प्राप्त करता है जैसे सूर्योदय के होने पर अंधकार का नाश हो जाता है इसी प्रकार हरिवंश के पठन-पाठन श्रवण से मन वाणी और देह द्वारा किए गए संपूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं जो फल अठारह पुराणों की श्रवण से प्राप्त होता है उतना ही फल फल विष्णु भक्त है हरिवंश पुराण के सुनने से मिलता है। इसमें संदेह नहीं है। इसे पढ़ने और सुनने वाले स्त्री पुरुष बालक विष्णुधाम प्राप्त करते हैं। पुत्रदा कांक्षी स्त्री पुरुष इसे अवश्य सुने। विधिपूर्वक हरि वंश पुराण का पठन-पाठन संतान गोपाल स्तोत्र का 1 वर्षीय पाठ अवश्य पुत्र रतन प्रदान करता है जो पुरुष या स्त्री चंद्रमा सूर्य गुरु गुरु गुरुधाम अग्नि की ओर मल मूत्र त्याग करता है वह नपुंसक बांज होता है अकारण फल फूल तोड़ने वाला संतान अक्षय को प्राप्त होता है पर स्त्री गमन पत्नी बनाएं कुंवारी कन्या का शीला हरण करने वाला वृद्धावस्था में घोर दुख पाता है व्यभिचारिणी स्त्री बुढ़ापे में गल गल कर मरती है
निंदनीय और गणित कर्मी महा शोक को प्राप्त होता है
अंत एवं श्री हरिवंश पुराण का परायण कर वह अपना दुख हल्का कर सकता है। हरिवंश पुराण के श्रवण पाटन से बहुत दूर हो सकता है।
हरिवंश पुराण के आवाहन परायण की विधि इस प्रकार है कुशल पंडित को आमंत्रित कर शुभ मुहूर्त निकलवाए। भाद्रपद आश्विन कार्तिक आषाढ़ और श्रवण इन बाहों में इनका सर्वोत्तम परायण माना गया है। सब को आमंत्रित कर नौ दिन तक इसका पाठ करें या करवाएं सभी इष्ट मित्रों को आमंत्रित करें सुंदर कथा चित्र बनाएं सुंदर मंडप का निर्माण करें लक्ष्मी और पुत्रों सहित गोपाल कृष्ण की स्थापना करें यथाशक्ति प्रसाद आदि का वितरण करें भगवान को नैवेद्य अर्पित करें कथा के दिनों में पूर्ण ब्रम्हचर्य का पालन करें पृथ्वी पर शयन करें सुने फिर विश्राम उपरांत संध्या चार बजे से दीप जलाने तक कहे सुने तत्पश्चात विश्राम दे 9 दिनों में इसका संपूर्ण पाठ आवश्यक है कथा पूर्ण मनोयोग से कहें इस कथा के मध्य अन्य वार्तालाप करना या किसी प्रकार का व्यवधान डालना अशुभ माना गया है भक्ति पूर्वक श्री हरिवंश का पठन पाटन श्रवण अत्यंत लाभदायक है।


सूर्य ग्रह दिन रविवार

सूर्य को प्रसन करने का उपाय



सूर्य को कुछ और अनुकूल करने के लिए चावल और गुड बहते पानी में प्रवाहित करें। रविवार को दूध भात मैं गुड़ मिलाकर खुद सेवन करें। गेहूं के आटे के चूर्मे के लड्डू बनाकर बच्चों को बांटे और स्वयं भी खाएं। तांबे का सिक्का बहते पानी में बहाएं। तांबे का सिक्का गले में धारण करने से सूर्य अनुकूल फल देता है। लाल कपड़े में गेहूं गुड या सोना बांध कर दान करने पर सूर्य उच्च फल प्रद बनता है|


गणेश जी की आरती

श्री गणेश जी की आरती

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
लड्डू का भोग लगे संत करें सेवा।।१।।
एक दंत दयावंत चार भुजा धारी।
मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी।।२।।
अंधन को आंख देत कोड़ीन को काया।
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया।।३।।
लड्डू वाला का भोग लगे संत करें सेवा।
हार चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा।।४।।
दिनन की लाज रखो शंभू सतवारी।
कामना को पूरा करो जग बलिहारी।।५।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।

Tuesday, July 7, 2020

सड़क हादसे में तीन की मौत,जिनमें दो भाई

सड़क हादसे में शीलाबग के समीप तीन लोगों की मौत हुई है जिनमे दो सगे भाई थे एक अन्य व्यक्ति था। ये भझशडा नहोल के थे इनमें एक राकेश नमक व्यक्ति जिसकी उम्र केवल 32 ओर उनके ही भाई राजेश उम्र 38 थी और एक व्यक्ति हरीबल नाम का था ये सोलन से नहोल अपने गांव जा  रहे थे और रास्ते में ही शीलाबाग के समीप ही ये दुर्घटानग्रस्ट हो गए । मौके पर ही दोनों भाईयो और तीसरे व्यक्ति की मौत हो गई ।ये सब आपनी पिकअप 1999 में  घर जा रहे थे अचानक बीच रास्ते में दुरघना ग्रस्त हो गए ।भगवान इनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और उनके परिवार को  इस दुखद घड़ी से उभरने की शक्ति प्रदान करें।

Saturday, July 4, 2020

अयोध्या धाम परिचय ।

श्री अयोध्या जी का प्राचीन इतिहास 

एवं अयोध्या गाइड

अयोध्या धाम परिचय

एक समय की बात है कि कैलाश पर्वत पर श्री महादेव जी और पार्वती जी बैठे हुए थे। भगवान शंकर जी को प्रसन्न चित् जानकर माता पार्वती जी ने उनसे पवन पुरी अयोध्या जी का महात्म्य एवं इतिहास जानने की इच्छा व्यक्त की।
महादेव जी ने कहा हे प्रिय। अयोध्यापुरी सभी नदियों में श्रेष्ठ सरयू नदी के दाहिने किनारे पर बसी हुई है। इसके महात्म्य का वर्णन करने की क्षमता शेष और शारदा में भी नहीं है।
नमाजी बुद्धि से विष्णु जी चक्र से और मैं त्रिशूल से सदा उसकी रक्षा करता हूं अयोध्या शब्द में ब्रह्मा और शिव का निवास है
अकारो ब्रह्म रूपस्य, धकारो रुद्र रूपते।
यकारो विष्णु रूपस्य अयोध्या नाम राजते।।

अयोध्या का भौगोलिक संबंध

अयोध्या ग्लोब के 26=47 उत्तरी अक्षांश और 62 15 पूर्वी देशांतर पर अवस्थित है

वेद और पुराणों में अयोध्या





यह अयोध्या भगवान वैकुंठनाथ की थी इसे महाराज मनु पृथ्वी के ऊपर अपनी सृष्टि का प्रधान कार्यालय बनाने के लिए भगवान बैकुंठ नाथ से मांग लाए थे। वैकुंठ से लाकर मनु ने अयोध्या को पृथ्वी पर अवस्थित किया और फिर सृष्टि की रचना की। उस विमल भूमि की बहुत काल तक सेवा करने के बाद महाराज मनु ने उस अयोध्या को इक्ष्वाकु को दे दिया।
वह अयोध्या जहां पर की साक्षात भगवान ने स्वयं अवतार लिया सभी तीर्थों में श्रेष्ठ एवं परम मुक्ति धाम है।
विष्णो:पाद्मवन्तिकां गुणवतीं मध्यश्च कांचीपुरी।
नाभि द्वारावती पठन्ति हृदय मायापुरी योगी ना।।
ग्रीवा मूल मुद्दा हरन्ति मथुरा नासा च वाराणसीम।
एतद् ब्रह्मादं वदन्ति मनुयो अयोध्यापुरी मातकम।।
समस्त गुणों से युक्त अवंतिकारी उज्जैन भगवान विष्णु का चरण है और कांची पूरी कटी भाग है द्वारिका पुरी नाभि है मायापुरी हरिद्वार हृदय है गर्दन का मूल भाग मथुरा है और काशीपुरी नासिका है इस प्रकार से मुनि लोग विष्णु भगवान के अंगो का वर्णन करते हुए अयोध्यापुरी को भगवान का मस्तक बतलाते हैं
वैरेण्यं सर्वं लोकनां हिरण्यां चिन्मया जया।
अयोध्या नन्दिनी सत्या राजिता अपराजिता।।
कल्याणकारी राजधानी या त्रिपादम्य निरा जया।
गोलोक हृदयन्ध्या च संस्था सा साकेत पुरी।।
समस्त लोको के द्वारा जो वंदित हैं ऐसी अयोध्यापुरी भगवान आनंदकंद के समान चिन्मया अनादि है वह 8 नामों से पुकारी जाती है अर्थात इसके 8 नाम है हिरणनय्या चिन्मया जया अयोध्या नंदिनी सत्या राजिता और अपराजिता।
भगवान की यह कल्याणमयी राजधानी साकेत पुरी आनंदकंद भगवान श्री कृष्ण के गोलोक का हृदय है।
एतद्वेशसृतस्य सकाशादग्रजन्मना ।
स्वं स्वं चरितम शिक्षरेन पृथिव्यां सर्वं मानवा:।।
इस देश में पैदा होने वाले प्राणी अग्र  जन्मा कहलाते हैं जिसके चरित्रों से समस्त पृथ्वी के मनुष्य शिक्षा ग्रहण करते हैं। मानव सृष्टि सर्वप्रथम यहीं पर हुई थी।
याअयोध्या पू: सा सर्व वैकुण्ठा न मेव।
मूल धारा मूल प्रकृति परा तत्सद् ब्रह्म मय।।
वीरजोतरा दिव्या रतन कोषाढया तस्यां ।
नित्यमेव सीतारामयी: विहारस्मलथस्ति:।।
वह अयोध्यापुरी सी वैकुंठो ब्रह्मलोक इंद्रलोक विष्णु लोक गोलोक आदि सभी देवताओं का लोग वैकुंठ है का मूल आधार है तथा जो मूल प्रकृति है जिससे कि दुनिया पैदा हुई है उससे भी श्रेष्ठ है शब्द रूप जो है वह ब्रह्मय है सत रज तम इन तीनों गुणों में से रजोगुण से रहित है
 यह अयोध्यापुरी दिव्या रतन रूपी खजाने से भरी हुई है और सर्वदा नित्य मेव श्री सीताराम जी का बिहार स्थल है
स्वयमागता स्वयमागता स्वयमागतेति।
साकेत साकेत संज्ञा सविता ‌।।
अर्थात स्वयं आपसे आप आवीर भूत होने के कारण अयोध्या को साकेत कहते हैं। पौधों की प्रमुख पुस्तक दिव्या वदान मैं साकेत विषयक धारण की पुष्टि इसी साकेत की ओर संकेत की गई है।
सचस्कुरूश्चतां वमप्रेमार परिखादिभि:।
अयोध्या नगर नाम्नां गुणें नाप्यरिभि:  सुरा:।।
अर्थात देवताओं ने इस रसिया पूरी को कोटि और खाई से भलीभांति अलंकृत किया जिससे इसे कोई शत्रु जीत ना सके और इसलिए इसका नाम अयोध्या रखा अयोध्या शब्द का अर्थ है शत्रु जितना सके।
अष्ट चक्रा नव द्वारा देवा नाम पूअयोध्या।
तस्वां हिरण्यमया: कोष स्वर्गोज्योतिषावृता:।।
अयोध्यापुरी देवताओं की नगरी है यह आठ चक्र और नौ द्वारों से शोभित है उस में  स्वर्ण के समान हिरण्यमय कोष है जो दिव्य ज्योति से पूरी तरह गिरा है।


