"zone name","placement name","placement id","code (direct link)" apnevichar.com,Popunder_1,15485358,"" 996.com,DirectLink_1,15488589,https://gw7eez7b7fa3.com/jcbu8318e4?key=806f9e0a5edee73db1be15d7846e32a6 भारतीय समाज में धर्म का महत्व

Tuesday, July 14, 2020

द्वादश ज्योतिर्लिंग

सौराष्ट्र सोमानाथं च, श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। 

उज्जयिन्याम महाकालं ओमकारं ममलेश्वरम।।

केदारं हिमवत्पृष्ठै,डाकिन्यां भीमशंकरं।

वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमीतटे।।

वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।

सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये।।

द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत्।

सर्व पाप विनिर्मुक्त: सर्वसिद्धि फलं भवेत्‌।

इस प्रपंच में अति प्राचीन मत शैव मत है। परम शिव के पंचमुख के द्वारा पंचभूत और पंचन मात्र के जन्न और इस सृष्टि का आरंभ है। शिव तत्व अति सूक्ष्म होने के कारण से केवल आत्मा को ही अनुभव हो सकता है। ऐसा शैवागमों से जानकारी होती है। लेकिन परम तत्व स्वरूप शिवयोगी है आतम ज्योति के रूप में सम दर्शन करेंगे बाकी सब को लिंग रूप धारण के बाद ही शिव भौतिक रूप से दर्शन हो जाता है। इसीलिए लिंग श्री शिव का प्रतीक हो गया है यह लिंग आगम शास्त्र के अनुसार 84 यदि कलयुग में 64 रूप में वर्णन किया गया है इनमें 12 ज्योतिर्लिंग पंचमहाभूत लिंगम मोक्ष मार्ग को दे रहे हैं ऐसा कहा जाता है यह भारत देश के चार दिशा में फैले होने के कारण भक्त जनों के शिवा पार है।
ज्योति शास्त्र वेद वर्षों के संकल्प से कई शिवलिंग में 12 ज्योतिर्लिंगों को एक प्रति एकता स्थान होने की संभावना हो सकती है भारत देश में औनत्य एवं पवित्रता की भावना इस महीतत्व पर अध्यात्म के चिंतन भूलों को वासियों को होने का कारण भी पुणे ज्योतिर्लिंग क्षेत्र ही कारण भूत है।
इस भूलों वासी आकाश में रहने वाले सितारे और ग्रह से हर पल बाहर आने वाले सौदामिनी जैसे ज्योति शक्ति थे 12 ज्योतिर्लिंगों का अनुसंधान होता है इसीलिए साधारण मंदिरों के जैसे यंत्र प्रतिष्ठा एवं प्राण प्रतिष्ठा नहीं होने के बाद भी इस सृष्टि का अंत तक ज्योतिर्लिंग दौरान निरंतर ज्योति शक्ति उद्भव होगी ही। इसीलिए इन ज्योतिर्लिंगों को धूने से अथवा दर्शन करने से अनंत पुण्य के साथ अध्यात्मिक भावना सभी भक्तजनों को मिलेगी। यह 12 ज्योतिर्लिंग पूरा देश में ज्योति ही हो गई है इनमें हर 1 ज्योतिर्लिंग प्रति एकता अलग है। इनमें रामेश्वर सोमनाथ में रहने वाले ज्योतिर्लिंग के सिवा बाकी 10 ज्योतिर्लिंग को भक्तजन अभिषेक एवं पूजा से शुद्ध कर सकते हैं।

पुराण गाथा

यह ज्योतिर्लिंग कहां जाता है कि चंद्र से प्रतिष्ठित हुआ है। दक्ष प्रजापति के संतति अश्वनी से लेकर रेवती तक  27 पुत्रीकाओं मैं सब के सब खूबसूरत है दक्ष ने पुत्रियों का सरासर समझ के सौंदर्य मूर्ति होने से चंद्र को शादी करवाई थी पत्नियों में सबसे खूबसूरत होने से चंद्रमा रोहिणी से सबसे अधिक प्यार करता था बाकी सब को असूया जनक रखा था। रोहिणी के सिवा 26 पुत्रियों ने दक्ष प्रजापति को इस बारे में ईर्ष्या प्रकट की थी दक्ष नेट चंद्र को बुलाकर समझाया कि वह ऐसा ना करें सबको प्यार की दृष्टि से देखें सबको बराबर प्यार करें लेकिन चंद्र ने ससुर की बात का ख्याल नहीं किया। और पहले से ज्यादा रोहिणी को प्यार से देखने लगा। इस बार दक्ष ने गुस्से से चंद्रमा को क्षय रोग से पीड़ित होने का शाप दिया। तब से उस शॉप के कारण से चंद्रमा कला विहीन होने लगा था। सुधाकर के सुधाकरण क्षीण हो जाने से अमृत ही केवल पीने वाले देवता लोगों में हाहाकार करने लगे हैं। औषधि की शक्ति सूखने लगी है सारे जगत निस्तेज हो गए हैं। तब इंद्र और बाकी देव बताओ वशिष्ठ आदि मुनियों ने मिलकर चंद्र को साथ लेकर ब्रह्मा के पास जाकर इस महादेव से रक्षा करने की प्रार्थना की थी तब ब्रह्मा ने चंद्र से पवित्र प्रभास तीर्थ के पास परम शक्ति की आराधना करने से उनको सबको शुभ शुभ हो सकता है कहा था। ऐसे ही तो वाक्य कह के चंद्र को मृत्युंजय मंत्रों पदेश किया था। उसके बाद चंद्र ने दे बताओ से मिलकर प्रभास क्षेत्र को ढूंढा वहां महेश्वर की आराधना करके 6 महीने तक घोर तपस्या की थी अत्यंत दीक्षा से 100000000 बार मृत्युंजय मंत्र पठन किया था चंद्र के भक्ति से संतुष्ट होकर शंकर भी चंद्र के सामने प्रत्यक्ष होकर आ गये और कहा वरदान मांगो।
तब चंद्रमा ने उसे परम शिव साष्टांग प्रणाम करके शिव के अनुग्रह प्राप्ति और उनकी कटाक्ष दृष्टि से शाप निवृत्ति करने की प्रार्थना की। करुणामई शिव ने चंद्र की प्रार्थना से प्रसन्न होकर दक्ष  से दिया हुआ शाप प्रत्यायन उपाय चंद्र को अनुग्रह इस प्रकार किया था केवल कृष्ण पक्ष में ही चंद्र के कला विहीन होने का और शुक्ल पक्ष मैं चंद्रकला हर रोज वर्धमान होकर पूर्णमासी के दिन परिपूर्ण कला प्राप्त करके विराजमान होने का अनुग्रह किया था
इस प्रकार का वर प्राप्त करने के बाद चंद्र ने फिर उसका पूर्व जैसे ही अमृत वर्ष सारा जहां को फैलाने लगा। तब ब्रह्मा जी देवता के प्रार्थना से परम शिव ने पार्वती समेत वहां उस प्रभास क्षेत्र में सोमनाथ के रूप में प्रकट होने का आशीर्वाद दिया।

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