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नित्य दान
नित्य दान
नित्य प्रति दान करना चाहिए।वेद ने कहा है कि दान बहुत ही जरुरी है और बड़ी श्रदा के साथ करना चाहिए । अपनी जैसी सम्पत्ति हो ,उसके अनुसार दान करना चाहिए।देते समय अभिमान ना हो।क्यु कि आजकल देख दिखावा ज्यादा है अगर किसी ने थोड़ा कुछ कर दिया तो हमें तो उससे जयादा ही करना है ताकि लोग देखे और बोले इसने तो इतना किया और फ़िर तीसरा आदमी उससे भी ज्यादा करने की कोशिश करेगा।नहीं ऐसा बिल्कुल नी करना चाहिए दान का मतलब है श्रदा से जो दिया जाए। चाहे वो १ पैसा ही क्यों नहीं। अगर श्रदा से एक पैसा भी दोगे तो वो भी एक लाख के बराबर है दान लजा से विनम्र होकर देना चाहिए और दान सुपात्र को ही करना चाहिए शास्त्र का आदेश है कि स्थिति विपन हो तो को कुछ भोजन के लिए मिले,उससे ग्रास ही दान कर दे।महाभारत में कहा गया है कि यदी एक दिन भी दान के बिना बीत जाए ,तो उस दिन उस दिन इस तरह शोक प्रकट करना चाहिए जिस तरह लुटेरों से लुट जाने पर मनुष्य करता है दाता पूरब की ओर मुख कर के दे और लेने वाला उतर कि ओर मुख कर के।इससे दोनों का हित होता है माता, पिता और गुरू को अपने पुनय का दान किया जाता है
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