Ancient history of shri ayodhya ji

 & Ayodhya Guide

 Ayodhya Dham Introduction

 Once upon a time, Shri Mahadev Ji and Parvati Ji were sitting on Mount Kailash.  Knowing Lord Shankar ji's delight, Mother Parvati Ji expressed her desire to know the greatness and history of Pawan Puri Ayodhya.

 Mahadev Ji said, dear.  Ayodhyapuri is situated on the right bank of the river Sarayu, the best among all rivers.  The ability to describe its greatness is not there in Shesha and Sharda.

 Vishnu ji chakra with namaji wisdom and I always protect him with trident, in the word Ayodhya is the abode of Brahma and Shiva.

 Acaro Brahmo Rupasya, Dhakro Rudra Rupate.

 Yakaro Vishnu Rupasya Ayodhya Name Rajate.

 Geographical relation of Ayodhya

 Ayodhya is located at 26 = 47 North latitude and 62 15 East longitude of Globe.

 Ayodhya in Vedas and Puranas


 4




 This Ayodhya belonged to Lord Vaikunthanath, Maharaja Manu brought a demand from Lord Baikuntha Nath to make the head office of his creation above the earth.  Bringing from Vaikuntha, Manu located Ayodhya on earth and then created the universe.  After serving that Vimal Bhumi for a long time, Maharaja Manu gave that Ayodhya to Ikshvaku.

 The Ayodhya where the Lord God incarnated himself is the best and the ultimate liberation pilgrimage in all pilgrimages.

 Vishno: Padmavantikam quality of Madhya Pradesh Kanchipuri.

 Navel Dwaravati recitation Hriday Mayapuri Yogi Na.

 Cervical origin issue haranti mathura nasa ch varanasim.

 Etd Brahmadam Vaddanti Manuyo Ayodhyapuri Matakam.

 Ujjain with all the qualities, Ujjain is the stage of Lord Vishnu and Kanchi is the entire cut, Dwarka is Puri Navel, Mayapuri Haridwar is the heart. The root part of the neck is Mathura and Kashipuri is the nasal, thus Muni people describe Ayodhyapuri, describing the organs of Lord Vishnu.  God's head tells

 Vairanya Sarvan Lokanan Hiranyam Chinmaya Jaya.

 Ayodhya Nandini Satya Rajita Aparajita.

 Kalyan Rajdhani or Tripadamya Nira Jaya.

 Golok Hridayandhya Ch institution sa Saket Puri.

 The Ayodhyapuri who is worshiped by all the locos is like Chinmaya Anadi, like Lord Anandkand, she is called by 8 names i.e. 8 names are Hirannayya Chinmaya Jaya Ayodhya Nandini Satya Rajita and Aparajita.

 This Kalyanamayi capital of God Saket Puri Anandakand is the heart of Lord Shri Krishna's Goloka.

 Ettdveshratsya sakashadgrijanna.

 Swayam Swaranitram Shikshren Prithivyaan Sarvan Manwa:

 The creatures born in this country are called Agar Janma, whose characters are taught by the human beings of the entire earth.  The human creation was first here.

 Yayyodhya Poo: Sa Sarva Vaikuntha na Meo.

 Mool Dhara Mool Prakriti Para Tatsad Brahma Maya.

 Virjotara Divya Ratan Koshadhaya Tasyaan.

 Nityameva Sitaramayi: Viharasmalathasti:.

 He is the root of Ayodhyapuri C Vaikuntho Brahmalok Indralok Vishnu Lok Goloka is the Vaikuntha of all the Gods and the original nature from which the world is born is even better than the word form which is the Brahman of the three qualities.  Is free from Rajoguna

 This Ayodhyapuri is full of treasures in the form of Divya Ratan and is always the site of Bihar of Sitaram Ji.

 Self-feeling, self-feeling, self-feeling.

 Saket Saket noun Savita 4.

 That means Ayodhya is called Saket due to you being an avid ghost.  In the main book of plants Divya Vadaan, the belief of Saket has been confirmed to this Saket.

 Sachskurushtantam vampramar parikhadibhi:.

 Ayodhya Nagar Namnama Properties Naapyaribhi: Sura:.

 That is, the Gods ornamented this Rasiya Puri with a coat and trench so that no enemy could win it and hence the name Ayodhya, the word Ayodhya means as much as the enemy can.

 Deva name Puyodhya by Ashta Chakra Nava.

 Taswan Hiranyamaya: Kosha Swarojyotishavrita:.

 Ayodhyapuri is the city of gods. It is adorned with eight chakras and nine gates. It has a Hiranyamaya Kosh like gold which has completely fallen from the divine light.


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Friday, July 3, 2020

मोक्षदा एकादशी महात्म्य

मोक्षदा एकादशी महात्म्य

(मार्गशीर्ष  मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी)

युधिष्ठिर बोले हे भगवान कृष्ण। अब आप मुझे 26 एकादशी ओं के नाम, व्रत की विधि बतलाइए तथा उस दिन किस देवता का पूजन करना चाहिए यह भी कहिए भगवान जी बोले मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम मोक्षदा है यथा नाम तथा गुण अर्थात मोक्ष देने वाला व्रत है। 12 मासो मैं मैं मार्गशीर्ष मास को उत्तम मानता हूं। यह गीता में अर्जुन से भी कह चुका हूं इससे कृष्ण पक्ष की एकादशी से प्रेम उत्पन्न होता है और शुक्ल पक्ष का व्रत मोक्ष का प्रदाता है इस व्रत में दामोदर भगवान का पूजन करना चाहिए आज व्रत धारियों को मेरी उखल बंधन लीला का श्रवण करना चाहिए। अब तुम्हें मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा सुनाता हूं-

प्राचीन गोकुल नगर में  वैखानस नाम का राजा बड़ा ही धर्मात्मा और प्रभु भक्त था। उसने रात्रि को स्वप्न में अपने पूज्य पिता को नर्क भोंगते देखा। प्रातः काल ज्योतिषी वेद पाठी ब्राह्मण बोले यहां समीप में पर्वत ऋषि का आश्रम है उनकी शरणागत में आपकी पिता शीघ्र ही स्वर्ग को चले जाएंगे राजा पर्वत मुनि की शरण मैं गया दंडवत करके कहने लगा मुझे रात्रि को स्वप्न में पिता का दर्शन हुआ वह बेचारे यमदूतो के हाथ से दंड पा रहे हैं। आप अपने योग बल से बतलाइए उनकी मुक्ति किस साधन से शीघ्र होगी मुनि ने विचार कर कहा कि और सब धर्म-कर्म देरी से फल देने वाले हैं शीघ्र वरदाता को केवल शंकर जी प्रसिद्ध है परंतु उन को प्रसन्न करने में देर अवश्य लग जाएगी परंतु तब  तक तो तुम्हारे पिता की दुर्गति हो जाएगी। इस कारण सबसे शुभम और शीघ्र फल दाता मोक्षदा एकादशी का व्रत है उसे संयुक्त परिवार सहित विधि पूर्वक कर के पिता को संकल्प कर दो। निश्चय ही उनकी मुक्ति होगी। राजा ने कुटुंब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत करके फल पिता को अर्पण कर दिया। उसके प्रभाव से वह स्वर्ग को चले गए। जाते हुए पुत्र से बोले अब मैं परमधाम को जा रहा हूं श्रद्धा भक्ति से जो मोक्षदा एकादशी का माहात्म्य सुनता है उसे वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है यह कथा ब्रह्मांड पुराण में वर्णित है।

फलाहार-इस दिन  बिल्वपत्र का सागार लेना चाहिए।व्रत मैं दूध फल व सिंघाड़े के आटे के पदार्थ भी ले सकते हैं।


Tuesday, June 30, 2020

आज हरिशयनी एकादशी है जरूर पढ़िए

देवशयनी पदमा एकादशी महात्म्य

(आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी)

कृष्ण भगवान बोले यह धर्मात्मा हे श्रेष्ठ युधिष्ठिर। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम देवशयनी है। ब्रह्मा जी ने नारद से कहा था कि आज के दिन भगवान विष्णु को शयन कराया जाता है। और वह कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को जागते हैं चतुर्मास का व्रत इस एकादशी से प्रारंभ होता है। जो मनुष्य के ब्रम्हचर्य का पालन कर चतुर्मास का व्रत करते हैं वह विष्णु भगवान को प्रिय होते हैं शिवलोक में उसकी पूजा होती है सर्वदेवता उसे नमस्कार करते हैं। ब्राह्मणों को भोजन करा दक्षिणा से प्रसन्न करें गों का दान अवश्य करें और तिल के साथ मिलाकर जो स्वर्ण दान करते हैं वह भोग व मोक्ष दोनों प्राप्त करते हैं गरीबों के लिए गोपी चंदन का दान देने से भगवान प्रसन्न होते हैं हल्दी के दानों से गौरी शंकर जी को प्रसन्नता होती है। और चांदी के पात्र में धर कर हल्दी का दान देना वामन भगवान की प्रसन्नता के लिए है। ब्राह्मणों को दही भात का भोग लगाना चाहिए। चतुर्मास व्रत में जो एक बार भोजन करते हैं समाप्ति में गरीबों को अन्य खिलाते हैं वह सीधे स्वर्ग को जाते हैं। इस व्रत में जौ तथा चावल इत्यादि जो अभ्यागतो को खिलाते हैं वह स्वर्ग को जाते हैं।


