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भगवान को प्रसाद क्यों चढ़ाते हैं?
प्रभु की कृपा से जो कुछ भी अन्न जल हमें मिला है उसे प्रभु का प्रसाद मानकर प्रभु को अर्पित कर के प्रभु की कृतज्ञता प्रकट करते है भगवान को भोग लगा कर ग्रहण किया जाने वाला अन्न दिव्य माना जाता है। भगवान् को प्रसाद चढ़ाना आस्तिक होने के गुण को दर्शाता है।
श्रीमद् भगवद् गीता में भगवान श्री कृष्ण जी कहते है कि जो कोई भक्त प्रेम पूर्वक फूल,फल,अन्न,जल आदि करता है,उसे मै सगुण रूप में प्रकट होकर ग्रहण करता हूं।प्रमाण स्वरूप भगवान ने प्रेम पूर्वक शबरी,द्रोपदी, विदुर,सुदामा के हाथों से भोजन किया था।मीरा बाई को दिया गया विश का प्याला भगवान ने स्वयं पिया था। कुछ लोग तार्किक बूद्धी का प्रयोग करते हुए कहते है कि जब भगवान खाते है तो चढ़ाया हुए प्रसाद घटता नहीं।एक प्रकार से उनका कथन सत्य है। जिस प्रकार पुष्पो पर भ्रमर भौंरे बैठते है।और पुष्प की सुगन्ध से संतुष्ट हो जाते है।किन्तु पुष्प का भार नहीं घटता।उसी तरह भगवान् को अर्पित किए गए प्रसाद कि दिव्य सुगन्ध और भक्त के प्रेम भाव से ही भगवान तृप्त हो जाते है।इस प्रकार भगवान तृप्त भी हो जाते है तथा प्रसाद भी नहीं घटता।
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