अब पदमा एकादशी के महातम में एक पौराणिक कथा कहता हूं। सूर्यवंश में मांधाता नाम का प्रसिद्ध सत्यवादी राजा अयोध्यापुरी में राज करता था एक समय उसके राज्य में अकाल पड़ गया प्रजा दुखी होकर भूख से मरने लगी। हवन आदि शुभ कर्म बंद हो गए राजा को कष्ट हुआ इसी चिंता में वन को चल पड़ा। अंगिरा ऋषि के आश्रम में जाकर कहने लगा हे सप्तर्षियों मैं श्रेष्ठ अंगिरा जी। मैं आपकी शरण हूं मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है प्रजा कहती है कि राजा के पापों से प्रजा को दुख मिलता है और मैंने अपने जीवन में किसी प्रकार का कोई पाप नहीं किया। आप दिव्य दृष्टि से देख कर कहो कि अकाल पड़ने का क्या कारण है? अंगिरा मुनि बोले सतयुग में ब्राह्मणों को वेद पढ़ना और तपस्या करना धर्म है परंतु आपके राज्यों में आजकल एक शूद्र तपस्या कर रहा है शूद्र को मारने से दोष दूर हो जाएगा प्रजा सुख पाएगी! मांधाता बोले मैं उस निरपराध हत्या करने वाले शूद्र को ना मारूंगा, आप इस कष्ट से छूटने का कोई और सुगम उपाय बताइए! ऋषिराज बोले सुगम उपाय कहता हूं भोग तथा मुख्य देने वाली देवशयनी एकादशी है इसका विधिपूर्वक व्रत करो इसके प्रभाव से चतुर्मास तक वर्षा होती रहेगी इस एकादशी का व्रत सिद्धियों को देने वाला तथा उपद्रवो को शांत करने वाला है। मुनि की दीक्षा से मांधाता ने प्रजा सहित पदमा का व्रत किया और कष्ट से छूट गए इसका महत्व  पढ़ने या सुनने से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है आज के दिन तुलसी का बीज पृथ्वी या गमले में बोया जाए तो महान पुण्य होता है तुलसी की  छूइ हुई पवन से भी यमदूत भय  पाते हैं। जिनका कंठ तुलसी की माला से सुशोभित हो, उसका जीवन धन्य समझना चाहिए ‌।
यह कथा भविष्योत्तर पुराण में वर्णित है

फलाहार_इस दिन किशमिश (लाख) का सागार लेना चाहिए। व्रत में किशमिश फल दूध मिठाई आदि भी लिए जा सकते हैं।

कलंक चतुर्थी के बारे में जानिए।

धार्मिक विचारों के अनुसार चतुर्थी तिथि को चंद्र दर्शन करना मना है इसका वैज्ञानिक कारण क्या है?



चतुर्थी तिथि को भगवान श्री कृष्ण पर स्यंतक मणी की चोरी करने का आरोप लगाया गया था इसका दूसरा कारण चंद्रमा को एक बार अपनी सुंदरता का अभिमान हो गया था उसके शंकर सुमन गज बदन प्रथम पूज्य गणेश जी का उपहास किया था।। क्रोधित होकर गणेश जी ने चंद्रमा को शाप दे  डाला कि जाओ तुम काले कलूटे हो जाओ उनके श्राप से चंद्रमा थरथर कांपने लगा उस दिन भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि थी चंद्रमा गणेश जी के पैर पकड़ कर उनसे क्षमा याचना करने लगा। उनकी क्षमा याचना से द्रवित होकर गणेश जी बोले अब से तू सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होगा तथा महीने में केवल 1 दिन ही पूर्णता को प्राप्त होगा मेरा शराफ केवल भाद्रपद की चतुर्थी को विशेष प्रभावी रहेगामेरा श्राप केवल मात्र भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को ही प्रभावी रहेगा जो व्यक्ति इस दिन तेरे तेरे मुख का दर्शन करेगा उसे कलंकित होना पड़ेगा। यानी झूठा कलंक लगेगा। बाकी चतुर्थीयो मैं इस का कोई भी प्रभाव नहीं होगा। इस दिन जो मेरी पूजा करेगा उसका मिथ्या कलंक मिट जाएगा। इस दिन विशेष विशेष रुप से गणेश भगवान जी की पूजा करनी चाहिए जो व्यक्ति इस दिन गणेश भगवान जी की पूजा करता है उसे कभी कलंकित नहीं होना पड़ता।

वैज्ञानिक तथ्य__




सूर्य चंद्र की गणना के अनुसार चतुर्थी तिथि को चंद्रमा ऐसे त्रिकोण पर आ जाता है कि जहां से सूर्य की विषैली किरणें चंद्रमा पर पड़ती है सूर्य की यह विषैली किरणें चंद्रमा से होती हुई पृथ्वी पर पड़ती है इसी कारण चतुर्थी को चंद्रमा के दर्शन करने को मना है।

According to religious views, it is forbidden to see the moon on Chaturthi Tithi, what is the scientific reason for it?



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 On the Chaturthi date, Lord Krishna was accused of stealing Sayantak Mani. Another reason for this was that the moon once became proud of its beauty and ridiculed Shankar Suman Gaj Badan I, the first worshiper Ganesha.  Enraged, Ganesha cursed the moon that you go black, the curse began to tremble. The moon began to tremble on the fourth day of the month of Bhadrapada, the moon held Ganesha's feet and apologized to him.  Impressed by his apology, Ganesha said that from now on you will be illuminated by the light of the sun and only one day in the month will be attained to perfection.  Only the person who sees your face on this day will have to be tarnished.  That is, there will be a false stigma.  It will not have any effect in the remaining fourth.  On this day the false stigma of whoever worships me will be erased.  On this day, one should specially worship Lord Ganesha, especially the person who worships Lord Ganesha on this day never has to be tarnished.

 scientific fact__


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 According to the calculation of Sun Moon, on the Chaturthi date, the moon falls on such a triangle that from where the sun's poisonous rays fall on the moon, this poisonous rays of the sun fall on the earth through the moon, that is why the Chaturthi is forbidden to see the moon.  is.

Monday, June 29, 2020

एकादशी जन्म (उत्पन्ना)

( मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी)

श्री सूत जी अट्ठासी हजार ऋषियों से कहने लगे कि विधि सहित इस एकादशी व्रत का महात्म्य तथा जन्म कि कथा भगवान कृष्ण ने युधिषठिर को सुनाई थी।सतयुग में एक महाभयंकर सुर नाम का राक्षस प्रकट हुआ,उसने अपनी शक्ति से देवताओं को प्रास्त किया और उन्हें अमरावती पूरी से नीचे गिरा दिया।वे बेचारे मृत्यु लोक की गुफाओं में निवास करने लगे ।
तथा कैलाशपति की शरण में जाकर उस दैत्य के अत्याचारों का तथा अपने महान दुख का वर्णन किया शंकर जी कहने लगे आप भगवान विष्णु की शरण में जाइए।आज्ञा पाकर सब देवता क्षीर सागर में गए जहां शेष नाग की शेया पर भगवान श्यन कर रहे थे वेद मंत्रो द्वारा स्तुति कर के भगवान को प्रसन्न  किया।तब प्रार्थना कर के इंद्र कहने लगे एक जंग नाम का दैत्य
भ्रमवश से चंद्रवती नगरी में उत्पन हुआ,उसके पुत्र का नाम मूर है ।उस मूर  दैत्य ने हमें स्वर्ग से निकाल दिया है।आप ही सूर्य बनकर जल का आकर्षण करता है।आप ही मेघ बनकर जल बरसता है भूलोक के बड़े बड़े कर्मचारी देवता सब शरणार्थी बन चुके है।अतः उस बलशाली दैत्यको मारकर हमारा दुख दूर कीजिए।
भगवान बोले हे देवताओं ।में तुम्हारे शत्रु का शीघ्र संहार करुगा।आप निश्चिंत होकर चंद्रवती नगरी पर चढ़ाई करो,में तुम्हारी सहायता करने को पीछे से आउगा।आज्ञा मानकर देवता लोग वहां आए।जहां युद्ध भूमि में मूर दैत्य गरज रहा था। युद्ध प्रारंभ हुआ परंतु मोर के सामने देवता घड़ी वरना ठहर सके। भगवान विष्णु भी पहुंचे सुदर्शन चक्र को आज्ञा दी

शत्रुओं का संहार करो चक्र ने चारों ओर शत्रु का विनाश किया। एक मोड़ देते का सिर ना काट सका। और ना ही गदा उसकी गर्दन तोड़ सके। तब भगवान ने सारंग धनुष हाथ में लिया बानू द्वारा युद्ध प्रारंभ हुआ परंतु शत्रु को ना मार सके। अंत में कुश्ती करने लगे हजारों वर्ष व्यतीत हो गए परंतु प्रभु का दाव बंद एक ना सफल हुआ। मूर दैत्य पर्वत के समान कठोर था प्रभु का शरीर कमल के समान कोमल था वह थक गई मन में विश्राम की इच्छा उत्पन्न हुई शत्रु को पीठ दिखा कर भाग चलें उनकी विश्राम भूमि बद्रिकाश्रम थी। वहां एक गुफा 12 योजन की थी हेमवती उसका नाम था उसमें जाकर सो गई मूर दैत्य अभी पीछे-पीछे चला आया। सोते हुए शत्रु को मारने के लिए तैयार हो गया उस समय एक सुंदर कन्या प्रभु के शरीर से उत्पन्न हुई जिसके हाथ में दिव्यास्त्र थे उसने मूर के अस्त्र शस्त्रों को टुकड़े-टुकड़े कर दिया रथ भी तोड़ दिया। फिर भी उस शूरवीर ने पीठ ना दिखाई। कुश्ती करने को कन्या के समीप आया। कन्या ने धक्का मारकर गिरा दिया और कहां यो यो मल युद्ध का फल है जब उठा तो उसका सिर काट कर कहा कि यह हठयोग का फल है। सब मुर की सेना पाताल को भाग गई। भगवान निद्रा से जागे तो कन्या बोली, यह दैत्य आप को मारने की इच्छा से यहां आया था। मैंने आपके शरीर से उत्पन्न होकर इस का वध किया। भगवान बोले, तुमने सभी देवताओं की रक्षा की है, मैं तुम पर प्रसन्न हूं, वरदान देने को तैयार हूं जो कुछ मन में इच्छा हो वह मांग लो कन्या बोली जो मनुष्य व्रत करें उनके घर में दूध पुत्र धन का निवास रहे और वह अंत में आप के लोक को प्राप्त करें। भगवान बोले तू एकादशी तिथि को उत्पन्न हुई है इस कारण तेरा नाम एकादशी प्रसिद्ध होगा। जो श्रद्धा भक्ति से तेरा व्रत करेंगे उनको सब तीर्थों के स्नान का फल मिलेगा अर्थात उनका मन शुद्ध हो जाएगा अंत में परमधाम को प्राप्त होंगे घोर पापों से उधार करने वाला तेरा व्रत होगा ऐसा कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए। मुर नामक राक्षस का वध करने के उपरांत भगवान विष्णु जी का 1 नाम मुरारी भी पढ़ा। पतित पावनी विश्व तारिणी का जन्म मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष में हुआ इस कारण इनका नाम उत्पन्ना प्रसिद्ध है। इस कथा का वर्णन भविष्य उत्तर पुराण में मिलता है

फलाहार_इसमें गुड़ और बादाम का सागार होता है। गुड्डू के आटे की सामग्री दूध मेवा और फल भी ले सकते हैं

Ekadashi Birth (Utpna)


 (Ekadashi of Krishnapaksha of Margashirsha month)

 Shri Sut ji started telling eighty-eight sages that Lord Krishna had narrated the legend of this Ekadashi fast with birth to Yudhishthira.  Amravati was completely knocked down. They started living in the caves of poor death folk.

 And going to Kailashpati's shelter, he described the atrocities of that monster and described his great sorrow, Shankar ji said, "You go to the shelter of Lord Vishnu. After receiving the orders, all the gods went to the Kshira Sea where the rest were shouting on the Sheya of the Naga Vedas."  Praised God by chanting mantras. Then after praying Indra started saying a monster named Jung

 Confusion was born in the city of Chandravati, the name of his son is Moore. That Moore monster has cast us out of heaven. You are the sun and attracts water.  Have become a refugee. So kill our powerful monster and take away our grief.

 God said, O Gods, I will kill your enemy soon. You will climb into the city of Chandravati with confidence, and I will come from behind to help you. The people came there, obeying the command, where the moor monster was roaring in the battle ground.  The war started but the god could stay in front of the peacock.  Lord Vishnu also reached Sudarshan Chakra


 Destroy the enemies Chakra destroyed the enemy all around.  He could not cut his head while giving a twist.  Neither mace could break his neck.  Then God took the Saranga bow in his hand and started the battle with Banu but could not kill the enemy.  In the end, thousands of years started to wrestle, but Prabhu's claim was not successful.  Moore was as hard as a monster mountain. The body of the Lord was as soft as a lotus. It was a tired mind. A desire for relaxation arose, showing the enemy back and running away. His resting ground was Badrikashrama.  There was a cave of 12 plan, Hemvati was her name, she went and slept in it.  Ready to kill the sleeping enemy, at that time a beautiful girl was born from the body of the lord who had divas in his hand, he broke the chariot in pieces, destroying the weapons of Moore.  Still that knight did not show his back.  Came close to the girl to wrestle.  The girl pushed and dropped and when yo yo mal is the fruit of war, when she got up, she cut off her head and said that it is the fruit of hatha yoga.  Sub Mur's army fled to Hades.  When the god awakened from sleep, the girl said, this monster came here with the desire to kill you.  I originated from your body and killed it.  God said, you have protected all the Gods, I am happy on you, I am ready to give a boon whatever you desire in your heart, ask for a girl who says that the man who fasts should have milk son money in his house and he will finally  Get your folk.  Lord said, you have been born on Ekadashi date, hence your name Ekadashi will be famous.  Those who observe your fast with devotion will get the fruits of bathing in all the pilgrimages, that is, their mind will be purified, in the end, they will receive the supreme abode, who will be your fasting borrower from gross sins.  After killing the demon named Mura, he also read 1 name of Lord Vishnu, Murari.  The name of the descendant Pavni Vishwa Tarini was born in the Krishna Paksha of Margashirsha month, hence his name Utpanna.  This story is described in the future Uttar Purana

 Falahar_ It contains jaggery and almond flour.  Guddu flour content can also be taken from milk nuts and fruits

Sunday, June 28, 2020

एकादशी महात्म्य में अर्थात 26 एकादशियों के महात्मय का वर्णन

जो पुण्य चंद्र या सूर्य ग्रहण में स्नान या दान से होता है जो पुण्य अन्नदान जल दान स्वर्ण दान भूमि दान गौ दान कन्यादान तथा अश्वमेधा यज्ञ करने से होता है,उससे अधिक पुण्य एकादशी व्रत रखने से होता है एकादशी व्रत रखने से शरीर स्वस्थ रहता है अंतरियो की मैल दूर हो जाती है हृदय  शुद्ध हो जाता है। श्रद्धा भक्ति उत्पन्न हो जाती है। प्रभु को प्रसन्न करने का मुख्य साधन एकादशी का व्रत कहा है।एकादशी व्रत करने वाले के पितृ कुयोनि को त्याग कर स्वर्ग में चले जाते हैं एकादशी व्रत करने वाले के 10 पितृ पक्ष की और 10 मातृ पक्ष  के और 10 पत्नी पक्ष की वैकुंठ को जाते हैं। दूध पुत्र धन और कीर्ति को बढ़ाने वाला ऐसा एकादशी का व्रत है एकादशी का जन्म भगवान के शरीर से हुआ है प्रभु के समान पतित पावनी है अतः आपको कोटी शह प्रणाम है।

एकादशी व्रत की विधि

व्रत धारी को दशमी के दिन मांस और प्याज तथा मसूर की दाल इत्यादि निषेध वस्तुओं का त्याग करना चाहिए।रात्रि को ब्रम्हचर्य का पालन करना चाहिए स्त्री से दूर रहे। प्रातः एकादशी को लकड़ी का दांतुन  ना करें। नींबू जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और उंगली से कंठ शुद्ध कर ले। वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है अतः स्वयं गिरा हुआ पता लेकर सेवन करें। फिर सनान कर मंदिर में जाना चाहिए। गीता का पाठ करना या सुनना चाहिए। प्रभु के सामने यह प्रण करना चाहिए कि आज मैं चोर पाखंडी और दुराचारी मनुष्य से बात नहीं करूंगा अपितु भगवान का भजन कर उन्हें प्रसन्न करूंगा। दीपमाला से भुवन में प्रकाश करूंगा ओम नमो भगवते वासुदेवाय । रात्रि को जागरण करके कीर्तन करूंगा। इस द्वादश अक्षर के मंत्र का जाप करूंगा। रामकृष्ण नारायण इत्यादि विष्णु सहस्रनाम को कंठ का भूषण बनाऊंगा।ऐसी प्रतिज्ञा करके प्रभु मंदिर में प्रार्थना करें कि मेरी लाज आपके हाथ में है अतः मेरे प्राण को पूरा कराना।
यदि अचानक भूलवश किसी निंदक से बात कर बैठे तो आप का पाप दूर करने के लिए सूर्य नारायण के दर्शन तथा धूप दीप से भगवान की पूजा कर क्षमा मांग लेनी चाहिए एकादशी के दिन झाड़ू ना देनी चाहिए क्योंकि चिंटी आदि जीव मर जाते हैं
तथा बाल ना कटाने चाहिए अधिक ना बोलना चाहिए गृहस्ती को अन्न का दान देना चाहिए, अनदान लेना वर्जित है झूठ कपट आदि कुकर्म नहीं करने चाहिए और दशमी के साथ मिली हुई एकादशी वृध्द मानी जाती है।
शिव उपासक तो उसको मान लेते हैं वैष्णव के योग्य द्वादशी से मिली हुई एकादशी का व्रत करना चाहिए और त्रयोदशी आने से पहले व्रत पूर्ण कर लेना चाहिए। फलाहारी को गोभी गाजर शलगम पालक कुल्फा मसूर किंग इत्यादि नहीं खाना चाहिए मूली आम अंगूर केला बदाम पिस्ता इत्यादि  अमृत फलों का सेवन करना चाहिए प्रत्येक वस्तु को प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर खाना चाहिए द्वादशी के दिन  ब्राह्मणों को मिष्ठान दक्षिणा से प्रसन्न कर परिक्रमा ले लेनी चाहिए किसी संबंधी की मृत्यु हो जाए उस दिन एकादशी व्रत रखकर उसका फल उसे संकल्प कर देना चाहिए और गंगा जी में अस्ति प्रवाह करने पर भी एकादशी व्रत रखकर फल प्राणी के निमित्त दे देना चाहिए प्राणी मात्र को जगतपिता का अवतार समझकर किसी से छल कपट ना करना मधुर भाषण ना करना कोई अपमान करे तो उसे आशीर्वाद देना क्रोध ना करना क्योंकि क्रोध चांडाल का रूप माना गया है आप देवता रूप हो संतोष कर लेना संतोष का फल सर्वदा सुख कारी होता है सत्य भाषण करना मन में दया रखना इस विधि से व्रत करने वाला दिव्य फल को प्राप्त करता है।

Description of Mahatmya of Ekadashi i.e. 26 Ekadashis


 Punya is done by bathing or donating in lunar or solar eclipse, which is done by performing charity donations, donating water, donating gold, donating land, donating cow, donating Kanyadaan and Ashwamedha Yagya, more than that is done by keeping Ekadashi fast, keeping the body healthy  The dirt of the interiors goes away, the heart becomes pure.  Devotion devotion arises.  The main means of pleasing the Lord is called Ekadashi fast. Ekadashi fasters leave their ancestral Kuyoni and go to heaven. Ekadashi fasters go to 10 ancestral side and 10 maternal side and 10 wife side to Vaikuntha.  Huh.  Milk son is such a fast of Ekadashi, which increases wealth and fame, Ekadashi is born from the body of God, is a holy sanctuary like the Lord, so you have to bow down.

 Method of fasting for Ekadash


 Fasting stripe should sacrifice meat and onions and lentils and other prohibited things on Dashami. Brahmacharya should be observed at night. Stay away from women.  Do not make wooden teeth on Ekadashi in the morning.  Chew with lemon berries or mango leaves and cleanse the throat with your finger.  It is also forbidden to pluck the leaf from the tree, so take it after taking the fallen address.  Then you should visit the temple carefully.  One should recite or listen to the Gita.  It should be resolved in front of the Lord that today I will not talk to a thief hypocritical and vicious person, but I will please God by worshiping him.  I will light in Bhuvan from Deepmala Om Namo Bhagwate Vasudevaya.  I will do Kirtan after awakening at night.  I will recite the mantra of this double letter.  Ramakrishna Narayan etc. I will make Vishnu Sahasranama Bhushan of the throat. Make a pledge and pray in the Prabhu temple that my shame is in your hand, so make my life complete.

 If you accidentally sit talking with a cynic, then to remove your sin, you should pray to God with the sight of Surya Narayana and the incense lamp and ask for forgiveness on the day of Ekadashi, not to sweep it because the ants die.

 And no hair should be cut, no more should be said, the householder should donate food, it is forbidden to take food, false pretenses, etc. should not be misdeeds and Ekadashi mixed with Dashmi is considered old age.

 Shiva worshipers believe that one should fast on the Ekadashi found on the Dwadashi worthy of Vaishnavism and complete the fast before coming to Trayodashi.  Falahari should not eat cabbage, carrot, turnip spinach, kulfa, lentil king, etc., should eat nectar fruits like radish, mango grape, banana, badam, pistachio, etc. Everything should be eaten by offering it to the Lord and offering it to the Lord and leaving Tulsidal, on the day of Dwadashi, the Brahmins will be pleased with the sweet dakshina and take the circumambulation.  On the day of death of a relative, he should resolve his fruit by keeping Ekadashi fast on that day, and even after flow of Ganga ji, by keeping Ekadashi fast, he should give the fruit for the sake of the creature, considering the mere creature as the incarnation of Jagadpita and deceit someone  Don't make a sweet speech, don't do any insult, bless him if you don't insult him, because anger is considered to be the form of a chandala, you can be a godly form, you can always be happy as a fruit of contentment.  The doer receives the divine fruit.

Thursday, June 25, 2020

वर्ण व्यवस्था मनुष्य पर ही लागू होती है या पशु पक्षी पर भी?

वर्ण व्यवस्था मनुष्यों पर ही नहीं बल्कि देवताओं पशु पक्षियों पर भी लागू होती है तैतिरिया ब्राह्मण के एक मंत्र के अनुसार सनकादि ऋषि  ब्राह्मण वर्ण में आते हैं इंद्र वरुण सोम रुद्र आदि देवता क्षत्रिय वर्ण में आते हैं गणेश और वसु आदि देवता वैश्य वर्ण में आते हैं पूषा आदि देवता शुद्र वर्ण में आते हैं पशुओं में सत्व गुणों के आधार पर ब्राह्मण वर्ग में सिंह बाघ चीता आदि क्षत्रिय वर्ण में गाय भैंस घोड़ा ऊंट आदि वैश्य वर्ण में तथा सूअर सियार आदि शुद्र वर्ण में गिने जाते हैं।
पक्षियों में कबूतर सारस हंस मैना तोता आदि पक्षी ब्राह्मण वर्ण में आते हैं। बाज नीलकंठ आदि पक्षी क्षत्रिय तीतर बटेर मोर यह वैश्य वर्ण में तथा गिद्ध चील कौवा बगुला आदि शूद्रों की श्रेणी में आते हैं।
वृक्षों में देवदार शमी पीपल पलाश तुलसी आदि वृक्षों की गिनती ब्राह्मण वर्ण में की जाती है। रक्त चंदन शीशम सागवान आदि के वृक्षों की गिनती क्षत्रिय वर्ण में की जाती है। बांस बबूल नागफनी आदि के वृक्षों की गिनती शुद्र वर्ण में की जाती है जबकि नीम बरगद आदि वैश्य वर्ण में रखे गए हैं।

वर्ण व्यवस्था पहले जन्मजात थी या कर्म के अनुसार रखी गई थी?

सामान्य तौर पर वर्ण व्यवस्था जन्मजात मानी जाती है परन्तु विद्वानों के अनुसार मनुष्य जन्म के समय शूद्र होता है क्युकी कमर के नीचे वाला भाग शूद्र की श्रेणी में आता है। संस्कारो के फलस्वरूप उसमें ब्रह्मणत्व क्षत्रियत्व अथवा अन्य कोटि के भाव आते है परन्तु जन्म जात विशेषताओं को भी नकारा नहीं का सकता।बहुत पुरानी कहावत है कि खून अपने खून (पुत्र भाई आदि से तात्पर्य )को अपनी ओर प्रभावित करता है।
वैज्ञानिक भी इस बात को मानते है कि वीर्य में वंशागत गुणधर्म पुत्र में पाए जाते है।बाहरी संस्कारो से थोड़ा परिवर्तन हो सकता है परन्तु बालक में उसके माता पिता के गुण विशेष रूप में विद्यमान रहेंगे।परन्तु इसके साथ साथ पहले वर्ण व्यवस्था जन्म जात ना होकर कर्मानुसार रखी गई थी।

Does the varna system apply only to humans or animals?


 The Varna system is applicable not only to humans but also to animals and birds, according to a mantra of Taittiriya Brahmin, Sanakadi Rishi comes in the Brahmin varna Indra Varuna Som Rudra etc. Deities come in Kshatriya varna Ganesha and Vasu etc. deities come in Vaishya varna.  The deities of Pusha etc. come in the Shudra varna, on the basis of sattva qualities in animals, in the Brahmin class, lion tiger, leopard, etc. Kshatriya, cow buffalo, horse camel, etc. are counted in the Vaishya varna and swine jackal etc. are counted in the Shudra varna.

 Among birds, pigeons, cranes, goose, parrot, etc. birds fall in the Brahmin varna.  The eagle, Neelkanth, etc., birds, Kshatriya pheasant quail, peacock, it falls in the category of Vaishya varna and vulture eagle, crow heron etc.

 Among the trees, the cedar shami Peepal Palash Tulsi etc. trees are counted in the Brahmin varna.  Trees of blood sandalwood rosewood teak etc. are counted in Kshatriya varna.  The trees of bamboo acacia hawthorn etc. are counted in the Shudra varna while the Neem Banyan etc. are placed in the Vaishya varna.

 Was the varna system first born or kept according to karma?


 Normally the varna system is considered to be innate, but according to scholars, a man is a Shudra at birth because the lower part of his waist falls under the category of Shudra.  As a result of sanskars, Brahmanatta comes with Kshatriyatva or other qualities, but birth can also not negate the characteristics of the caste. There is a very old saying that blood affects its blood (meaning son, brother etc.) towards itself.

 Scientists also believe that inheritance properties in semen are found in the son. Out of the rites there may be a slight change, but in the child, the qualities of his parents will be present in a special way, but along with it the first varna system is born.  It was kept in order.

Tuesday, June 23, 2020

देवताओं में सर्वश्रेष्ठ और अग्रपूज्य गणेश जी को माना गया है इसका क्या कारण है?

अनेक लोगों का यही प्रश्न होता है कि अनेक सुंदर और शक्तिशाली देवता होते हुए भी प्रथम पूज्य श्री गणेश जी क्यों है? सूर्य से हमें रोशनी प्राप्त होती है।  इंद्र देवता वर्षा करके हमारी खेती में सहायता करते हैं पवन देव समस्त जीवधारियों के प्राण रक्षक है। फिर गणेश जी की प्रथम पूजा क्यों होती है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक बार देवताओं में यह विवाद छिड़ गया कि हम हमें सर्वश्रेष्ठ कौन है सभी देवता अपने अपने को श्रेष्ठ बता रहे थे इस तरह कोई निर्णय ना हो सका। अंत में यह निश्चित हुआ कि जो देवता तीनों लोगों की सबसे पहले परिक्रमा करके यहां पहुंचेगा वहीं सर्वश्रेष्ठ माना जाएगा तथा वहीं मनुष्यों में प्रथम पूज्य होगा। यह सुनकर सभी देवता अपने अपने वाहनों पर बैठकर तीनों लोकों की परिक्रमा करने चल पड़े। बुद्धि में तेज श्री गणेश वहीं रुक कर सोचने लगे वे वहां से चलकर उस स्थान पर गए जहां उनके माता-पिता बैठे हुए थे उन्होंने अपने माता पिता शिव पार्वती की तीन परिक्रमा ए लगाकर वापस वहीं पर आ गए तथा सभापति के आसन पर विराजमान हो गए अन्य देवताओं में सर्वप्रथम अपने वाहन पर मयूर पर आकर कार्तिकेय जी तीनों लोकों की परिक्रमा करके आ गए परंतु श्रीगणेश को सभापति के आसन पर विराजमान देखकर क्रोधित हो गए उन्होंने क्रोध अवस्था में अपने मुकद्दर का प्रहार श्री गणेश पर किया जिससे श्री गणेश का 2 दंतो में से एकदंत टूट गया तभी से वे एकदंत कहलाए जाने लगे। इसके पश्चात श्री गणेश जी ने सब देवताओं के समक्ष अपना तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि तीनों लोगों की सुख संपदा माता पिता के चरणों में विराजित होती है माता पिता की चरण सेवा ही सर्वोपरि है जो व्यक्ति अपने माता पिता के चरणों को छोड़कर तीनों लोगों का भ्रमण करता फिरता है उसका सारा परिश्रम व्यर्थ चला जाता है। मैं श्री गणेश जी मैं जो विशेषताएं हैं यदि मानव उन्हें ग्रहण कर ले तो वह भी अपने समाज में प्रथम बन जाएगा भगवान गणेश का मस्तक हमें लाभप्रद विचार ग्रहण करने की प्रेरणा देता है उनके बड़े बड़े कान उत्तम विचारों को सुनने की प्रेरणा प्रदान करते हैं नीचे की ओर लटकी सूंड खतरों को सूखने की प्रेरणा देती है एक दांत से वचनबद्धता तथा दो छोटी छोटी आंखें ध्यान मग्नता की ओर संकेत करती है। मोटा पेट पाचन शक्ति और धैर्य ता का प्रतीक है। विघ्नों के विनाश हेतु हाथ में फरसा तथा मानव कल्याण के लिए वर्द   धारण किए है। उपरोक्त गुण अन्य देवताओं में नहीं पाए जाते और अन्य पुराणों में तो इसका और कारण भी बताया गया है
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Ganesha is considered the best and foremost among the gods, what is the reason for this?

 Many people have the same question that despite being many beautiful and powerful gods, why is Shri Ganesh the first worshiper?  We get light from the sun.  The God of Indra helps in our cultivation by rain and the wind is the life-saver of all living beings.  Then why is Ganesha first worshiped.

 According to a legend, once in ancient times, there was a dispute among the gods that we are the best of all, all the gods were calling themselves superior, thus no decision could be made.  In the end, it was decided that the deity which will reach here after first circling the three people, will be considered the best and there will be first worship among humans.  Hearing this, all the gods sat on their own vehicles and went around the three worlds.  Bright in wisdom, Mr. Ganesh stopped there and started thinking that he went from there to the place where his parents were sitting.  Among the other gods, Karthikeya ji came first on his vehicle on a peacock orbiting the three worlds, but was enraged upon seeing Shree Ganesha seated on the seat of the Speaker, he struck his crown in a state of anger on Shri Ganesh which caused Shri Ganesh in 2 teeth.  He broke the monologue since then he started being called Ekadanta.  After this, Shri Ganesh Ji presented his argument before all the gods and said that the happiness and wealth of all the three people is entrenched at the feet of the parents, the step service of the parents is the paramount person who leaves the feet of his parents.  All his hard work goes in vain while traveling.  The characteristics of Shri Ganesh ji, if a human being accepts them, he will also become the first in his society, Lord Ganesha's forehead inspires us to receive beneficial thoughts. His big ears provide inspiration to listen to the best ideas below.  The trunk hanging towards it inspires to dry up the dangers; Commitment with one tooth and two small eyes indicates meditation.  Fat belly is a symbol of digestive power and patience.  He has worn an ax in his hand for destruction of obstacles and a ward for human welfare.  The above qualities are not found in other gods and in other Puranas, the reason for this is also given.

Monday, June 22, 2020

श्रद्धा और विश्वास का देश है हिंदुस्तान


श्रद्धा और विश्वास का देश है हिंदुस्तान।

श्रद्धा और विश्वास का देश है हिंदुस्तान। क्यों करते हैं इतना अधिक विश्वास?

श्रद्धा और विश्वास के बिना कोई कार्य पूरा नहीं हो सकता। संसार  प्रत्येक कार्यों में विश्वास की अधिक आवश्यकता होती है मान लो कि हम पूजा करने के लिए मंदिर में जाते हैं यदि हमारे मन में मूर्तियों के प्रति श्रद्धा और विश्वास नहीं है तो हमारा पूजा करना व्यर्थ हो जाएगा। देश में मंदिरों का निर्माण लोगों के मन में ईश्वर तथा देवी-देवताओं के प्रति आस्था उत्पन्न करने के लिए हुआ है। नास्तिक भी यदि एक बार मंदिर में चला जाता है तो उसका भी मन शांत हो जाता है। हमारी निष्ठा और भावना ही प्रधान होती है और उन्हें देखकर नास्तिकों के मन में भी भगवान के प्रति भावना जागृत होने लगती है।
एक दूसरे पर विश्वास करने के पीछे हिंदू लोगों का यह विचार होता है कि प्रत्येक प्राणी के अंतः करण में ईश्वर का निवास होता है। वह प्राणी, वह मनुष्य चाहे सद्बुद्धि वाला या पापी हो।
उदाहरण के लिए एक दुकानदार के पास एक  चोर आया
और बोला सेठ जी। मुझे अपने पास नौकरी पर रख लो। दुकानदार ने उसके चेहरे को पढ़ा। उसे पता था कि यह चोर है फिर भी मुस्कुरा कर बोला ठीक है तुम कल से नौकरी पर आ जाना। वह चोर उस दिन अपने घर लौट गया और मन ही मन यह सोच रहा था कि अब मेरी चांदी रहेगी मौका मिलते ही अपने पसंद की चीजें चोरी कर लिया करूंगा। भला इतने बड़े व्यापार में थोड़े बहुत कि क्या चोरी का पता चलेगा? दूसरे दिन जब चोर काम पर पहुंचा तो सेठ ने कहा देखो भाई। देखने में तो तुम शरीफ लगते हो।हम तो यहां ईमानदार व्यक्ति को ही प्राथमिकता प्रदान करते हैं। चेहरे मोहरे से तो तुम ईमानदार लगते हो। उस लड़के ने हां में सिर हिला दिया। सेठ जी बोले तुम मेरी गद्दी पर बैठकर कामकाज की देखभाल करो। मैं किसी जरूरी काम से बाहर जा रहा हूं। यह सुनते ही वह लड़का बहुत खुश हुआ। सेठ जी के जाने के बाद लड़के ने गले की तरफ हाथ बढ़ाया तो उसी समय लड़के के मन में ईश्वर की प्रेरणा से विचार आया कि अगला मेरी ईमानदारी पर सब कुछ छोड़ कर गया है मैं चोरी कैसे करूं? यह कहलाता है ह्रदय परिवर्तन। इसलिए हिंदू लोग आंखें बंद कर दूसरे पर विश्वास करते हैं।

India is a country of faith and trust.  Why do you believe so much?


 No work can be completed without faith and trust.  The world requires more faith in every act. Suppose we go to the temple to worship. If we do not have faith and faith in the idols, then worshiping us will be in vain.  Temples have been constructed in the country to inculcate faith in Gods and Gods and Goddesses.  Once an atheist also goes to the temple, his mind also becomes calm.  Our loyalty and feeling are predominant, and seeing them, the feeling of God in the mind of atheists also begins to awaken.

 Hindu people have the idea of ​​believing in each other that God resides in the conscience of every living being.  That creature, whether a man is a wise man or a sinner.

 For example a shopkeeper came across a thief

 And said Seth ji.  Hire me near you  The shopkeeper read her face.  He knew that this is a thief, yet he smiled and said okay, you will come on the job from tomorrow.  That thief returned to his home that day and was thinking that now my silver will be stolen, I will steal the things of my choice as soon as I get the chance.  Well, in such a big business, there is little to know about the theft?  When the thief arrived at work the next day, Seth said, look, brother.  You seem to be decent to see. We give priority to honest person here only.  You look honest with a face piece.  The boy nodded yes.  Seth Ji said that you sit on my throne and take care of work.  I am going out of any urgent work.  The boy was very happy on hearing this.  After Seth ji left, the boy extended his hand towards the throat, then at the same time the idea came from the inspiration of God in the boy's mind that the next one has left everything to my honesty, how do I steal?  This is called change of heart.  Therefore, Hindus believe in others by closing their eyes.

Saturday, June 20, 2020

लोग पीपल के वृक्ष की पूजा क्यों करते हैं?

पीपल का वृक्ष सब वृक्षों में पवित्र वृक्ष माना गया है। हिंदुओं की धार्मिक आस्था के अनुसार भगवान विष्णु का पीपल के वृक्ष में निवास है। श्रीमद भगवद गीता में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि वृक्षों में मैं पीपल हूं। स्कंद पुराण में बताया गया है कि पीपल की जड़ में विष्णु जी तन्ने में केशव कृष्ण जी शाखाओं में नारायण पत्तों में भगवान हरि और फलों में समस्त देवताओं का निवास है

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि संसार में केवल पीपल का ही पेड़ ऐसा है जो 24 घंटे दिन हो या रात ऑक्सीजन छोडता रहता है जो प्राण धारियों के लिए प्राणवायु कही जाती है। प्रत्येक प्राणी ऑक्सीजन ग्रहण करता है और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है। इस गुण के अतिरिक्त इसकी छाया जाड़ों में गर्मी देती है और ग्रीष्म ऋतु में शीतलता प्रदान करती है पीपल के पत्तों का स्पर्श होने पर वायु में संक्रामक वायरस नष्ट हो जाते हैं

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Why do people worship the Peepal tree?


 Peepal tree is considered as the sacred tree among all trees.  According to the religious belief of Hindus, Lord Vishnu resides in the Peepal tree.  In the Srimad Bhagavad-gītā, Lord Sri Krishna himself has said that I am a Peepal in trees.  It is told in Skanda Purana that Vishnu ji in the root of Peepal, Keshava Krishna ji in the stem, Lord Hari in Narayana leaves in branches and all the gods in fruits are inhabited.

 scientific approach


 You will be surprised to know that the only peepal tree in the world is such that it leaves oxygen for 24 hours day or night, which is said to be a life for the souls.  Each animal takes oxygen and releases carbon dioxide.  In addition to this property, its shade gives warmth in winter and provides coolness in summer, infectious viruses are destroyed in air when touch of peepal leaves.

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Friday, June 19, 2020

लक्ष्मी जी का निवास कहां कहां पर होता है

लक्ष्मी जी का निवास कहां कहां पर होता है?

वैज्ञानिक दृष्टि कोण एवम् व्यवहारिक दृष्टि से देखें तो गंदगी वाले स्थान या गंदा रहने वाले मनुष्यो से लक्ष्मी सदैव दूर रहती है।
दिन में सोने वाला व्यक्ति,आलसी,गंदे कपड़े धारण करने वाले व्यक्ति तथा अधिक भोजन करने वाले व्यक्ति से लक्ष्मी जी दूर रहतीं है।महाभारत काल में लक्ष्मी जी ने रुक्मणि से कहा कि- हे सखी । कलह करने वाले मलिन निंदक असावधान और निर्लज्ज व्यक्तियो से मै दूर रहतीं हूं। इसीलिए हमेशा साफ सुथरा रहना चाहिए। 

Where does Laxmi ji reside?


 From a scientific point of view and practical point of view, Lakshmi always stays away from the place where people live in filth or dirty.

 Laxmi ji stays away from the person sleeping during the day, lazy, wearing dirty clothes and eating more food.  I stay away from the squeamish cynical ignorant and shameless individuals.  That is why one should always be clean and tidy.

Wednesday, June 17, 2020

क्या आप जानते हैं कि लोग माथे पर तिलक क्यों लगाते हैं?

लोग मस्तक पर तिलक क्यों लगाते हैं?

तिलक, त्रिपुंड, टीका अथवा बिंदिया आदि का सीधा संबंध मस्तिष्क से होता है। मनुष्य की दोनों भौंहों के बीच आज्ञा चक्र होता है। इस चक्र पर ध्यान केंद्रित करने पर साधक का मन पूर्ण शक्ति संपन्न हो जाता है। हम इसे चेतना केंद्र भी कह सकते हैं। समस्त ज्ञान एवं चेतना का संचालन इस स्थान से होता है।
आज्ञा चक्र ही तृतीय नेत्र है। इस स्थान को दिव्य नेत्र भी कहा जा सकता है। तिलक लगाने से आज्ञा चक्र जागृत होता है, जिसकी तुलना राडार, टेलिस्कोप आदि से की जा सकती है। इसके अतिरिक्त तिलक सम्मान सूचक भी है। तिलक लगाने से धार्मिकता का आभास होता है।

                              वैज्ञानिक कारण                

   हम अपने मस्तिष्क से आवश्यकता से अधिक काम लेते हैं  
इसका परिणाम यह होता है कि ज्ञान तंतुओं का विचारक केंद्र मूकुटि और ललाट के मध्य भाग में वेदना होने लगती है। चंदन ज्ञान तंतुओं को शीतलता प्रदान करता है। 
 इसीलिए  प्रतिदिन चंदन का तिलक लगाते हैं। जो प्राणी प्रतिदिन प्रात काल स्नान के पश्चात चंदन का लेप माथे पर करता है उसे सिर दर्द की शिकायत भी नहीं होती। उपरोक्त वैज्ञानिक तथ्य को डॉक्टर हकीम और वैद्य सभी स्वीकार करते हैं।

Why do people apply tilak on the forehead?


 Tilak, Tripund, Tika or Bindiya etc. are directly related to the brain.  There is a command cycle between the two eyebrows of man  By focusing on this chakra, the mind of the seeker becomes fully empowered.  We can also call it the center of consciousness.  All knowledge and consciousness operate from this place.

 Commandment cycle is the third eye.  This place can also be called the Celestial Eye.  Applying tilak awakens the command cycle, which can be compared to radar, telescope etc.  Apart from this, Tilak is also an honor indicator  Applying tilak gives an idea of ​​righteousness.

 Scientific reason

 We overwork our brains

 The result of this is that the thinker center of the knowledge fibers starts suffering in the middle part of the mookuti and frontal.  Sandalwood provides coolness to the wisdom fibers.


 That is why we apply sandalwood tilak every day.  A person who applies sandalwood paste on the forehead after bathing every morning does not even have a headache.  All the above scientific facts are accepted by doctors Hakim and Vaidya.

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Tuesday, June 16, 2020

बिना स्नान किए भोजन करना उचित है या नहीं?

बिना स्नान किए भोजन करना उचित है या नहीं

(स्नान करने से पहले क्या-क्या खाया जा सकता है? वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या है?)

शास्त्रों के अनुसार बिना स्नान किए भोजन करना गंदगी खाने के समान है अस्नायी समलं भुक्ते ।
 स्नान करने से पूर्व यदि जोरों की भूख लगी हो तो तरल भोजन जैसे दूध गन्ने का रस चाय और फल लिए जा सकते हैं। दवाइयां भी ली जा सकती है।
विज्ञान के अनुसार स्नान करने से शरीर के रोम कूपों का शिंचन हो जाता है। शरीर के पसीने के रूप में निकले पानी की पूर्ति स्नान करना से हो जाती है। शरीर से आलस्य समाप्त हो जाता है तथा भूख भी खुलकर खूब लगती है।
यदि भूख स्नान करने से पहले ही लग रही हो तो स्नान करने के बाद वह और बढ़ जाती है।
इस तरह भोजन का रस हमारे शरीर के लिए पुष्टि वर्धक सिद्ध होता है। बिना स्नान के भोजन करने से हमारे शरीर के अंदर की जठरागनी उसे पचाने के कार्य में लग जाती है। खाना खाने के बाद स्नान करने से शरीर शीतल पड़ जाता है और पाचन शक्ति मन्द हो जाती है इसका परिणाम यह होता है कि भोजन पूर्ण रूप से पचता नहीं है और कब्ज अथवा गैस की शिकायत रहने लगती है अतः शरीर को स्वस्थ रखने के लिए हमें स्नान करने के बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।


Whether it is appropriate to eat without bathing?




 (What can be eaten before bathing? What is the scientific approach?)

 According to the scriptures, eating without bathing is like eating dirt, paying for uneasy samalte.

 If you are hungry before taking bath, then liquid food like milk, sugarcane juice, tea and fruits can be taken.  Medications can also be taken.

 According to science, bathing causes scarring of the follicles of the body.  Bathing is accomplished by bathing the water released in the form of body sweat.  Laziness is eliminated from the body and hunger is also very open.

 If hunger is felt before taking bath then after bathing it increases further.

 In this way, the juice of food proves to be a validation for our body.  By taking food without bathing, the gastronomy inside our body gets used to digesting it.  Taking a bath after eating food makes the body cool and the digestive power slows down. As a result, the food is not fully digested and there are complaints of constipation or gas, so bathing us to keep the body healthy  Food should be taken only after doing.

સુકા વિનાનો ખોરાક આપવો જોઈએ કે નહીં?


 (સૌ પ્રથમ પહેલા શું-શું કરી શકાય? વૈજ્ वैज्ञानिकાનિક વિચારણા શું છે?)

 ગ્રંથો અનુસાર ગ્લાનિ ભોજન સમાન અસ્નાયે સમલ ભૂક્તે.

 ભૂતકાળમાં જો કોઈ ભૂતપૂર્વક ભોજન થઈ શકે છે, તો તે ભોજન જેવા હોય છે.  દેશીયં પણ લી માણે છે.

 વિજ્ अनुसारાન અનુસાર સ્નાન કરવાથી શરીરના રોમ કૂપન્સ શિંચન હો છે.  શારીરિક પેસિને નિકલ પાણીની પૂર્તિ શુધ્ધિમાંથી કોઈ જાતિ છે.  શારીરિક અલ્યાસ સમાપ્ત થાય છે અને ભૂખ પણ ખુलकर कल्पना लगती है.

 જો ભૂકૃષ્ણ પહેલાં તેણીની વૃદ્ધિ પામતી હતી અને તે વૃદ્ધિ પામતી હતી.

 આ પ્રકારના ભોજનનો રસ આપણા શરીર માટે તપાસ વર્ધક સિધ્ધ થાય છે.  શુષ્ક ભોજનથી આપણા શરીરની અંદરના જથ્થાગની તે પચેનીની કાર્ય જાતિમાં નથી.  રસોઈ પછી ભોજન પછી શારીરિક શીતલ આવે છે અને તે પાચન શક્તિ હોય છે, જે પરિણામ છે કે તે ખોરાકને સંપૂર્ણ રીતે પકડતો નથી અને કબજે લેતો હોઇ શકે તેવો ભાગ છે  તે પછી તે જ ભોજન ગ્રહણ કરો.


 શું સ્નાન કર્યા વિના જમવું યોગ્ય છે?


 (નહાતા પહેલા શું ખાય છે? વૈજ્ scientificાનિક અભિગમ શું છે?)


 શાસ્ત્રો અનુસાર, સ્નાન કર્યા વિના ખાવું તે ગંદકી ખાવાનું, અસ્વસ્થતાવાળા સમલટે માટે ચૂકવણી કરવા જેવું છે.


 જો તમને નહાતા પહેલા ભૂખ લાગે છે, તો પછી દૂધ, શેરડીનો રસ, ચા અને ફળો જેવા પ્રવાહી ખોરાક લઈ શકાય છે.  દવાઓ પણ લઈ શકાય છે.


 વિજ્ toાન મુજબ, સ્નાન કરવાથી શરીરના ફોલિકલ્સ ડાઘ થાય છે.  શરીરના પરસેવાના સ્વરૂપમાં છૂટેલા પાણીને સ્નાન દ્વારા સ્નાન કરવામાં પરિપૂર્ણ થાય છે.  આળસ શરીરમાંથી દૂર થાય છે અને ભૂખ પણ ખૂબ ખુલ્લી હોય છે.


 જો નહાતા પહેલા ભૂખ લાગતી હોય તો નહા્યા પછી તે વધુ વધી જાય છે.


 આ રીતે, ખોરાકનો રસ આપણા શરીર માટે માન્યતા સાબિત થાય છે.  સ્નાન કર્યા વિના ખોરાક લેવાથી આપણા શરીરની અંદરની ગેસ્ટ્રોનોમી તેને પચાવવાની ટેવ પામે છે.  ખાધા પછી સ્નાન કરવાથી શરીર ઠંડુ થાય છે અને પાચન શક્તિ ધીમી પડે છે.  પરિણામે, ખોરાક સંપૂર્ણ રીતે પચતું નથી અને કબજિયાત અથવા ગેસની ફરિયાદો છે, તેથી શરીરને તંદુરસ્ત રાખવા માટે અમને સ્નાન કરાવ્યા પછી જ ખોરાક લેવો જોઈએ.

ब्राह्मण को देवता क्यों कहा गया है?

ब्राह्मण को देवता क्यों कहा गया है

संपूर्ण संसार देवताओं के अधीन माना गया है देवता सदैव मंत्रों के अधीन रहते हैं अर्थात मंत्रों से उनकी पूजा आराधना की जाती है तभी वे प्रसन्न होते हैं
मंत्रों का ज्ञान मंत्रों का प्रयोग तथा उनके रहस्य का ज्ञान ब्राह्मण ही भली भांति जानते हैं। इस तरह ब्राह्मण का स्थान समाज में देवताओं के समतुल्य है। इसी कारण ब्राह्मण को देवता कहा गया है।
ब्राह्मण प्राचीन काल से ही जप तप पूजा पाठ आराधना मैं संलग्न है ‌ धर्म शास्त्र कर्मकांड आदि के ज्ञान के साथ-साथ उनमें उदारता सात्विकता तथा त्याग की भावना रहती है इस कारण वे ईश्वर तत्व के सर्वाधिक निकट रहते हैं इसके साथ साथ परंपरागत पूजा पाठ करने की मान्यता भी इन्हें प्राप्त है।




 Why is a Brahmin called a deity?


 The whole world is considered to be under the gods. The gods are always subjected to mantras, that is, they are worshiped with mantras only when they are happy.

 Knowledge of mantras The use of mantras and knowledge of their secrets is well known by Brahmins.  In this way the Brahmin's place is equivalent to the gods in society.  That is why Brahmin is called a deity.

 Brahmins have been engaged in worshiping chanting and worshiping rituals since ancient times. Along with the knowledge of religious scriptures, rituals, etc., they have a sense of generosity, sattvikta and renunciation, due to this, they remain most close to the God element along with traditional rituals.  They also get recognition of

Monday, June 15, 2020

शंख का उपयोग?

शंख का उपयोग?

पूजा कथा आरती एवं अन्य धार्मिक कार्यों में हिंदू लोग शंख बजाते हैं। शंख बजाने के पीछे हिंदू वर्ग की पूर्ण रूप से धार्मिक आस्था निहित है। अथर्ववेद 4-10 -2 के अनुसार शंख की ध्वनि जहां तक पहुंचती है वहां तक के राक्षसों का नाश हो जाता है। युद्ध के क्षेत्र में शंख बजाने का उद्देश्य शत्रु के मन में भय उत्पन्न करना होता है। महाभारत युद्ध में भगवान श्री कृष्ण जी की शंख ध्वनि सुनकर कौरवों के हृदय
कांपने लगते थे। पूजा में शंख ध्वनि का अर्थ यह है कि जिस देवी अथवा देवता की पूजा की जा रही है उसकी जय जयकार करना।


शंख ध्वनि करने वाले व्यक्ति को दमा श्वास रोग फेफड़ों के रोग इनफ्लुएंजा आदि रोग नहीं लगते। यदि कोई व्यक्ति बोलने में हक लाता है तो उसे बार-बार शंख बजाना चाहिए। इससे उसका हकलाना बंद हो जाएगा।
पूजा के समय में शंख में जल भरकर वेद स्थान में रखना चाहिए। उस पर चंदन का टीका लगाना चाहिए चंदन का टीका लगाने से शंख का पानी चंदन की सुगंध से परिपूर्ण हो जाएगा। पूजा की समस्त सामग्रियों पर इस जल को छिडके। तथा पूजा में उपस्थित व्यक्तियों पर भी इस जल का छिड़काव करें। शंख में रखे जल का छिड़काव मंत्र उच्चारण करते हुए छिड़कना चाहिए। वैज्ञानिक दृष्टि से शंख में कैल्शियम फास्फोरस और गंधक की मात्रा होती है शंख में भरे जल में इनके गुण आ जाते हैं तथा वे वस्तुएं रोगाणु नाशक हो जाती है जिन पर शंख काजल छिड़का गया है


Use of shellfish?


 Hindus play conch shells in Puja Katha Aarti and other religious functions.  The religious belief of the Hindu class lies behind the playing of conch shells.  According to the Atharvaveda 4-10 -2 the demon is destroyed as far as the sound of the conch reaches.  The purpose of ringing a conch in the field of war is to create fear in the mind of the enemy.  Hearing the conch sound of Lord Krishna in the Mahabharata war, the hearts of the Kauravas


 Used to tremble.  The conch sound in worship means to cheer the goddess or deity who is being worshiped.

 The person who sounds conch shell does not have asthma, respiratory disease, lung disease, influenza etc.  If a person is able to speak, then he should play conch shell again and again.  This will stop his stutter.

 At the time of worship, water should be filled in the conch and kept in the Vedas.  Sandalwood vaccine should be applied on it, by applying sandalwood vaccine, the conch water will be filled with the fragrance of sandalwood.  Sprinkle this water on all the materials of worship.  And sprinkle this water on the people present in the worship.  Water sprinkled in the conch should be sprinkled while chanting the mantra.  Scientifically, the conch contains calcium phosphorus and sulfur, its properties come in the water filled in the conch and those things become germicides on which the conch mascara is sprinkled.





शंख का उपयोग?

पूजा कथा आरती एवं अन्य धार्मिक कार्यों में हिंदू लोग शंख बजाते हैं। शंख बजाने के पीछे हिंदू वर्ग की पूर्ण रूप से धार्मिक आस्था निहित है। अथर्ववेद 4-10 -2 के अनुसार शंख की ध्वनि जहां तक पहुंचती है वहां तक के राक्षसों का नाश हो जाता है। युद्ध के क्षेत्र में शंख बजाने का उद्देश्य शत्रु के मन में भय उत्पन्न करना होता है। महाभारत युद्ध में भगवान श्री कृष्ण जी की शंख ध्वनि सुनकर कौरवों के हृदय
कांपने लगते थे। पूजा में शंख ध्वनि का अर्थ यह है कि जिस देवी अथवा देवता की पूजा की जा रही है उसकी जय जयकार करना।


शंख ध्वनि करने वाले व्यक्ति को दमा श्वास रोग फेफड़ों के रोग इनफ्लुएंजा आदि रोग नहीं लगते। यदि कोई व्यक्ति बोलने में हक लाता है तो उसे बार-बार शंख बजाना चाहिए। इससे उसका हकलाना बंद हो जाएगा।
पूजा के समय में शंख में जल भरकर वेद स्थान में रखना चाहिए। उस पर चंदन का टीका लगाना चाहिए चंदन का टीका लगाने से शंख का पानी चंदन की सुगंध से परिपूर्ण हो जाएगा। पूजा की समस्त सामग्रियों पर इस जल को छिडके। तथा पूजा में उपस्थित व्यक्तियों पर भी इस जल का छिड़काव करें। शंख में रखे जल का छिड़काव मंत्र उच्चारण करते हुए छिड़कना चाहिए। वैज्ञानिक दृष्टि से शंख में कैल्शियम फास्फोरस और गंधक की मात्रा होती है शंख में भरे जल में इनके गुण आ जाते हैं तथा वे वस्तुएं रोगाणु नाशक हो जाती है जिन पर शंख काजल छिड़का गया है


Use of shellfish?


 Hindus play conch shells in Puja Katha Aarti and other religious functions.  The religious belief of the Hindu class lies behind the playing of conch shells.  According to the Atharvaveda 4-10 -2 the demon is destroyed as far as the sound of the conch reaches.  The purpose of ringing a conch in the field of war is to create fear in the mind of the enemy.  Hearing the conch sound of Lord Krishna in the Mahabharata war, the hearts of the Kauravas


 Used to tremble.  The conch sound in worship means to cheer the goddess or deity who is being worshiped.

 The person who sounds conch shell does not have asthma, respiratory disease, lung disease, influenza etc.  If a person is able to speak, then he should play conch shell again and again.  This will stop his stutter.

 At the time of worship, water should be filled in the conch and kept in the Vedas.  Sandalwood vaccine should be applied on it, by applying sandalwood vaccine, the conch water will be filled with the fragrance of sandalwood.  Sprinkle this water on all the materials of worship.  And sprinkle this water on the people present in the worship.  Water sprinkled in the conch should be sprinkled while chanting the mantra.  Scientifically, the conch contains calcium phosphorus and sulfur, its properties come in the water filled in the conch and those things become germicides on which the conch mascara is sprinkled.





Sunday, June 14, 2020

परमात्मा एक है या अनेक?

परमात्मा एक है या अनेक? क्या विष्णु और शिव में भेद है?

परमात्मा के अनेक रूप है जैसे ब्रह्मा विष्णु शिव इंद्र यम दुर्गा आदि। यह भक्तों की भावना के ऊपर निर्भर करता है कोई विष्णु के रूप में परमात्मा की पूजा करता है तो कोई शिव के रूप में। किसी स्थान पर भक्त परमात्मा को दुर्गा रूप में पूजते हैं तो कहीं काली के रूप में। कहने का तात्पर्य है कि परमात्मा एक है और उसके रूप अनेक है।
शिव और विष्णु एक दूसरे के पूरक है विष्णु के अवतार भगवान श्रीराम ने रामेश्वर मैं सागर पुल बांधने हेतु सागर तट पर बालू का शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा की थी। इसी प्रकार भस्मासुर दैत्य का अंत करने के लिए विष्णु जी ने पार्वती का रूप धारण कर शिव जी की सहायता की थी। विष्णु जी शिव जी की स्तुति करते रहते हैं तथा शिवजी विष्णु जी की स्तुति करते रहते हैं और विष्णु जी के ध्यान मगन रहते हैं। इस प्रकार दोनों में ना कोई छोटा है ना बड़ा और ना इनमें कोई भेद है। जो भक्त इन में भेद करेगा तो उसका कभी कल्याण नहीं हो सकता।




 Sunday, June 14, 2020

 Is God One or Many?


 Is God One or Many?  Is there a difference between Vishnu and Shiva?

 There are many forms of God like Brahma Vishnu Shiva Indra Yama Durga etc.  It depends on the spirit of the devotees, some worship God as Vishnu and some as Shiva.  At some place, the devotees worship God as Durga and elsewhere as Kali.  It means to say that God is one and its forms are many.

 Shiva and Vishnu are complementary to each other, Lord Shriram, the incarnation of Vishnu, worshiped him by making a Shiva lingam of sand on the ocean shore to build the Sagar Bridge at Rameshwar.  Similarly, to end the Bhasmasura monster, Lord Vishnu took the form of Parvati and helped Shiva.  Vishnu ji keeps praising Shiva ji and Shiva ji praising Vishnu ji and meditating on Vishnu ji.  Thus, there is no difference between the two and neither is there any difference between them.  A devotee who makes a distinction between them can never be benefited.

 Music bolg at 3:41 AM

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Prithvi ka dukh varnan

  पृथ्वी का दुख वर्णन सूत जी बोले द्वापर युग  में अंत समय में पृथ्वी का भार बहुत बढ गया। नाना प्रकार के अत्याचारों से पीड़ित पृथ्वी तब दुखी ...